Thursday 18 April 2024

बंगाल की खाड़ी के बाद अरब सागर में डूबने के कगार पर वामपंथी विचारधारा


लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का क्रम कल से प्रारंभ होने जा रहा है। सभी पार्टियां अपने - अपने दावे कर रही हैं। भाजपा 400  पार की  बात कह रही है वहीं राहुल गाँधी ने भाजपा के 150 तक सिमटने की भविष्यवाणी की है। क्षेत्रीय दल भी अपने प्रभावक्षेत्र में करिश्मा दिखाने का दम भर रहे हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस की अगुआई में बने  इंडिया गठबंधन में मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। यद्यपि प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी और केरल में वामपंथी पार्टियों ने गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी।  केरल में तो वायनाड सीट पर  प्रधानमंत्री का चेहरा माने जा रहे राहुल गाँधी के विरुद्ध सीपीआई महासचिव डी. राजा की पत्नी लड़ रही हैं। इंडिया गठजोड़ में वामपंथी दल भी हैं जिनका प. बंगाल में  कांग्रेस से गठबंधन भी है किंतु केरल में काँग्रेस अकेले मैदान में है। 2019 में उसने राज्य की 20 में से 19 सीटें जीतकर वाम दलों को जोरदार झटका दिया था। हालांकि 2021 के विधानसभा चुनाव में  वाम मोर्चा सरकार की वापसी ने हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन की परिपाटी बदल दी। चौंकाने वाली बात ये रही कि उसी समय प. बंगाल विधानसभा चुनाव भी हुए जिसमें ममता बैनर्जी के विरुद्ध कांग्रेस और वामपंथी मिलकर लड़े थे। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विरुद्ध लड़ने में भी दोनों की जुगलबंदी देखने मिलती रही। गत वर्ष जब इंडिया नामक गठबंधन बना और उसमें तृणमूल कांग्रेस भी  वाम दलों के साथ शामिल हुई तब उम्मीद बंधी थी कि प. बंगाल और केरल में  सीटों का बंटवारा हो जायेगा। लेकिन सुश्री बैनर्जी  कांग्रेस की 6 सीटों की मांग पर 2 सीटें देने राजी हुईं। कांग्रेस को वह बात  नागवार लगी जिससे प. बंगाल में  गठबंधन में लगी गाँठ नहीं खुल सकी। वहाँ कभी वाम पंथ का मजबूत किला हुआ करता था किंतु अब उसका खंडहर तक नजर नहीं आता। बंगाल की खाड़ी में डूबने के बाद वामपंथियों के लिए अरब सागर के तट पर बसे केरल में ही पाँव रखने की गुंजाइश बची है। इसीलिये उसके नेता सोचते थे कि पूरे देश में कांग्रेस को समर्थन देने के एवज में उसकी ओर से केरल में तो कम से कम उसके लिए सीटें छोड़ी जाएंगी। लेकिन कांग्रेस की मजबूरी ये है कि पंजाब हाथ से निकलने के बाद अब केरल ही  वह राज्य है जहाँ लोकसभा चुनाव में उसका  जलवा कायम रहा। अब तक जितने भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आये उनमें केरल में ही   कांग्रेस का दबदबा रहने की उम्मीद जिंदा है। हालांकि भाजपा भी  जोर मार रही है किंतु उसको बड़े खिलाड़ी के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा। ऐसे में कांग्रेस और वामपंथियों में  सीटों का बंटवारा हुआ होता तब भाजपा पर ध्यान ही नहीं जाता। लेकिन पूरे देश में साथ  नजर आ रहे इन दोनों दलों के बीच केरल में जमकर तलवारें खिंची हुई हैं । मुख्यमंत्री विजयन लगातार कांग्रेस पर हमले कर रहे हैं। राहुल  के वायनाड से लड़ने के विरोध में उनके अलावा श्री राजा के बयान भी आ रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस भी राज्य की वामपंथी सरकार को भ्रष्टाचार में लिप्त बताकर उस पर हमलावर है। ऐसे में  2019 जैसे नतीजे आये तब वामपंथियों की नैया अरब सागर में  डूबना तय है। बिहार में महागठबंधन ने वामदलों को कुछ सीटें जरूर दी हैं लेकिन वहाँ वे लालू यादव की दया पर निर्भर हैं। प. बंगाल और केरल ही वे राज्य रहे हैं जहाँ वामपंथी   हावी थे। ज्योति बसु के निधन के बाद ही कोलकाता में तो लालझण्डे का उतरना शुरू हो गया था किंतु केरल में वामपंथी विचारधारा सत्ता पर काबिज होने में सक्षम बनी रही। लेकिन संसद में वामपंथी दलों के सदस्यों की घटती संख्या इस बात का प्रमाण है कि भारत में भी यह आयातित विचारधारा अंतिम साँसे गिन रही है। कुछ साल पहले तक इस बात की  कल्पना नहीं की जा सकती थी कि प. बंगाल एक भी वामपंथी विधायक न हो।  इसीलिए वामपंथी चाह रहे थे कि कम से कम केरल में तो कांग्रेस उनके साथ  तालमेल बिठाती। लेकिन ऐसा नहीं होने के कारण अपने आखिरी दुर्ग को ढहते देखना वामपंथियों की नियति बन रही है जिसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं क्योंकि भाजपा के अंध विरोध में उन्होंने कांग्रेस का साथ देकर अपनी वैचारिक पहचान नष्ट कर ली। भारत में  पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के जनक डा. मनमोहन सिंह की सरकार को टेका लगाने की स्व. हरिकिशन लाल सुरजीत की रणनीति आत्मघाती साबित हुई। लेकिन उसके बाद भी वामपंथी काँग्रेस के पुछल्ले बने रहे। ममता बैनर्जी किसी जमाने में कांग्रेस को वामपंथियों की बी टीम कहा करती थीं। उसी वजह से प. बंगाल में कांग्रेस का सितारा डूब गया। लेकिन उसके बाद वामपंथी, कांग्रेस की बी टीम जैसे बन गए जिसका नतीजा पहले प.बंगाल और अब केरल उनके हाथ से खिसकने के तौर पर देखने मिल रहा है। बताने की जरूरत नहीं है कि त्रिपुरा जैसा अभेद्य वामपंथी किला पहले ही भाजपा के कब्जे में आ चुका है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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