Tuesday 16 April 2024

ईरान - इसराइल विवाद में मुस्लिम राष्ट्रों की फूट भारत के लिए शुभ संकेत

जराइल और हमास के बीच कई महीनों से जारी युद्ध की समाप्ति की कोई संभावना नजर नहीं आने से पूरी दुनिया चिंतित है। गाज़ा पट्टी नामक फिलिस्तीनी इलाके में इजराइली हमलों का कहर जारी है। सर्वत्र बर्बादी का मंजर है। संरासंघ युद्ध रुकवाने में पूरी तरह विफल रहा है। इजराइल इस हद तक आक्रामक है कि  अमेरिका तक की बात नहीं सुन रहा। हालांकि इस देश को जन्म लेते ही युद्ध से जूझना पड़ा इसलिये इसके नागरिक उससे डरते नहीं। लेकिन अब तक जितने भी युद्ध हुए वे कुछ दिन ही चले जबकि यह जंग रुकने का नाम नहीं ले रही। हालांकि इसके पीछे पश्चिमी देशों की भूमिका भी है जो अरब जगत में में शांति कायम नहीं होने देते। लेकिन गत 1 अप्रैल को सीरिया स्थित ईरानी दूतावास पर हुए हमले में 13 लोगों के मारे जाने का दोष ईरान सरकार ने इजराइल पर मढ़ दिया। हालांकि उसने इसका खंडन किया किंतु हमास का साथ दे रहे ईरान ने गुस्से में  सैकड़ों ड्रोन मिसाइलें इजराइल पर दाग दीं । लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से  पड़ोसी देशों में तैनात  अमेरिकी वायु सेना के दस्तों की मदद से एक - दो को छोड़कर सभी मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया गया । उसके बाद  इजराइल ने पलटवार की धमकी देकर एक नये मोर्चे पर जंग छेड़ने का ऐलान कर दिया जिससे पूरी दुनिया तनाव में आ गई। इसी बीच ईरान के एक इस्लामिक संगठन द्वारा इसराइल के जलपोत का अपहरण कर लिया गया जिस पर भारत के भी 22 लोग सवार थे जिसके बाद तनाव और बढ़ा।उधर इसराइल सरकार की  आपात्कालीन बैठक में ईरान से बदला लेने का निर्णय होने से वैश्विक स्तर पर हलचल मचने लगी। अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देशों के साथ ईरान के रिश्ते शत्रुतापूर्ण हैं। उस पर आर्थिक प्रतिबंधों का जबरदस्त घेरा है। रोचक बात ये है कि इसराइल के विरुद्ध हमलावर होने पर ईरान को सऊदी अरब और जार्डन  तक का समर्थन नहीं मिला। जिन अमेरिकी वायु दस्तों की सहायता से ईरानी मिसाइलों को नष्ट किया गया वे उक्त दोनों देशों के अलावा कुवैत, सं अरब अमीरात और कतर में तैनात हैं। ईरान ने पहली बार इसराइल पर सीधा हमला किया था। उसके पास परमाणु बम होने के आरोप में ही अमेरिका उसकी घेराबंदी करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता।यहां तक कि उससे कच्चा तेल नहीं खरीदने के लिए भी दूसरे देशों पर दबाव बनाता है। इसकी वजह से ये आशंका प्रबल होने लगी कि इसराइल और ईरान के बीच  जंग की शुरुआत हुई तो पूरा अरब जगत उसमें उलझ जाएगा। लेकिन लगभग आधा दर्जन प्रमुख मुस्लिम देशों द्वारा ईरानी हमलों से बचाव में इसराइल का साथ देने से समीकरण उलट गए जिससे ईरान भी थोड़ा ठंडा पड़ा। अमेरिका में चूंकि इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं इसलिए राष्ट्रपति बाइडेन भी ज्यादा उलझने से बचना चाह रहे हैं। उल्लेखनीय है यूक्रेन - रूस युद्ध में अमेरिका और उसके मित्र देश यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक मदद देते आ रहे हैं। वरना रूस उस पर कब्जा जमा चुका होता। इसराइल और हमास के बीच हो रही लड़ाई का अप्रत्यक्ष भार भी अमेरिका पर पड़ रहा है। हालांकि फंसा ईरान भी है किंतु उसके इस्लामिक शासक अंध अमेरिकी विरोध के कारण इसराइल का अस्तित्व मिटाने की डींगें हाँका करते हैं। दूसरी तरफ सऊदी अरब, सं अरब अमीरात , मिस्र, जार्डन जैसे प्रमुख देश इसराइल से कारोबारी रिश्ते कायम करने लगे हैं। हालांकि रूस अभी भी सीरिया और ईरान के सिर पर हाथ रखे हुए है किंतु इसराइल पर हमले के बाद मुस्लिम देशों से अपेक्षित समर्थन न मिलने से ईरान का हौसला कमजोर हुआ है और वह भी सम्मानजनक तरीके से इस संकट से निकलना चाह रहा है। लेकिन बात इतने से ही समाप्त नहीं हो जाती क्योंकि इसराइल भले ही अभी चुप होकर बैठ जाए लेकिन ईरान द्वारा किये गए हमले का जवाब वह मौका पाते ही देगा ये सभी मानते हैं। उसके लिए सबसे उत्साहवर्धक है मुस्लिम देशों का दो फाड़ हो जाना। 1949 में अस्तित्व में आते ही उस पर जिन देशों ने हमला कर दिया उनके साथ उसकी दुश्मनी लंबी चली किंतु 20 वीं सदी खत्म होते - होते पश्चिमी एशिया के अनेक मुस्लिम देश समझ गये कि इसराइल एक वास्तविकता है जिसे चाहे- अनचाहे स्वीकार करना ही पड़ेगा। लिहाजा हालात बदलने लगे , वरना अब तक इसराइल पर चौतरफा आक्रमण होने लगते। मौजूदा स्थिति भारत के लिए भी चिंता का कारण है क्योंकि इसराइल के अलावा अनेक अरब देशों में हमारे नागरिक कार्यरत हैं। ईरान के कब्जे में जो जलपोत है उस पर भी भारतीय दल था। ऐसे में भारत के लिए भी कूटनीतिक संतुलन बनाये रखना जरूरी है क्योंकि इसराइल जहाँ हमारा भरोसेमंद सहयोगी है वहीं ईरान से मिलने वाले सस्ते कच्चे तेल के कारण हमारी अर्थव्यवस्था को बहुत सहारा मिला। हालांकि  इसराइल को लेकर इस्लामिक देशों की एकता जिस तरह खंडित हो रही है वह भारत के लिए अच्छा संकेत है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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