Monday 8 April 2024

निजी कानूनों की आज़ादी का वायदा अलगाववाद को बढ़ावा देगा

काँग्रेस द्वारा  अपने न्याय पत्र में प्रत्येक नागरिक की तरह अल्पसंख्यकों को भी पोशाक, खान-पान, भाषा और निजी कानूनों की आजादी का जो वादा किया गया है वह बहुत ही खतरनाक है जिसका दुष्परिणाम अलगाववाद के रूप में सामने आये बिना नहीं रहेगा। कर्नाटक की पिछली भाजपा सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों में हिज़ाब पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद देश भर के मुस्लिम संगठन विरोध में उतर आये। कांग्रेस भी उनके साथ खड़ी हो गई। राज्य विधानसभा चुनाव में उसी वजह से मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण उसके पक्ष में हुआ वरना कई दशकों से वे जनता दल (सेकुलर) को मिलते आ रहे थे। धारा 370 , तीन तलाक़ और राम  मन्दिर जैसे मुद्दों पर अपने गलत रवैये के कारण हिन्दू मतदाताओं के बीच पकड़ खोती जा रही काँग्रेस के लिए मुस्लिम मत डूबते में तिनके का सहारा जैसे हैं। इसीलिए वह उनके तुष्टीकरण में जुटी है। भाजपा द्वारा समान नागरिक संहिता लागू करने की मुहिम शुरू करने के बाद से काँग्रेस का मुस्लिम प्रेम कुछ ज्यादा  ही बढ़ गया है। न्याय पत्र में अल्पसंख्यकों को खान पान , भाषा और पोशाक की आजादी का वायदा तो फिर भी ठीक है किंतु निजी कानूनों की आजादी का वायदा पूरे देश में अस्थिरता और अराजकता का माहौल उत्पन्न करने का आधार बन सकता है । ऐसे में जब पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कर धार्मिक आधार पर भेदभाव खत्म करने पर विमर्श चल रहा हो और सर्वोच्च न्यायालय तक इस बात पर नाराजगी जता चुका हो कि संविधान के अनुच्छेद 44 की मंशा के अनुसार समान नागरिक संहिता लागू क्यों नहीं की गई तब काँग्रेस द्वारा इस तरह का वायदा करना उस संविधान का भी अपमान है जिसे उसी के नेताओं द्वारा बनाया गया था।  उल्लेखनीय है उक्त अनुच्छेद में स्पष्ट कहा गया था कि एक समान नागरिक संहिता विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रति परस्पर विरोधी विचारधाराओं और निष्ठाओं को दूर करके राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगी।  आजादी के बाद हिंदुओं के विवाह और उत्तराधिकार कानूनों को तो सिरे से बदल दिया गया किंतु पंडित नेहरू जैसे आधुनिक सोच रखने वाले प्रधानमंत्री में इतना साहस नहीं हुआ कि वे मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए उसके पर्सनल लॉ में समयानुकूल परिवर्तन करने की पहल करते। यदि उन्होंने उस दिशा में कदम उठाये होते तो आज हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जो खाई है वह शायद इतनी चौड़ी न  होती। दशकों बाद नेहरू जी के नाती राजीव गाँधी के शासनकाल  में सर्वोच्च न्यायालय ने शाह बानो के गुजारा भत्ते  पर ऐतिहासिक फैसला देकर मुस्लिम समाज में सुधार  की शुरुआत की थी। लेकिन विदेशों में पढ़े और बेहद प्रगतिशील ख्यालों के लिए लोकप्रिय राजीव ने मुस्लिम मतों के लालच में उस निर्णय को संसद में  अपने बहुमत के बल पर उलट दिया। ये कहना गलत नहीं होगा कि उस गलती का खामियाजा आज तक कांग्रेस भुगत रही है। आज देश में हिंदुत्व का जो उभार दिखाई देता है उसके लिए भी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियाँ ही जिम्मेदार हैं। हालांकि धीरे - धीरे भाजपा और शिवसेना (अविभाजित ) को छोड़कर लगभग सभी पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक के मोहपाश में फंसती गईं। आज के परिदृश्य पर नजर डालें तो ममता बैनर्जी, लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव  की राजनीति तो मुस्लिम मतदाताओं की दम पर ही जीवित है। कांग्रेस नये सिरे से उनकी मिजाजपुर्सी में जुटी है, लेकिन कुछ  क्षेत्रीय दल इस मामले में उससे भी आगे हैं । ये देखते हुए कांग्रेस को चाहिए वह खुद को मुख्यधारा की राजनीति से जोड़ने के लिए प्रयास करे किंतु उसमें ईमानदारी होनी चाहिए। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर कांग्रेस पहले ही अपने पाँवों में कुल्हाड़ी मार चुकी थी। उस गलती को सुधारने के बजाय उसने अपने न्याय पत्र में अल्पसंख्यकों को निजी कानूनों की आजादी देने का वायदा कर बर्र के छत्ते में पत्थर मारने की मूर्खता कर डाली। एक तरफ तो उसके सहयोगी द्रमुक के नेता सनातन को नष्ट करने की डींग हांकते हैं जिसका समर्थन करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे पर कोई कारवाई नहीं होती। दूसरी ओर पार्टी अपने चुनावी वायदे में सांकेतिक शैली में मुस्लिम पर्सनल लॉ को बनाये रखने का वायदा करती है। उसके नेता चुनाव जीतने के लिए जो कुचक्र रच रहे हैं वह बहुत बड़ी समस्या को जन्म देने का कारण बने बिना नहीं रहेगा। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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