Friday 12 April 2024

चुनाव को आंकड़ों पर केंद्रित कर अपना माहौल बनाने में सफल हो रहे मोदी

शांत किशोर भले ही राजनीतिक नेता न हों किंतु राजनीति में रुचि रखने वालों के बीच वे एक जाना - पहचाना नाम हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान के दिशा निर्देशक रहे प्रशांत  रातों - रात चर्चित व्यक्तित्व बन गए। मोदी सरकार के बनने में पोउनकी रणनीति काफी कारगर मानी गई थी। लेकिन बाद में वे भाजपा से दूर हो गए। नीतीश कुमार और ममता बैनर्जी के अलावा जगन मोहन रेड्डी की चुनावी सफलता में भी उनका योगदान रहा। नीतीश ने उनको जनता दल (यू) में पद भी दिया किंतु फिलहाल वे जन सुराज नामक संगठन बनाकर बिहार के चप्पे - चप्पे में घूमकर लोगों को जागरूक करने में जुटे हुए हैं। भविष्य में इसी बैनर तले बिहार में चुनाव लड़ने का इरादा भी जता चुके हैं। संरासंघ जैसी संस्था में  काम कर चुके प्रशांत इन दिनों टीवी चैनलों पर अपने साक्षात्कार के लिए चर्चाओं में हैं। इस दौरान वे लोकसभा चुनाव को लेकर अपना आकलन भी पेश कर रहे हैं। उल्लेखनीय है 2014 के बाद उनकी श्री मोदी और भाजपा दोनों से दूरी काफी ज्यादा हो गई। प्रधानमंत्री की आलोचना करने का कोई अवसर वे नहीं चूकते थे। उनके कांग्रेस से जुड़ने की खबरें भी खूब चलीं किंतु राहुल गाँधी से पटरी न बैठने से बात आगे नहीं बढ़ी। उसके बाद वे बिहार में जनता से सीधे संवाद के जरिये अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुट गए किंतु प्रादेशिक के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति और नेताओं पर उनकी टिप्पणियां लोगों का ध्यान आकर्षित करती रहती हैं।  इसीलिए विभिन्न समाचार माध्यम लगातार उनके साथ  बातचीत प्रसारित कर रहे हैं। चूँकि वे किसी दल या चैनल के लिए सर्वेक्षण का  काम नहीं कर रहे   इसलिए उनका आकलन काफी मायने रखता है। शुरुआती दौर में तो वे ज्यादा नहीं बोल रहे थे किंतु कुछ दिनों से खुलकर ये कहने लगे हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद  नरेंद्र मोदी लगातार तीन चुनाव जीतने का करिश्मा दोहराने जा रहे हैं। यद्यपि भाजपा को 370 और एनडीए के 400 पार के दावे से वे सहमत नहीं हैं लेकिन उनका स्पष्ट रूप से कहना है कि भाजपा 2019 की अपनी संख्या में वृद्धि करने के साथ ही पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में अब तक के सबसे ज्यादा मत हासिल करेगी।  प. बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना आदि में उसके चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद भी श्री किशोर जता रहे हैं। हालांकि इस कारण से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियाँ उनकी आलोचना करते हुए आरोप लगा रही हैं कि वे भाजपा के पक्ष में माहौल बना रहे हैं लेकिन जिस आधार पर उन्होंने मोदी सरकार की वापसी की उम्मीद व्यक्त की है उसे समझने के उपरांत उनकी बात सही प्रतीत होने लगती है। उदाहरण के लिए इंडिया गठबंधन  बन जाने जाने के महीनों बाद तक उसका कोई मैदानी शक्ति प्रदर्शन नहीं हो सका। मुंबई, बिहार और दिल्ली में आयोजित रैलियां क्रमशः कांग्रेस, राजद और आम आदमी पार्टी द्वारा प्रायोजित थीं। दूसरी बात ये कि अब तक सिवाय मोदी को हटाने के इस गठबंधन का अन्य कोई साझा कार्यक्रम लोगों को समझ नहीं आया। राहुल गाँधी की नेतृत्व क्षमता पर भी वे सवाल उठाते रहे हैं। वैसे श्री किशोर तो अपनी राय पूरे देश के राजनीतिक हालात का अवलोकन करने के बाद व्यक्त कर रहे हैं किंतु जिन पेशेवर एजेंसियों द्वारा  चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किया जा रहा है वे भी  जो अनुमान प्रस्तुत कर रही हैं उनके अनुसार दक्षिण भारत छोड़कर बाकी के राज्यों में भाजपा और एनडीए बढ़त पर हैं। महाराष्ट्र, प. बंगाल और बिहार ही वे राज्य हैं जहाँ एनडीए को कड़ी टक्कर मिलती बताई जा रही है किंतु वहाँ भी   किसी बड़े नुकसान की संभावना कम है। प्रशांत किशोर का भी  मानना है कि प्रधानमंत्री ने भाजपा की 370 और एनडीए की 400 से अधिक सीटें आने का जो नारा देकर  पूरे विमर्श की उसी पर केंद्रित कर दिया। और उसके बाद उन्होंने  तीसरे कार्यकाल में बड़े और कड़े निर्णय करने के साथ ही पहले 100 दिन की कार्य योजना तैयार होने जैसी बात कहकर जिस आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया उस वजह से ये अवधारणा और मजबूत हुई कि मतदाता इस सरकार को तीसरा अवसर देने जा रहे हैं। अब तक मिले मैदानी संकेत  और तमाम सर्वेक्षण एजेंसियों के आकलन से वे राजनीतिक विश्लेषक भी अब मोदी सरकार के लौटने की संभावना से सहमत होने लगे हैं जो ऐलनिया भाजपा विरोधी कहे जाते हैं। गत वर्ष संपन्न विधानसभा चुनावों के बाद से राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी खेमे में जो बिखराव और शून्यता नजर आने लगी उससे भाजपा को और आक्रामक होने का अवसर मिल गया। सत्ता विरोधी रुझान पूरी तरह लुप्त हो गया ये मान लेना गलत होगा किंतु प्रधानमंत्री पद को लेकर विपक्ष में व्याप्त अनिश्चितता और अविश्वास ने नरेंद्र मोदी को और मजबूती दे दी। प्रशांत किशोर का आकलन उसी का परिणाम है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी


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