Saturday 13 April 2024

दिल्ली राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रही


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में हैं। उनकी रिहाई सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत उनकी याचिका पर होने वाले फैसले पर निर्भर करेगी जिसमें उन्होंने ईडी द्वारा उनको गिरफ्तार किये जाने की कारवाई को ही चुनौती दी है। इस मामले में पहले से गिरफ्तार अन्य नेताओं की जमानत  अर्जियाँ जिस तरह निरस्त होती आ रही हैं उसके कारण श्री केजरीवाल की जल्द रिहाई को लेकर कानून के जानकार आश्वस्त नहीं हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को विधि सम्मत बताते हुए जिस प्रकार की कड़ी टिप्पणियां की गईं यदि सर्वोच्च न्यायालय भी उनसे सहमत हो गया तब तो उनको भी पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की तरह लंबे समय तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ सकता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि जेल जाने के बाद भी उपमुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र नहीं देने की ज़िद पर अड़े श्री केजरीवाल को यदि सर्वोच्व न्यायालय ने भी तत्काल रिहा करने से इंकार कर दिया तब दिल्ली सरकार का कामकाज कैसे चलेगा ? हालांकि उन्हें पद से हटाये जाने की अर्जियाँ न्यायालय ने स्वीकार नहीं  कीं क्योंकि संविधान इस बारे में मौन है किंतु जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा जेल में बैठकर सरकार चलाने का फैसला भले ही संविधान के लिहाज से गलत न हो किंतु व्यवहारिक दृष्टि से वह ज्यादा समय तक कारगर साबित नहीं हो सकता। जेल जाने के बाद वे अपनी पत्नी के जरिये निर्देश जारी कर रहे थे जिनकी कोई वैधानिक स्थिति नहीं है। उनकी अनुपस्थिति में चूंकि कैबिनेट मीटिंग  नहीं हो पा रही इसलिए नीतिगत फैसले नहीं हो पा रहे। इसके अलावा बड़ी संख्या में फाइलों के ढेर लगते चले जा रहे हैं। इसी सबके कारण ये अटकलें लगना शुरू हो गई हैं कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की परिस्थितियाँ बन रही हैं। गत दिवस सरकार की मंत्री आतिशी मार्लेना ने पत्रकार वार्ता में खुलकर आरोप लगाया कि उपराज्यपाल केजरीवाल सरकार को अपदस्थ करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन ये आम आदमी पार्टी की कार्यशैली है जिसमें वह किसी भी विपरीत परिस्थिति का पूर्वानुमान लगाकर पहले से अपने लिए सहानुभूति अर्जित करने का खेल खेलती है। खुद केजरीवाल अपनी गिरफ्तारी का शिगूफा लंबे समय से छोड़ रहे थे। इस बारे में विचारणीय बात ये है कि  मुख्यमंत्री सहित पूरी पार्टी ईडी की संभावित कारवाई से अवगत थी। जो दिग्गज वकील आज जमानत के लिए खड़े हैं उनसे भी सलाह ली गई होगी। ईडी द्वारा भेजे गए 9 समन  श्री केजरीवाल द्वारा उपेक्षित किये जाने के पीछे भी गिरफ्तारी से बचने का दांव ही था। जरूरत से ज्यादा होशियारी व्यक्ति को कितनी महंगी पड़ जाती है ये इस उदाहरण से स्पष्ट है। जेल जाते ही मुख्यमंत्री त्यागपत्र दे देते तब वे नैतिकता का ढोल पीटने के अधिकारी होते किंतु अब वे जो अकड़ दिखा रहे हैं वह सत्ता में येन केन प्रकारेण बने रहने की छटपटाहट का परिणाम है। दरअसल उन्हें ये डर है कि  एक बार मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद दोबारा उसे हासिल करना मुश्किल होगा। वे अपनी पत्नी को यदि उत्तराधिकार सौंपते तो अव्वल तो पार्टी में नेताओं का अभाव सामने आता और दूसरा भाजपा परिवारवाद के आरोप में आम आदमी पार्टी को कटघरे में खड़ा करती। श्री केजरीवाल जानते हैं कि उनके हटते ही पार्टी में नये शक्ति केंद्र सिर उठाने लगेंगे और बड़ी बात नहीं कि कोई एकनाथ शिंदे और अजीत पवार जैसा खेल रचते हुए पार्टी को दो फाड़ कर डाले। भाजपा भी मौके की तलाश में है।  सर्वोच्च न्यायालय में श्री केजरीवाल की याचिका का क्या हश्र होता है  उस पर सबकी निगाह लगी है। यदि वहाँ से मुख्यमंत्री को राहत नहीं मिली तब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगने के आसार और मजबूत हो जायेंगे। लेकिन इस सबके कारण आम आदमी पार्टी और श्री केजरीवाल दोनों की चुनावी व्यूहरचना अस्त व्यस्त होकर रह गई है। सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि जिस समय श्री केजरीवाल को भाजपा और प्रधानमंत्री पर सबसे अधिक हमलावर होना था उस समय वे अपना बचाव करने मजबूर हैं। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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