लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अपना संकल्प पत्र मोदी की गारंटी नामक आवरण में लपेटकर जारी कर दिया। चुनावी वायदों की पैकिंग बहुत ही आकर्षक होती है । और भाजपा के संकल्प पत्र में भी उसका भरपूर ध्यान रखा गया है। एक फर्क अवश्य है कि कांग्रेस चूंकि 10 साल से सत्ता से बाहर है इसलिए उसके वायदों के पूरा होने पर मतदाताओं के मन में शंका हो सकती है। वहीं नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर जनता का भरोसा काफी हद तक जीता इसीलिए 2019 में उन्हें पहले से अधिक जनादेश प्राप्त हुआ। यद्यपि एक वर्ग मानता है कि उसके पीछे पुलवामा हादसा रहा । उस लिहाज से यह चुनाव सही मायने में उनकी अग्नि परीक्षा है। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटवाने का वह कारनामा कर दिखाया जिसकी हिम्मत उनके पूर्व किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं दिखाई। राम मंदिर मुद्दे का हल वैसे तो सर्वोच्च न्यायालय के खाते में गया परंतु लेकिन एक निश्चित समय सीमा के भीतर भव्य मंंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या को एक सुविकसित स्वरूप प्रदान करते हुए प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करने का जो कार्य मोदी सरकार ने किया वह हर दृष्टि से अभूतपूर्व था। हालांकि उसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलना ही था किंतु कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य दलों की अदूरदर्शी सोच के कारण उसमें और वृद्धि हो गई। गत दिवस पेश किये संकल्प पत्र में भाजपा ने समान नागरिक संहिता लागू करने और एक देश एक चुनाव प्रणाली से ज्यादा जोर उन मुद्दों पर दिया जो जनता को सीधे लाभान्वित करते हैं। मसलन 70 साल से ऊपर के सभी बुजुर्गों को 5 लाख तक के मुफ्त और बिना भुगतान किये (कैश लैस) इलाज की सुविधा , गरीबों को 3 करोड़ आवास, ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार तक कर्ज की व्यवस्था, मुद्रा लोन की सीमा 20 लाख, घरों की छत पर सोलर प्लांट लगाकर मुफ्त बिजली , पाइप लाइन से रसोई गैस घर - घर पहुंचाकर उसकी लागत कम करने जैसे वायदे हैं। मुफ्त अनाज और किसान कल्याण निधि के अलावा अन्य जो भी जन कल्याणकारी कार्यक्रम चल रहे हैं उनको जारी रखने का संकल्प भी दोहराया गया है। वायदे निभाने के मामले में भाजपा का रिकार्ड तुलनात्मक दृष्टि से बेहतर है इसलिए मोदी की गारंटी हाल के चुनावों में मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही। विगत 10 सालों में मोदी सरकार ने बड़े निर्णय लेकर उन्हें कार्य रूप में परिवर्तित किया लिहाजा उससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं रहने वाले मतदाता भी ये मानते हैं कि प्रधानमंत्री में निर्णय क्षमता तो है। उनकी सभी नीतियाँ और निर्णय सफल हुए हों ये कहना तो सही नहीं होगा किंतु उनके पूर्ववर्ती डा. मनमोहन सिंह की सरकार असफलता के डर से फैसले करने से बचती रही इसलिए इस सरकार की छवि उस मामले में बहुत बेहतर बन गई। डा. सिंह के विपरीत श्री मोदी की सत्ता और पार्टी संगठन दोनों पर अच्छी पकड़ है। इसीलिए संकल्प पत्र से भी मोदी की गारंटी नाम जुड़ा हुआ है। लेकिन कुछ मूलभूत मुद्दे हैं जिन पर आगे प्रधानमंत्री को तेजी से ध्यान देना होगा। सभी शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरी देना तो किसी के लिए संभव नहीं है किंतु रोजगार के वैकल्पिक स्रोत उत्पन्न करते हुए बेरोजगारी दूर करने युद्धस्तरीय प्रयास समय की मांग है। इसी तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य के विवाद का सार्थक हल तलाशना भी तीसरी पारी में बड़ी चुनौती होगी। भाजपा को मध्यमवर्गीय लोगों का समर्थन प्रारंभ से मिलता आया है। लेकिन इस वर्ग के नौकरपेशा और व्यापारी दोनों में नाराजगी है, जिसे दूर नहीं किया गया तो कालांतर में उसको नुकसान झेलना पड़ सकता है। हालांकि संकट की स्थितियों में समुचित निर्णय लेने के लिए मोदी सरकार ने जनता के मन में जगह बनाई है किंतु मणिपुर जैसे मामलों में प्रभावशाली कदम नहीं उठाने के लिए उसे आलोचना भी झेलनी पड़ी है। धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने जैसी चुनौतियाँ तीसरे कार्यकाल में श्री मोदी का इंतजार कर रही हैं। विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में प्रधानमंत्री ने निश्चित रूप से असर छोड़ा है। अधो संरचना के कार्य भी जनता की पसंद का विषय हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध वैसे तो इस सरकार ने बहुत ही दबंगी दिखाई है किंतु उसे इस आरोप से बाहर निकलना होगा कि ईडी और सीबीआई की समूची सक्रियता केवल भ्रष्ट विपक्षी नेताओं तक सीमित है और भाजपा में आते ही उनके दामन उजले हो जाते हैं। कुल मिलाकर मोदी सरकार का अब तक का कार्यकाल उस दृष्टि से सफल कहा जा सकता है कि उसने विकास के पहिये को थमने नहीं दिया। कोरोना संकट के बाद अर्थव्यवस्था का तेजी से दौड़ना बड़ी सफलता है। जिससे देश का आत्मविश्वास बढ़ा है। और इसीलिए इस संकल्प पत्र के जारी होने के पहले से ही प्रधानमंत्री ने तीसरी पारी के शुरुआती 100 दिन की कार्य योजना तैयार होने की चर्चा छेड़ दी।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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