Wednesday 10 April 2024

केजरीवाल द्वारा जगाई उम्मीदें यमुना के प्रदूषित जल में डूब गईं


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उनकी गिरफ्तारी को दी गई चुनौती याचिका उच्च न्यायालय ने न सिर्फ खारिज कर दी बल्कि उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों पर तीखी टिप्पणियां भी कर डालीं। चुनाव के समय  गिरफ्तारी पर आपत्ति को अदालत ने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि उसे राजनीतिक  नहीं, संवैधानिक नैतिकता की ज्यादा फिक्र है। सरकारी गवाहों के बयानों  के आधार पर  आरोपी बनाए जाने के ऐतराज पर  न्यायालय ने ये कहते लताड़ भी लगाई कि मजिस्ट्रेट के सामने रिकार्ड किये गए बयानों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाना न्याय प्रक्रिया का अपमान है। उक्त आधार पर न्यायाधीश ने उनकी गिरफ्तारी को सही बताते हुए स्पष्ट किया कि  शराब घोटाले में श्री केजरीवाल के लिप्त होने के पुख्ता प्रमाण हैं । उन्होंने उक्त फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी है क्योंकि यदि वे जेल में रहते हुए इंतजार करते रहेंगे तो फिर आम जनता में ये संदेश जायेगा कि उन्होंने हथियार डाल दिये। पहले भी अदालत ने उनकी गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त सबूत होने की पुष्टि की जिसके बाद ईडी ने उनको गिरफ्तार किया।  यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय के निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत होगा यह मान लेना जल्दबाजी होगी किंतु  मनीष सिसौदिया की जमानत याचिकाएं लगातार निरस्त होने से लगता है कि श्री केजरीवाल आसानी से बाहर नहीं आ सकेंगे। अपनी टिप्पणियों में उच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों में आम जनता और मुख्यमंत्री के बीच अंतर करने से मना कर दिया। यही कारण है आज उनकी वह अर्जी अदालत ने नामंजूर कर दी जिसमें उन्होंने अपने वकील से सप्ताह में पांच बार मिलने की सुविधा चाही थी ।  चूंकि सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल कर दी गई है इसलिए कानूनी पक्ष पर कुछ कहना उचित नहीं है लेकिन श्री केजरीवाल और उनकी पार्टी ने बीते 12 सालों में जो धाक बनाई थी, उसे जबरदस्त धक्का पहुंचा है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि  अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए आंदोलन के गर्भ से जन्मी आम आदमी पार्टी दिल्ली की तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई थी। दरअसल उसका सैद्धांतिक पलायन तो उसी दिन शुरू हो गया था जब  2014 में सबसे बड़ी पार्टी होने पर भी भाजपा द्वारा सरकार बनाने में असमर्थता व्यक्त किये जाने पर श्री केजरीवाल ने बिना संकोच किये उस कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली जो उनकी नजर में भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति थी। हालांकि वह सरकार जल्द गिर गई और नया चुनाव होने पर आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी। स्मरणीय है श्री  केजरीवाल ने 2014 में देश के भ्रष्ट नेताओं की जो  सूची जारी की थी उसमें राहुल गाँधी तो थे , लेकिन नरेंद्र मोदी नहीं, जो आज उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं। उस सूची में नितिन गडकरी का भी नाम था जिनसे बाद में उन्होंने घर जाकर लिखित माफी मांगी। ऐसा ही माफीनामा  बाद  में उनको विक्रमजीत सिंह मजीठिया, कपिल सिब्बल और स्व. अरुण जेटली के सामने भी प्रस्तुत करना पड़ा। भले ही मुफ्त बिजली -  पानी के लालच में दिल्ली की जनता ने श्री केजरीवाल को जबरदस्त बहुमत दिया किंतु उनकी कार्य शैली से नाराज होकर आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में से कुछ ने जब अपना विरोध जताया तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा  दिया गया। जिन अन्ना हजारे के सहारे श्री केजरीवाल नेता बने उन्हें भी किनारे करने में संकोच नहीं किया। इस तरह आम आदमी पार्टी एक खास व्यक्ति की निजी जागीर होकर रह गई। शराब घोटाले में चोर की दाढ़ी में तिनका की कहावत तो तभी सत्य साबित हो गई थी जब चौतरफा विरोध के बाद वह नीति वापस ले ली गई । सही बात तो ये है कि  श्री केजरीवाल जिस नई और साफ सुथरी राजनीति के ध्वजावाहक बनकर उभरे थे वह तो  तभी हवा- हवाई होकर रह गई जब  वे उन दलों के साथ गठबंधन में शामिल हो गए  जिनके नेता उनकी नजर में भ्रष्ट थे। जिन सोनिया गाँधी को गिरफ़्तार नहीं किये जाने के लिए श्री केजरीवाल, नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करते हुए सब एक हैं जी जैसा तंज कसते थे , उन्हीं की शरण में खड़े होने में उनको शर्म नहीं आई। सबसे जल्दी राष्ट्रीय  पार्टी बनने का कीर्तिमान बनाने वाली आम आदमी पार्टी सबसे जल्दी नैतिक पतन का रिकार्ड भी बना बैठी। शराब घोटाले का अंत क्या होगा ये तो अदालत तय करेगी किंतु  जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनको देखकर  कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने जो उम्मीदें जगाई थीं वे दिल्ली में यमुना नदी के प्रदूषित जल में डूबकर रह गईं । और इसके लिए श्री केजरीवाल की महत्वाकांक्षाएं और बड़बोलापन  ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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