Saturday 27 April 2024

आगामी चरणों में भी मत प्रतिशत कमोबेश ऐसा ही रह सकता है


लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में भी मतदान का प्रतिशत कम रहने से राजनीतिक दल तो परेशान हैं ही चुनाव विश्लेषक और सर्वेक्षण करने वाली पेशेवर एजेंसियां भी भौचक हैं। यद्यपि त्रिपुरा, मणिपुर, असम, छत्तीसगढ़, प. बंगाल, असम और जम्मू कश्मीर में 70 फीसदी से अधिक मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया । इनके  अलावा केरल, कर्नाटक और राजस्थान में 60 प्रतिशत से ज्यादा मत पड़े किंतु म.प्र , उ.प्र, महाराष्ट्र और बिहार 60 प्रतिशत का आंकड़ा भी न छू सके।  सभी राज्यों की स्थिति और समीकरण एक जैसे नहीं होने से मतदान का प्रतिशत अलग - अलग होना स्वाभाविक है। चुनाव मैदान में उतरीं तमाम पार्टियाँ घटते मतदान में भी अपने लिए उम्मीद की किरणें तलाशने में जुटी हैं। भाजपा को लगता है उसके प्रतिबद्ध मतदाताओं ने घरों से निकलकर उसकी जीत को पुख्ता कर दिया। इसके विपरीत विपक्ष यह प्रचार करने में जुटा है कि मत प्रतिशत गिरने के पीछे मोदी सरकार से मतदाताओं का मोह भंग हो जाना ही एकमात्र कारण है। लेकिन ये भी देखने वाली बात  है कि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में भी मतदान के प्रति रुचि कम हुई है। तो क्या कम मतदान के लिए राज्य सरकार के प्रति गुस्से को भी  वजह माना जा सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और पार्टी के एक अन्य नेता शशि थरूर के निर्वाचन क्षेत्र क्रमशः वायनाड और तिरुवनंतपुरम में भी 2019 की तुलना में मत प्रतिशत अच्छा खासा गिरा। संयोग से वहाँ कांग्रेस के अलावा वामपंथी और भाजपा भी मैदान में हैं। राज्य में सरकार वाम मोर्चे की है वहीं केंद्र में भाजपा काबिज है। ऐसे में केरल में मत प्रतिशत कम होने को किसके प्रति नाराजगी मानी जाए ये यक्ष प्रश्न है। श्री गाँधी और श्री थरूर के विरोधी प्रत्याशियों के अनुसार ये उन दोनों सांसदों के प्रति मतदाताओं की नाराजगी भी हो सकती है। वैसे  राजनीतिक दलों के नजरिये से देखें तो कम मतदान उनके विरोधी के लिए नुकसानदेह है। विपक्ष इसमें अपना फ़ायदा देख रहा है वहीं सत्ता में बैठी पार्टी की नजर में केवल उसी के समर्थक मत देने निकले । 2019  की तुलना में मत प्रतिशत के कम होने के लिए यदि गर्मी को कारण मानें तो पिछले दो - तीन लोकसभा चुनाव इसी मौसम में हुए थे। इसी तरह शादियों को बहाना बनाएं तो अखबारों में दूल्हा - दुल्हन तक के चित्र मतदान करते देखे जा सकते हैं। म.प्र में  रीवा सीट पर मत प्रतिशत सबसे कम होने के पीछे बड़ी संख्या में बच्चों के मुंडन होना बताया जा रहा है।  दूसरे चरण के साथ लंबे समय के लिए हिन्दू विवाहों का मुहूर्त भी रुक गया है, ऐसे में उत्तर भारत में अगले चरणों में मतदान का प्रतिशत बढ़ना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तब अनुमानों के घोड़ों को दिशा देना और कठिन हो जायेगा। बहरहाल एक बात तो तय है कि विपक्ष मतदाताओं में उत्साह जगाने में विफल है। इसका कारण ये है कि वह अपनी नीति और नेता स्पष्ट नहीं कर पाया। हालांकि भाजपा भी किसी बड़े मुद्दे को उठाने में सफल नहीं हो सकी किंतु कुछ बातें उसके पक्ष में जाती हैं। पहली तो प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर एनडीए में कोई अनिश्चितता नहीं है। दूसरी वह  अपने नीतिगत मुद्दों को खुलकर व्यक्त कर रही है। जबकि विपक्ष इस मामले में  ढुलमुल नजर आता है। ममता बैनर्जी और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन जिस तरह कांग्रेस पर हमले कर रहे हैं उससे विपक्षी एकता पर अंगुलियाँ उठ रही हैं।  भाजपा का संगठन और चुनाव लड़ने की पेशेवर शैली उसकी बड़ी ताकत है। लेकिन सबसे बड़ी बात जिसके आधार पर मोदी सरकार की वापसी तय मानी जा रही है वह है उसके द्वारा विपक्ष पर बना दिया गया मनोवैज्ञानिक दबाव। उसी के कारण कांग्रेस के प्रतिबद्ध मतदाताओं तक में निराशा देखने मिल रही है। भाजपा बीते दोनों चुनावों में स्पष्ट बहुमत लाने में सफल रही जबकि कांग्रेस तो 50 सीटों के करीब आ गई। ऐसे में उससे ऊंची छलांग की उम्मीद  नहीं दिखाई दे रही। इंडिया गठबंधन भी ये प्रदर्शित नहीं कर सका कि उसका झंडाबरदार कौन है? आगामी चरणों में हो सकता है मत प्रतिशत थोड़ा बढ़ जाए। लेकिन वह 2019 के स्तर को नहीं छू सकेगा क्योंकि विपक्ष की मिसाइलें निशाने से भटक रही हैं। वास्तविकता यह है कि भारत का चुनाव अब चेहरे पर केंद्रित होने लगा है और विपक्ष इस मामले में शुरू से ही कमजोर साबित हो रहा है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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