Sunday 21 April 2024

कम मतदान से अंतिम परिणाम का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी : विपक्ष से नाउम्मीदी भी कारण हो सकता है


पहले चरण में  मतदान का प्रतिशत कम होने के बाद  पूरे देश में इसके असर की चर्चा चल पड़ी है। प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय स्तर के भाजपा नेता तक दावा कर रहे हैं कि अब की 400 पार का दावा सही साबित होगा। वहीं विपक्ष इसके उलट इस बात को उछाल रहा है कि मत प्रतिशत में गिरावट का अर्थ नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता घटना है। जिन सीटों पर वे प्रचार के लिए गए वहाँ भी मतदान केंद्रों में भीड़ नहीं दिखी। सबसे ज्यादा आश्चर्य उ.प्र , म. प्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार में मत प्रतिशत  कम होने पर व्यक्त किया जा रहा है क्योंकि इनमें भाजपा अथवा एनडीए का राज है।

      यद्यपि अब तक माना जाता रहा है कि मत प्रतिशत में वृद्धि से सत्ता परिवर्तन का रास्ता खुलता है जबकि कम मतदान यथास्थिति बनाये रखने का इशारा है। लेकिन बीते कुछ सालों में उक्त अवधारणा  कई जगह गलत साबित हुई है। 2023 के विधानसभा चुनाव में म.प्र में 2018 की अपेक्षा मत प्रतिशत बढ़ने पर ये उम्मीद लगाई जा रही थी कि  भाजपा सत्ता से बाहर हो जायेगी। इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मतदान कम होने से वही सरकार जारी रहने का कयास लगाया गया था। लेकिन तीनों जगह हुआ उल्टा। इसी आधार पर चुनाव विश्लेषक मान रहे हैं कि पहले चरण में कम मतदान होने से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी ।

      कुछ लोगों का मानना है कि मतदाताओं की उदासीनता का कारण विपक्ष की नीति और नेता स्पष्ट न होना है। उसके समर्थकों को ये भरोसा हो चला है कि चूंकि उसे सत्ता मिलने वाली है नहीं, लिहाजा धूप में चलकर क्यों जाया जाए? 2009 में भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी को आगे रखकर लोकसभा चुनाव लड़ा किंतु वे अटल जी जैसा आकर्षण उत्पन्न न कर सके । इसलिए पार्टी के सांसदों की संख्या कम हुई वहीं कांग्रेस 200 पर जा पहुंची। इस आधार पर 19 तारीख को मतदान का प्रतिशत गिरने से विपक्ष को भी चिंतित होना चाहिए  क्योंकि  प. बंगाल और तमिलनाडु में भी 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ।

    तेज गर्मी और शादियाँ तो अप्रैल,मई में हर साल पड़ती है। अगले चरणों में तो तापमान और बढ़ेगा। ऐसे में मतदान का आंकड़ा और भी नीचे चला जाए तो अचंभा नहीं होगा। जहाँ तक बात नफे - नुकसान के आकलन की है तो अब तक एग्जिट पोल की जानकारी सभी दलों को उनके द्वारा नियुक्त सर्वे एजेन्सी के जरिये मिल गई होगी। मतदान खत्म होते ही हर सीट पर सैकड़ों मतदाताओं के पास ये जानने के लिए फोन आये कि उन्होंने अपना मत किसे दिया। हालांकि चुनाव आयोग की बंदिश के कारण उनका खुलासा संभव नहीं है लेकिन पार्टियां अगले चरणों के लिए अपनी  रणनीति और मैदानी तैयारी उसी के मुताबिक करेंगी।

       भाजपा इस मामले में ज्यादा सक्रिय है इसलिए  उसने एग्जिट पोल से मिले संकेतों का विश्लेषण करने के बाद अपनी चुनावी मशीनरी को अगले चरण के लिए मुस्तैद कर दिया होगा। लेकिन काँग्रेस चूंकि इस बारे में बहुत ढीली - ढाली है इसलिए उससे खास उम्मीद नहीं है। जिस इंडिया गठबंधन के बलबूते वह सत्ता में आने के ख्वाब देख रही है उसमें अभी तक वह कसावट नहीं नजर आई जो सत्ता बदलने के लिए जरूरी होती है। दिल्ली में कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी का पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने जिस प्रकार से विरोध किया वह इसका उदाहरण है।

     कुल मिलाकर पहले चरण के कम मतदान से अंतिम परिणाम के बारे में अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। मतदाताओं की संख्या बढ़ जाने से  प्रतिशत कम होने के बाद भी अनेक सीटों पर कुल मतों की संख्या 2019 जैसी ही या उससे कुछ कम होने पर किसी उलटफेर की उम्मीद कम हो सकती है। लेकिन जहाँ हार जीत का अंतर हजारों में था वहाँ जरूर नतीजा चौंकाने वाला होगा।

     वैसे भाजपा या एनडीए शासित प्रदेशों में  विपक्ष  में  आक्रामकता का अभाव भी कम मतदान का कारण माना जा रहा है। इसीलिए वह भाजपा के नुकसान के दावे के बावजूद अपनी जीत के प्रति  आश्वस्त नजर नहीं आ रहा।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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