Saturday 10 December 2022

गुजरात और हिमाचल से आये सन्देश : मुफ्त उपहार की राजनीति ढलान पर



मुफ्त उपहारों की राजनीति किसने शुरू की ये शोध का विषय हो सकता है | लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश के ताजा  चुनाव परिणाम इशारा करते हैं कि खैरातों के वायदे पर चुनाव जीतने का फार्मूला हर जगह कारगर नहीं होता | यद्यपि दिल्ली  नगर निगम में आम आदमी पार्टी ने भाजपा को हरा दिया लेकिन पंजाब में विशाल बहुमत के साथ सरकार बना चुकी इस पार्टी को पड़ोसी हिमाचल में एक भी सीट नहीं मिली | वहीं गुजरात में भी अरविन्द केजरीवाल के दावों के बावजूद वह दहाई तक पहुँचने में विफल रही | हिमाचल में तो 68 में से  67 उम्मीदवार जमानत गँवा बैठे | गुजरात में यद्यपि उसे 12 फीसदी मत प्राप्त हुए लेकिन मुख्य विपक्षी दल बनने की योजना फुस्स होकर रह गई और  मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी हार गया | दरअसल  दिल्ली के  फॉर्मूले को अपनाकर पंजाब में सरकार बना लेने के बाद श्री केजरीवाल को ये मुगालता हो गया कि मुफ्त बिजली – पानी का वायदा हर राज्य में कामयाब हो जाएगा | गुजरात और हिमाचल तो खैर आम आदमी पार्टी के लिए नए मैदान थे लेकिन दिल्ली के स्थानीय निकाय चुनाव में भी उसे विधानसभा जैसा  भारी बहुमत नहीं मिला | और तो और  मतों का प्रतिशत भी काफी कम हो गया | यदि कांग्रेस वहां ज़रा सा भी जोर मारती तो आम आदमी पार्टी बहुमत से वंचित रह सकती थी | अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने   दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर श्री  केजरीवाल को आगाह किया कि उनका जादू ढलान पर है | इस चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच मतों का अंतर  भी बेहद कम हो गया और भाजपा ने तो अपने मत पिछले चुनाव की तुलना में बढ़ा लिए | दिल्ली की जनता का एक बड़ा वर्ग मुफ्त सुविधाओं  से प्रभावित नहीं हो रहा वरना भाजपा को जैसा श्री केजरीवाल दावा। करते रहे , 20 सीटें ही मिलतीं | इसी तरह के ऊंचे  दावे उन्होंने गुजरात में भी किये परन्तु  मुफ्त बिजली और दिल्ली के शिक्षा मॉडल का आकर्षण काम न आया |  मोदी विरोधी अभियान चलाने वाले जो पत्रकार दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की जीत पर श्री केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बताने में जुटे थे वे ही गुजरात के नतीजे आने के बाद उन्हें खलनायक बताते हुए ये कहते सुने जाने लगे कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा  हासिल करने के फेर में वे भाजपा को मजबूत कर रहे हैं और उनकी महत्वाकांक्षा  आगे पाट पीछे  सपाट साबित होगी | ऐसा सोचना गलत भी नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय पार्टी के पास चूंकि उसका संगठन होता है इसलिए वह किसी प्रादेशिक नेता को भी राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर सकती है | उस दृष्टि से आम आदमी पार्टी अभी बहुत पीछे है | उसे ये सोचना चाहिए कि मुफ्त बिजली और पानी जैसी सुविधाएँ निश्चित तौर पर काम करती हैं लेकिन उन्हें हर मर्ज की दवा मान लेना नासमझी है | दिल्ली में दो बार  विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद आम आदमी पार्टी पिछला  नगर निगम और लोकसभा चुनाव  हार गयी थी | जहां तक बात पंजाब की थी तो वहां अकाली भाजपा – गठबंधन टूटने के साथ ही कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा बढ़ने से मतदाता भ्रमित  थे | भाजपा का संगठन भी कमजोर था जिससे  आम आदमी पार्टी को मैदान साफ़ मिल गया | लेकिन  आतंकवाद के बीज दोबारा अंकुरित होने के साथ ही वहां कानून व्यवस्था की स्थित लगातार बिगड़ने के साथ ही  बिजली का संकट भी दिखने लगा है | इसी तरह दिल्ली में मध्यमवर्गीय बिजली उपभोक्ता इस बात से परेशान हैं कि मुफ्त की सीमा  से एक यूनिट ज्यादा बिजली जलते ही उनका बिल छलांगे मारने लगता है | हिमाचल में आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस ने मुफ्त बिजली के साथ पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का आश्वासन दे डाला | ऐसे में वहां के मतदाताओं ने क्षेत्रीय की बजाय राष्ट्रीय पार्टी को प्राथमिकता दी | भाजपा ने चूंकि इससे परहेज किया इसलिये  कांग्रेस से महज एक फीसदी मत कम पाने से वह लगभग 20 सीटें हार गई ।हालांकि  उसकी अपनी गलतियाँ ज्यादा जिम्मेदार रहीं | जहाँ तक बात गुजरात की है तो श्री केजरीवाल ने यहाँ जमकर मेहनत की | गली – गली घूमकर वचन पत्र बांटे | दिल्ली और पंजाब के उदाहरण भी पेश किये | पंजाब सरकार के पूर्ण पृष्ठ वाले विज्ञापन भी मतदाताओं को प्रभावित्त करने के उद्देश्य से प्रकाशित कराए गए परन्तु इसका असर नहीं पड़ा | निश्चित रूप से वह भाजपा का मजबूत किला है और प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का घरेलू मैदान भी किन्तु दिल्ली में भाजपा के सातों सांसद होने के बाद भी आम आदमी पार्टी कामयाब हो गई | जिसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस का कमजोर हो जाना है | यही स्थिति गुजरात में भी साफ़ नजर  आ रही थी जहाँ कांग्रेस पूरी तरह भगवान भरोसे रही | उसके प्रभारी बने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने राज्य में पार्टी के भीतर चल रहे शीतयुद्ध में उलझे थे | दूसरी तरफ कांग्रेस के तमाम बड़े नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में चेहरा दिखाने में लगे रहे | जिसका लाभ आम आदमी पार्टी को मिला | लेकिन इसके पीछे मुफ्त बिजली के वायदे की कोई भूमिका नहीं है | कुल मिलाकर मुफ्त उपहारों की राजनीति के लिए ये चुनाव बड़ा झटका रहे  | सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग भी समय – समय पर इस बारे में अपना ऐतराज जता चुके हैं | लेकिन राजनीतिक दलों के बीच मतैक्य न होने से बात आगे नहीं बढ़ पा रही | उ.प्र के पिछले चुनाव में भी सपा द्वारा भी मुफ्त बिजली का दांव चला गया था जिसे मतदाताओं ने नकार दिया | गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणाम आम आदमी पार्टी को ये नसीहत देने के लिए पर्याप्त हैं कि अव्वल तो राष्ट्रीय विकल्प बनने का उसका सपना जल्दबाजी है और दूसरा ये भी कि मुफ्त उपहार वाला तरीका लंबे सफर में काम नहीं आने वाला | दिल्ली के  राष्ट्रीय राजधानी होने से वहां विकास की समस्या नहीं रहती किन्तु बड़े राज्यों में मुफ्त सुविधाएँ सरकारी खजाना करने का कारण बन जाती हैं | एक वर्ग को खुश करने वाली योजना दूसरे वर्ग को नाराज करती है | उस दृष्टि से गुजरात में आम आदमी पार्टी के मंसूबे पूरे न होने के साथ ही हिमाचल में उसका सफाया मुफ्त उपहारों की राजनीति के दिन लदने का इशारा है | श्री केजरीवाल के लिए भी इन दोनों राज्यों के मतदाताओं ने ये संदेश छोड़ा है कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए केवल मतों का प्रतिशत नहीं अपितु व्यापक दृष्टिकोण और दूरगामी सोच चाहिए | साथ ही  बिना  संगठनात्मक ढांचे के पार्टी का फैलाव करना समय , शक्ति और संसाधनों की बर्बादी है | अतीत में ऐसा करने वाले अनेक क्षेत्रीय नेता इतिहास के पन्नों में गुम होकर रह गये | स्व. चौ. चरण सिंह और एच.डी देवगौड़ा भले ही प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये लेकिन राष्ट्रीय नेता न बन सके |


:रवीन्द्र वाजपेयी

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