Saturday 6 April 2024

विपक्ष का साझा घोषणापत्र ज्यादा असरकारक होता


कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को न्याय पत्र नाम देकर जारी कर दिया। जिन मतदाताओं के लिए वह प्रस्तुत किया गया उनको कुछ समझ में आता उसके पहले ही भाजपा ने उसे झूठ का पुलिंदा कहते हुए उसका मजाक उड़ाया। हालांकि जब भाजपा का संकल्प पत्र आयेगा तब ऐसी ही प्रतिक्रिया कांग्रेस से भी आना तय है। सही बात तो ये है कि अब घोषणापत्र, संकल्प पत्र, न्याय पत्र या वचन पत्र भी चुनावी कर्मकांड का रूप ले चुके हैं। कांग्रेस द्वारा गत दिवस किये गए वायदों में कुछ गत वर्ष हुए विधान सभा चुनावों में भी किये गए थे। लेकिन मतदाताओं ने उन पर भरोसा नहीं किया। हाल ही में  कांग्रेस का एक विज्ञापन भी जारी हुआ जिसमें मोदी सरकार के उन वायदों का उल्लेख  है जो आज तक पूरे नहीं हो सके। भाजपा इसके उत्तर में कांग्रेस को ये कहते हुए कठघरे में खड़ा करती है कि आधी सदी  तक राज करने के बाद भी वह गरीबी और  बेरोजगारी दूर नहीं कर सकी। सड़क, बिजली और पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी देश का बड़ा इलाका उसके सत्ता में रहते वंचित रहा। ज़ाहिर है कांग्रेस उस सबकी चर्चा करने के बजाय भाजपा से बीते 10 साल के शासन काल में पूरे नहीं हुए वायदों का हिसाब पूछ रही है। दोनों के आरोप और तर्क अपनी - अपनी जगह सही हैं। कांग्रेस ने दशकों तक केंद्र के साथ ही ज्यादातर प्रदेशों में सरकार चलाई थी। भाजपा 2014 के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरी। केंद्रीय सत्ता में तो वह 1999 से 2004 तक भी रही किंतु  स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली उस सरकार में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसके पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। लिहाजा घटक दलों के दबाव की वजह से धारा 370 , राम मन्दिर, समान नागरिक संहिता, तीन तलाक़ जैसे मुद्दों पर वह एक भी कदम आगे नहीं बढ़ सकी। लेकिन नरेंद्र मोदी उस दृष्टि से भाग्यशाली रहे जिनके नेतृत्व में भाजपा को पहली बार में ही स्पष्ट बहुमत मिल गया।  2019 में तो वह 300 का आंकड़ा पार कर गई। इसीलिए उन्हें भाजपा के मुख्य नीतिगत मुद्दों को लागू करने का अवसर मिल गया। यद्यपि राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद वैसा करना  नेतृत्व की कुशलता का प्रमाण था। और इसी  कारण श्री  मोदी की गणना एक मजबूत प्रधानमंत्री के तौर पर की जाने लगी। आज भाजपा में तीसरी बार सरकार बनाने के प्रति जो आत्मविश्वास नजर आ रहा है उसका कारण मोदी सरकार द्वारा लिए गए साहसिक निर्णय ही हैं। आम जनता के मन में यह बात बैठ चुकी है कि विषम परिस्थितियों में भी प्रधानमंत्री जोखिम भरे फैसले लेने में नहीं चूकते। इसीलिए भाजपा मोदी की गारंटी  नारे पर अपने प्रचार को केंद्रित रखे हुए है। कांग्रेस की समस्या ये है कि अव्वल तो वह ये विश्वास उत्पन्न करने में विफल है कि उसे 100 सीटें भी मिल जाएंगी क्योंकि  उ.प्र , बिहार, प. बंगाल, जैसे बड़े राज्यों में उसे कुल 10 सीटें मिलना भी मुश्किल हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और केरल ही वे राज्य हैं जहाँ से उसे कुछ उम्मीदें हैं। ऐसे में वह लोकसभा में  अपनी मौजूदा संख्या को बरकरार रख पाएगी ये भी पक्के तौर पर कह पाना सम्भव नहीं है। यदि काँग्रेस को 100 सीटों का भी भरोसा होता तो वह राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बना देती। लेकिन न्याय पत्र जारी करते हुए उन्होंने भी यही कहा कि विपक्षी गठबंधन को बहुमत मिलने पर नेता का नाम तय किया जाएगा। ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि कांग्रेस जब  गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में है तब उसने अपना पृथक न्याय पत्र (घोषणापत्र) क्यों जारी कर दिया ? इससे ये संदेश मतदाताओं में जा सकता है कि गठबंधन में शामिल  दल नीतिगत मामलों में एकमत नहीं हैं। यदि  गठबंधन के सभी नेता सामूहिक तौर पर साझा घोषणापत्र जारी करते तो उनकी एकजुटता प्रकट होती और जनता में भी सकारात्मक संदेश जाता। रही बात एनडीए की तो चूंकि भाजपा के पास  अपना बहुमत है इसलिए उसके सहयोगी दल भी उस पर हावी नहीं हो पाएंगे। नीतीश कुमार ही कुछ मुद्दों पर असहमत रहे हैं किंतु अब वे दबाव बनाने की हैसियत में नहीं हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस को ममता बैनर्जी ने प.बंगाल में जहाँ एक भी सीट नहीं दी वहीं अरविंद केजरीवाल ने भी  पंजाब में उपकृत करने से इंकार कर दिया। केरल में वामपंथी मोर्चा कांग्रेस से बेहद नाराज है। शायद इसीलिए गठबंधन का साझा घोषणापत्र जारी करने की स्थिति  नहीं बन सकी। कांग्रेस द्वारा 100 सीटों का आंकड़ा छू पाने में भी चूंकि संदेह हैं  , इसलिए उसके वायदे जनमानस को प्रभावित कर सकेंगे इसमें संदेह है।


 -रवीन्द्र वाजपेयी
   

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