Tuesday 2 April 2024

एक सुंदर सपना टूट गया : अब कहने को बचा ही क्या है

छ दशक पूर्व भारतीय फिल्मों में  एक ऐसे नायक का उदय हुआ जो व्यवस्था से विद्रोह करता हुआ धारा के विरुद्ध तैरने का दुस्साहस कर बैठता है। उसके क्रिया - कलापों में स्थापित मान्यताओं को तोड़ने की प्रवृत्ति होने के बावजूद दर्शक उसे भरपूर प्यार देते हैं और फिल्म समीक्षक उसे एंग्री यंग मैन नामक संबोधन देकर ये साबित करने का प्रयास करते हैं कि वह समाज के उस वर्ग की आवाज है जिसे उपेक्षित और शोषित समझा जाता था। वह एंग्री यंग मैन अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमादा था। इसलिए समाज के एक बड़े वर्ग में उसकी स्वीकार्यता कायम हुई। जावेद - अख्तर की पटकथाओं से जन्मा वह नायक एक काल्पनिक वास्तविकता बन गया। दरअसल वह हिन्दी फिल्मों के उस भोले - भाले नायक का आधुनिक संस्करण था जो व्यवस्था की बुराइयों को देखता भी था और झेलता भी।  वह धक्का देने की बजाय धक्के खाकर समाज को झकझोरता था किंतु एंग्री यंग मैन पिटने की जगह पीटने वाला बन गया। उसके कंधे पर टंगे झोले को कोई छीनकर भागे तो वह उसके लिए कानून की शरण नहीं लेता बल्कि खुद का कानून लागू कर सुर्खियां बटोर लेता । भारतीय राजनीति में भी 13 साल पहले  आंदोलन की कोख से एक एंग्री यंग मैन का जन्म हुआ जो व्यवस्था बदलने की राह छोड़कर सत्ता के खेल का हिस्सा बन गया। उसके कंधो पर आदर्शों के झोले टंगे थे। वह धारा के विपरीत तैरने के जुनून से भरा हुआ था। कानून तोड़ने में उसे संकोच न था। वह जनता के लिए लड़ने के लिए विख्यात हो गया। जल्द ही उसका अंदाज लोगों के सिर पर चढ़कर बोलने लगा। उसे गरीबों के नये मसीहा के तौर पर पहिचान मिली और अपार जनसमर्थन भी। देश की राजधानी में भारी बहुमत के साथ उसकी सरकार बन गई।  लोगों को मुफ्त बिजली - पानी का उसका वायदा रास आ गया। सरकारी शालाओं के साथ मोहल्ला क्लीनिक जैसी सुविधा देकर वह जनता का लाड़ला बन बैठा। सफलता का कारनामा उसने दूसरी मर्तबा भी दोहराया किंतु इसके कारण उसके मन में पहले महत्वाकांक्षा और फिर अभिमान जागा। उसे लगने लगा वह सर्वशक्तिमान है । बस यहीं से उसके पैर फिसलन भरे रास्ते पर मुड़ गए और अंततः गत दिवस वह उसी तिहाड़ जेल में जा पहुंचा जहाँ देश के तमाम नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में वह भेजना चाहता था। जी हाँ, वह अरविंद केजरीवाल ही हैं। उनकी सरकार की शराब नीति में हुए कथित घोटाले में आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं के जेल में बन्द होने के बाद अंततः उन्हें भी वहीं जाना पड़ा। इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिन लोगों को वह भ्रष्टाचार का सरगना बताते नहीं  थकता था , कुछ दिनों से उन्हीं से समर्थन मांग रहा है। आंदोलन से निकली नई राजनीति, ढर्रे का शिकार होकर रह गई।  तमाम बुराइयाँ जिनसे लड़ने वह मैदान में उतरा था आज उसके चारों तरफ मंडरा रही हैं। इस शख्ख का भविष्य तो अदालत ही तय करेगी किंतु जिन उम्मीदों के साथ अन्ना का यह शिष्य राजनीति में आया था वे सब निराशा के अंधे कुए  में खोकर रह गई हैं। सत्ता से दूर रहने की कसम खाने वाले इस भूतपूर्व एंग्री यंग मैन को सत्ता छोड़ने में डर लग रहा है। देश को साफ - सुथरी राजनीति का स्वाद चखाने वाले इस व्यक्ति ने अपने चाहने वालों के मुँह में कड़वाहट भर दी है। उसका जेल जाना किसी की जय - पराजय न होकर एक सुंदर सपने के टूटने जैसा है। वह खुद को निर्दोष मानते हुए दावा करता है कि विवाद का जड़ बनी शराब नीति सही और लाभदायक थी। लेकिन अपने हर फैसले पर डटे रहने वाले इस नेता के पास इस सवाल का कोई उत्तर नहीं कि यदि सब सही था तो वह नीति वापस क्यों ली गई ? सवाल ये भी है कि जिन नेताओं को वह भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति बताते नहीं थकता था, आज उन्हीं से ईमानदारी का प्रमाण पत्र मांगने में उसे तनिक भी शर्म क्यों नहीं आ रही ? उसके जेल जाने से उसके समर्थक और अनुयायी तो दुखी हैं ही किंतु उनसे ज्यादा झटका उन लोगों को लगा जिन्हें केजरीवाल में एक मसीहा नजर आता था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से उत्पन्न पार्टी का सर्वोच्च नेता जब खुद ही कठघरे में खड़ा हो गया तो अब कहने को बचता ही क्या है? 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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