Thursday 25 April 2024

2024 के चुनाव में 1971 वाले फार्मूले काम नहीं आएंगे

काँग्रेस नेता राहुल गाँधी देश में संपत्ति का सर्वे करवाकर उसके समान वितरण का मुद्दा उठाते फिर रहे हैं। शायद उनको अपनी स्व.दादी इंदिरा गाँधी याद आ गईं जिन्होंने 1971 का लोकसभा चुनाव गरीबी हटाओ के नारे पर जीत लिया था। हालांकि उसके पहले वे बैंक राष्ट्रीयकरण और राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त करने जैसे कदम उठा चुकी थीं। कांग्रेस में विभाजन के बाद श्रीमती गाँधी ने सोवियत  संघ से निकटता बढ़ाई और खुद को समाजवादी विचारधारा से जोड़कर पेश किया। इसीलिए उनको वामपंथी पार्टियों और विचारकों का समर्थन भी मिला। ऐसा लगता है संपत्ति का राष्ट्रीय सर्वे करवाने का शिगूफा छोड़कर श्री गाँधी उन उद्योगपतियों को घेरना चाह रहे हैं जिनकी  वे आये दिन आलोचना करते हैं। उनकी इस बात पर बहस चल ही रही थी कि उनके सलाहकार और कांग्रेस के ओवरसीज विभाग के प्रमुख सैम पित्रोदा ने विरासत में मिलने वाली संपत्ति को लेकर बयान दे डाला  कि अमेरिका में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति का 55 फीसदी सरकार के पास चला जाता है जबकि महज 45 फीसदी उत्तराधिकारियों को मिलता है। जबकि भारत में पूरे हिस्से पर वारिसों का अधिकार होता है। राहुल की बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने गरीबों के हाथ में पैसा देने की वकालत भी की। उनका बयान से मानो भाजपा को मुँह मांगी मुराद मिल गई। उसने श्री पित्रोदा के बहाने काँग्रेस को घेरना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी  कांग्रेस को लोगों की दौलत छीनने वाली पार्टी बता दिया। और कोई समय होता तब शायद कांग्रेस जवाब देने में इतनी तत्परता न दिखाती किंतु लोकसभा चुनाव  जारी रहने की वजह से उसे बचाव के लिए आगे आना पड़ा। पार्टी  प्रवक्ता जयराम रमेश ने श्री पित्रोदा के बयान को उनकी निजी राय बताते हुए उससे पल्ला झाड़ लिया। उल्लेखनीय है सैम को भारत में संचार क्रांति का जनक माना जाता है। स्व राजीव गाँधी के शासनकाल में उनकी सलाह और मार्गदर्शन में ही मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट  जैसी चीजें शुरू हुईं थीं। पेशेवर  दक्षता के लिहाज से श्री पित्रोदा निश्चित तौर पर योग्य  हैं किंतु काँग्रेस से सीधे जुड़ जाने की वजह से अब उनकी छवि बदल चुकी है। हालिया सालों में  राहुल के विदेशी दौरों की व्यवस्था उन्हीं के द्वारा की जाती रही है। ऐसे में विरासत में मिली संपत्ति का बड़ा हिस्सा सरकार को मिलने जैसे बयान से कांग्रेस पूरी तरह खुद को अलग कैसे कर सकती है जबकि उसके न्याय पत्र ( घोषणा पत्र) में संपत्ति का राष्ट्रीय सर्वे करवाने का वायदा है। इसका अप्रत्यक्ष तौर पर अभिप्राय यही लगाया जा रहा है कि आर्थिक  विषमता दूर करने संपत्ति का समान बंटवारा किया जावेगा। इस प्रकार  पार्टी का घोषणापत्र और श्री पित्रोदा का बयान एक दूसरे के पूरक हैं। ये दोनों ही बातें काँग्रेस और उसके   नीति निर्धारकों की अपरिपक्वता का प्रमाण हैं। पता नहीं संपत्ति का सर्वे करवाने जैसा वायदा किसके सुझाव पर पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया। बची - खुची कसर पूरी कर दी अमेरिका में बैठे श्री पित्रोदा ने विरासत सम्बन्धी बयान देकर। जिस प्रकार सनातन और राम मन्दिर के मुद्दे पर कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली वैसी ही गलती इस मामले में होती दिखाई दे रही है।  श्री गाँधी को ये जानना और समझना चाहिए कि ये 2024 है जिसमें 1971 वाले फार्मूलों से चुनाव नहीं जीता जा सकता। और फिर संपत्ति के समान बंटवारे की कल्पना तो साम्यवाद के सबसे बड़े गढ़ सोवियत संघ और चीन तक में साकार न हो सकी। सोवियत संघ तो साम्यवादी विचारधारा के बोझ में ही बिखर गया वहीं चीन ने भी माओ के बनाये लौह आवरण को ध्वस्त कर निजी पूंजी और संपत्ति के मॉडल को मान्यता दे दी। ऐसा लगता है श्री गाँधी अपनी ही पार्टी की सरकार द्वारा लाए गए आर्थिक सुधारों की गाड़ी को पीछे धकेलना चाहते हैं जब सब कुछ सरकार के नियंत्रण में रहने के कारण कोटा, परमिट और लाइसेंस राज चल रहा था। उस व्यवस्था को उनके पिता ने बदला और फिर  डाॅ. मनमोहन सिंह ने मुक्त अर्थव्यवस्था का शुभारंभ करते हुए नई आर्थिक नीतियों का सृजन किया। उन दोनों के कार्यों का श्रेय लेना कांग्रेस कभी नहीं भूलती किंतु  आश्चर्य की बात है कि राहुल उसके विपरीत दिशा में चलने की कोशिश कर रहे हैं। उनको ये नहीं भूलना चाहिए कि संपत्ति के समान वितरण की बजाय लोगों की उद्यमशीलता बढ़ाकर विषमता दूर करना ज्यादा कारगर होगा। चुनाव जीतने की लालसा में वर्ग संघर्ष  की परिस्थिति उत्पन्न करना  समाज के लिए घातक है, जिससे राजनीतिक नेता भी नहीं बच सकेंगे । 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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