Monday 22 April 2024

ताकि करदाता को ईमानदार होने का अफसोस न हो


लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान समाप्त होने के बाद बीते वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष कर संग्रह के जो अधिकृत  आंकड़े जारी हुए वे बेहद  उत्साहवर्धक हैं। सरकार द्वारा जो लक्ष्य बजट में निर्धारित किया गया था उससे कहीं ज्यादा कर जमा होना वित्तीय नीतियों की सफलता के साथ ही अर्थव्यवस्था का पूरी तरह रफ्तार पकड़ने का प्रमाण है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रत्यक्ष कर संग्रह के  आंकड़े दर्शाते हैं कि शुद्ध संग्रह 19.58 लाख करोड़ रुपये का रहा, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 के 16.64 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध संग्रह की तुलना में 17.70 प्रतिशत अधिक है। इस बारे में सबसे संतोषजनक बात ये है कि कर संग्रह न केवल कार्पोरेट सेक्टर में बढ़ा अपितु व्यक्तिगत आयकर दाताओं ने भी आयकर रूपी सहयोग देने में सरकारी अनुमान को ध्वस्त कर दिया। वैसे तो सरकार के पास विभिन्न स्रोतों से राजस्व आता है किंतु प्रत्यक्ष कर की मद से आने वाले कर से कंपनियों और निजी  आयकर दाताओं का ब्यौरा देश के सामने आ जाता है। इसीलिए जब बजट आता है तब सबसे अधिक ध्यान आयकर पर लगा रहता है जो कि उच्च और मध्यम आय वर्ग को सीधे प्रभावित करता है। लंबे समय से इसकी दरें अपरिवर्तित हैं। हालांकि सरकार छोटे करदाताओं, विशेष रूप से महिलाओं और वरिष्ट नागरिकों को कर बचाने के कुछ विकल्प देती है जिनमें बचत योजनाएं प्रमुख हैं । लेकिन  उसकी ये मेहरबानी लोगों को रास नहीं आती क्योंकि महंगाई के बढ़ते जाने से बचत की गुंजाइश कम होती जा रही है। और फिर मध्यम और उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों की जीवनशैली में आ रहे  बदलाव ने भी खर्च बढ़ा दिये हैं। बच्चों की शिक्षा पर व्यय लगातार बढ़ रहा है। इसी तरह परिवहन खर्च में भी वृद्धि होती जा रही है। इन सबके चलते ये अपेक्षा की जाती है कि आयकर की छूट सीमा में अच्छी खासी वृद्धि की जाए। ऐसा होने पर करदाता की जेब में ज्यादा पैसा आने से अंततः वह बाजार में ही जायेगा जिससे सरकार को अप्रत्यक्ष कर जीएसटी के तौर पर मिलेगा। यही स्थिति जीएसटी की ऊँची दरों को लेकर है जिनकी वजह से महंगाई भी बढ़ती है और कर चोरी की प्रवृत्ति भी। हालांकि आधारभूत संरचना के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता सरकार को होती है और मौजूदा केंद्र सरकार ने इस दिशा में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया भी है । कोरोना काल में जनता को मिलने वाली तमाम छूटें जब वापस ली गईं तब तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए लोगों ने सरकार के उस कदम को बिना संकोच स्वीकार कर लिया। ये भी मानना होगा कि केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान उससे निपटने के जो इंतजाम किये उनके लिए  अतिरिक्त धन की जरूरत थी। कोरोना के विदा हो जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में समय लगा किंतु बीते एक - डेढ़ साल में जिस तरह की उपलब्धियां देखने मिलीं उनके परिप्रेक्ष्य में जनता को कोरोना काल में वापस ली गई सुविधाएं और छूट लौटाई जानी चाहिए। इस वर्ष लोकसभा चुनाव होने के कारण केंद्र सरकार पूर्ण बजट पेश नहीं कर सकी। इस कारण प्रत्यक्ष कर ढांचे में भी बदलाव नहीं किये जा सके किंतु ये आश्चर्य की बात है कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अपने चुनाव घोषणापत्र में आयकर और जीएसटी में राहत संबंधी वायदा नहीं किया गया । ध्यान देने योग्य बात ये है कि मध्यमवर्ग में भी आयकर के दायरे में आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश का बड़ा उपभोक्ता बाजार इस वर्ग के कारण ही मजबूत स्थिति में है जिसका प्रमाण हर माह होने वाली जीएसटी वसूली है। ये देखते हुए लोकसभा चुनाव के बाद जो पूर्ण बजट आयेगा उसमें प्रत्यक्ष कर ढांचे को आर्थिक सुधारों के मद्देनजर इस तरह बनाया जाए जिससे आयकर दाता को कर देने में संतोष का अनुभव हो। दुनिया की सबसे तेज बढ़ती  अर्थव्यवस्था होने के साथ ही अब भारत का लक्ष्य तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है। लेकिन इस खुशी में जनता को शामिल होने का अवसर तभी मिलेगा जब उसके कंधों का बोझ कम हो। हालांकि आयकर विभाग की कार्यप्रणाली में काफी सुधार हुआ है और रिफंड भी जल्द आने लगे हैं किंतु  उसकी दरों में कमी समय की मांग है। चुनाव के बीच में आये आंकड़े निश्चित ही सरकार के कुशल अर्थ प्रबंधन का परिणाम हैं लेकिन आयकर दाताओं को भी उनके योगदान  हेतु आभारस्वरूप कुछ न कुछ ऐसा मिलना चाहिए ताकि उन्हें अपने ईमानदार होने का अफसोस न हो। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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