Monday 1 April 2024

आक्रामक तेवर के बजाय लाचारी का प्रदर्शन विपक्ष के लिए नुकसानदेह होगा


गत दिवस दिल्ली  में इंडिया गठबंधन की जो रैली हुई उसका आयोजन आम आदमी पार्टी द्वारा अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी  के विरोध में किया गया था। चूंकि पार्टी अपने बल पर इतना बड़ा जमावड़ा नहीं कर सकती थी इसलिए    उसने इसे सर्वदलीय रूप दे दिया। संयोगवश कांग्रेस पर भी आयकर विभाग का शिकंजा कस गया। इसलिए उसने भी इसके प्रति रजामंदी दे दी। लेकिन दोनों मिलकर भी यदि रैली करते तो  उसका प्रभाव दिल्ली तक सीमित होकर रह जाता। इसलिए गठबंधन के सभी नेताओं को बुलाया गया। लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होने वाला है। उस दृष्टि से यह रैली विपक्ष के लिए काफी उपयोगी हो सकती थी लेकिन वह श्री केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के अलावा कांग्रेस को आयकर विभाग द्वारा दिये वसूली नोटिस तक सिमटकर रह गई। यदि रैली में ऐसी कुछ घोषणाएं की जातीं  जिनसे आम जनता में उत्साह जाग्रत होता तब वह अपने उद्देश्य में सफल मानी जाती। कुल मिलाकर विभिन्न दलों के नेताओं ने वही सब बातें दोहराईं जो मुंबई रैली में सुनने मिलीं। दूसरी तरफ कल ही एनडीए ने भी मेरठ में रैली की जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष पर हमला किया। इस रैली में लोकदल सहित उप्र में भाजपा के सहयोगी दलों के नेता शामिल हुए। एनडीए में तो चूंकि श्री मोदी का नेतृत्व सर्वमान्य है प्रधानमंत्री को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है। एक जमाने में कांग्रेस भी इसी सुविधाजनक स्थिति में हुआ करती थी और तब उसके नेता विपक्ष को प्रधानमंत्री का चेहरा बताने की चुनौती देने से नहीं चूकते थे। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। विपक्ष वैचारिक तौर पर एकजुट होने की बजाय केवल श्री मोदी को सत्ता से हटाये जाने के लिए एकजुट हुआ है। कल दिल्ली की रैली में आम आदमी पार्टी की ओर से श्री केजरीवाल की धर्मपत्नी सुनीता केजरीवाल ने मंच पर बैठ कर अपने पति का संदेश पढ़ा। अन्य जो नेता उपस्थित हुए वे सब परिवार द्वारा संचालित दल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। केवल सीपीएम के सीताराम येचुरी ही अपवाद कहे जाएंगे। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब  नई राजनीति का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी ने श्री केजरीवाल की अनुपस्थिति में बजाय किसी और नेता के श्रीमती केजरीवाल को भेज दिया। हालांकि पति के गिरफ्तार होने के बाद से वे ही उनके संदेश प्रसारित करते हुए सार्वजनिक तौर पर सक्रिय हुईं जिससे ये अवधारणा मजबूत होने लगी कि यदि श्री केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ा तब वे अपनी पत्नी को ही उत्तराधिकारी बनाएंगे। यद्यपि आम आदमी पार्टी की सरकार में गोपाल रॉय, सौरभ भरद्वाज और आतिशी जैसे मंत्री  हैं जिन्हें श्री केजरीवाल का विश्वासपात्र माना जाता है किंतु उनमें से किसी के भी नाम की चर्चा नहीं होने से इस संभावना को बल मिलने लगा कि श्रीमती केजरीवाल ही अगली मुख्यमंत्री बनेंगी। कल हुई सभा में उनके मंचासीन होने से राजनीतिक  विश्लेषक भी ये मानने लगे हैं कि आम आदमी पार्टी भी अब परिवारवाद के शिकंजे में फंसने लगी है। सही बात ये है इस पार्टी के जो आधारस्तंभ थे उनमें से ज्यादातर को श्री केजरीवाल ने  धकिया कर बाहर निकाल दिया। और उनके स्थान पर जी हुजूरी करने वाले जनाधारविहीन लोगों को भर लिया। मनीष सिसौदिया जरूर श्री केजरीवाल के बाद दूसरे स्थान पर थे किंतु उनके जेल जाने के उपरांत कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आ रहा जो उनकी अनुपस्थिति में पार्टी और सरकार की बागडोर संभाल सके। हालांकि इस स्थिति तक पार्टी को पहुंचाने के लिए श्री केजरीवाल ही जिम्मेदार कहे जाएंगे जिन्होंने दूसरी पंक्ति का नेतृत्व पनपने ही नहीं दिया। चूंकि इंडिया समूह की लगभग सभी पार्टियां परिवारवाद की पोषक हैं लिहाजा किसी को भी मंच पर श्रीमती केजरीवाल की मौजूदगी असहज नहीं लगी। इंडिया की सबसे बड़ी कमजोरी यही परिवारवाद बनती जा रही है। वामपंथियों को छोड़ भी दें किंतु उसके पास भी ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर अपील हो। इस तरह के अनेक  बेमेल गठबंधन कांग्रेस के विरुद्ध अतीत में भी बने किंतु उनमें कुछ नेता ऐसे होते थे जिनकी राष्ट्रीय पहिचान हुआ करती थी। दुर्भाग्य से इंडिया समूह में  सोनिया गाँधी और राहुल को छोड़कर किसी की भी राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदगी नहीं है  । श्रीमती गाँधी की अस्वस्थता से उनकी सक्रियता घटती जा रही है। कल भी उनका भाषण नहीं हुआ। बचे राहुल तो चूंकि गठबंधन में ही उनके नेतृत्व को लेकर उत्साह नहीं है इसलिए वे जम नहीं पा रहे। यही वजह रही की कल की बहुप्रचारित रैली  आक्रामक तेवर दिखाने के बजाय अपनी लाचारी का  ढोल पीटती रही। यदि आने वाले कुछ दिनों में  यह गठबंधन धुंआधार तरीके से नहीं खेला तब बाजी उसके हाथ से खिसकती चली जायेगी। उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोप में बंद नेताओं को अदालत से जमानत नहीं मिलने से वह सहानुभूति नहीं मिलेगी जिसकी वे उम्मीद लगाए हुए थे। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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