Wednesday 24 April 2024

चिकित्सकों के अनैतिक आचरण पर अपना रुख स्पष्ट करे मेडिकल एसोसियेशन


योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के विरुद्ध आई .एम.ए (इंडियन मेडिकल एसोसियेशन ) द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान दो न्यायाधीशों की पीठ ने बाबा और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को खूब लताड़ लगाईं।  इस प्रकरण में जिस तरह की टिप्पणियां पीठासीन न्यायाधीशों द्वारा की गईं उन्हें  लेकर ये चर्चा होने लगी कि यह याचिका आयुर्वेद नामक भारतीय चिकित्सा पद्धति को दबाने के लिए अंग्रेजी दवा कंपनियों द्वारा रचे गए कुचक्र का हिस्सा है। स्मरणीय है बाबा रामदेव ने पहले योग को घर - घर पहुंचाया और फिर पतंजलि  की स्थापना कर आयुर्वेद दवाओं का उत्पादन तो प्रारंभ किया ही अपितु वैद्यों की सेवाएँ उपलब्ध कराने का प्रबंध भी किया। सौंदर्य प्रसाधन के साथ ही दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली दर्जनों चीजें भी पतंजलि द्वारा बनाई जाती हैं। परिणाम स्वरूप   बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों की बिक्री में गिरावट आने लगी। बाबा द्वारा विभिन्न बीमारियों के इलाज में एलोपैथी नामक चिकित्सा पद्धति की अक्षमता को भी उजागर किया गया। संदर्भित याचिका उसी की प्रतिक्रियास्वरूप पेश की गई थी। अब तक तो पीठ द्वारा बाबा और आचार्य बालकृष्ण की ही खिंचाई होती रही। लेकिन गत दिवस उसके द्वारा आई.एम.ए को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा गया कि जब आप एक अंगुली दूसरे पर उठाते हैं तब चार आपकी तरफ भी उठती हैं। इसके बाद अदालत ने चिकित्सकों द्वारा महंगी और अनावश्यक दवाइयाँ लिखने का जिक्र करते हुए कहा कि चिकित्सकों के सबसे बड़े संगठन को अपना घर ठीक करने के साथ ही चिकित्सकों के अनैतिक आचरण के बारे में भी अपना रवैया स्पष्ट करना चाहिए। लगे हाथ पीठ ने उपभोक्ता कंपनियों द्वारा दिये जा रहे भ्रामक विज्ञापनों पर भी चाबुक चलाया और उस बारे में केंद्र सरकार से भी जवाब तलब किया। जिसके बाद बेबी फूड और मसाले बनाने वाली कंपनियों के लपेटे में आने के आसार बढ़ गए हैं। लेकिन अदालत द्वारा चिकित्सकों को लेकर आई.एम.ए को जो डाँट पिलाई उसके बाद एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से इलाज कर रहे  लाखों चिकित्सक सवालों के घेरे में आ गए हैं जिनके बारे में न्यायालय ने अनैतिक आचरण जैसे शब्द का उपयोग किया। पतंजलि द्वारा एलोपैथी के बारे में कही गई आलोचनात्मक बातों पर न्यायालय का सख्त रुख पूर्णतः उचित है क्योंकि बिना प्रामाणिकता के किसी  पर आक्षेप उचित नहीं है। एलोपैथी एक आधुनिक चिकित्सा पद्धति है जिसने पूरे विश्व में अपना प्रभाव स्थापित किया है। लगातार शोध के साथ ही शल्य क्रिया के क्षेत्र में उसकी उपलब्धियां प्रशंसनीय हैं। उसकी दवाओं के दुष्परिणाम भी हैं लेकिन तत्काल आराम के कारण उसकी स्वीकार्यता बढ़ती गई। लेकिन यह चिकित्सा पद्धति धीरे -  धीरे बाजारवादी ताकतों के शिकंजे में फंसकर रह गई । परिणामस्वरूप सेवा की बजाय चिकित्सा के पेशे ने व्यापार का रूप ले लिया। हालांकि आज भी इस क्षेत्र में अनेक ऐसे लोग हैं जिनमें पीड़ित मानवता की निःस्वार्थ सेवा करने का भाव विद्यमान है किंतु चिकित्सा जगत से जुड़े ज्यादातर लोगों में धन कमाने की हवस चरमोत्कर्ष पर है। महँगी और अनावश्यक दवाएं लिखकर दवा कंपनियों से अनुचित लाभ लेने का धंधा किसी से छिपा नहीं है। निजी अस्पतालों में होने वाली लूटमार तो निर्दयता की हद छूने लगी है। चिकित्सकों और अस्पताल संचालकों का अपना पक्ष हो सकता है किंतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई नसीहत के बाद भी आई.एम.ए यदि मौन रहता है तब वह अनैतिक आचरण की स्वीकारोक्ति होगी। महँगी और गैर जरूरी दवाएं लिखने की न्यालायीन टिप्पणी पर भी एसोसियेशन का उत्तर प्रतीक्षित रहेगा। नियमों के अनुसार चिकित्सक को किसी ब्रांड की बजाय जेनरिक दवा लिखनी चाहिए किंतु ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है। निजी प्रैक्टिस करने वाले अधिकतर चिकित्सकों ने दवाखाने के बगल में दवाई की दूकान खुलवा रखी है । उनकी लिखी दवाएँ आम तौर पर इनमें ही उपलब्ध होती हैं। निजी अस्पतालों के तो प्रांगण में ही दवा प्रतिष्ठान हैं जिनमें मुँह मांगे दाम वसूले जाते हैं। पैथालाजी, एक्सरे, सोनोग्राफी, स्केनिंग, एम.आर.आई आदि पर कमीशन का खेल खुले आम चलता है। अपने शहर से बाहर के किसी बड़े अस्पताल मरीज भेजने पर  सौजन्य राशि मिलने की चर्चा भी आम है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन्हीं विकृतियों पर रोक लगाने की अपेक्षा की गई है। देखना ये है कि एसोसियेशन अपना घर ठीक करने के लिए क्या करता है? वैसे भी उसे ये तो पता ही होगा कि चिकित्सा सेवाओं का व्यवसायीकरण हो जाने से अब चिकित्सकों की प्रतिष्ठा में भी भारी गिरावट आई है जिसके लिए वह खुद भी काफी हद तक जिम्मेदार है। आखिर उसके पदाधिकारी भी तो चिकित्सक ही होते हैं। 

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