Friday 16 April 2021

सजा के अलावा इंसानियत के दुश्मनों का सामाजिक तिरस्कार भी होना चाहिये



ऐसे समय जब समूची मानवता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं तब देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पैसे की हवस में डूबकर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने में लेश मात्र भी संकोच नहीं कर रहे | कुछ दिन पहले ही जबलपुर के एक दवा विक्रेता के कुछ कर्मचारी रेमडेसिविर नामक इंजेक्शन की कालाबाजारी करते हुए पकड़ लिए गए | हालाँकि इस अपराध में दुकान के मालिक को इस सफाई के आधार पर छोड़ दिया गया कि नौकरों की करतूत से उसका कोई सम्बन्ध नहीं  था | इसी तरह गत दिवस इंदौर का  एक चिकित्सक भी गिरफ्त में आया जो हिमाचल में नकली रेमडेसिविर बनाने का धंधा कर रहा था | आज ही जबलपुर में ही  दवा कम्पनी के एक  विक्रय प्रतिनिधि को उक्त इंजेक्शन निर्धारित से कई गुना ज्यादा दाम पर  बेचने के आरोप में पकड़े जाने का समाचार भी मिला  | नागपुर में भी गत दिवस एक चिकित्सक इसी तरह की गतिविधि में लिप्त पाए जाने पर पुलिस के  हत्थे चढ़ गया | इसके अलावा निजी क्षेत्र के अनेक  अस्पतालों से भी ऐसे ही  समाचार मिल रहे हैं | उनके द्वारा  कोरोना के मरीज को भर्ती करने से पहले ही भारी - भरकम राशि जमा करने का दबाव बनाया जाता है | जिन लोगों के पास नगदी रहित स्वास्थ्य बीमा है उन्हें  भी  अग्रिम भुगतान करने बाध्य किया जा रहा है | कुछ मामले तो ऐसे भी सुनने में आये जिनमें केंद्र सरकार के कर्मचारियों को मिलने वाली सीजीएचएस सुविधा  के पात्रों से भी नगद राशि वसूली गई | आक्सीजन की कालाबाजारी किये जाने  की जानकारी भी आ रही है | कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ऐसे समय जब इंसानियत का फर्ज निभाने के लिए हर किसी को आगे आना चाहिये तब कुछ लोग मजबूरी का लाभ उठाकर आपदा में अवसर तलाशने के आह्वान का उलटा मतलब निकालने में लगे हुए हैं | ऐसे लोग हालाँकि हर मौके पर अपनी निम्नस्तरीय सोच का परिचय देने से नहीं  चूकते लेकिन अचरज तब होता है जब समाज इनके इस व्यवहार के लिए इन्हें आसानी से क्षमा कर  देता है | सवाल ये है कि ऐसे लोगों के कुकृत्यों के प्रति उपेक्षा का भाव आखिर कब तक चलेगा | मानवता पर आया ये विश्वव्यापी संकट एक तरह से हमारे चरित्र की परीक्षा भी है | हद दर्जे की लापरवाही का जो प्रदर्शन हमारे दिग्गज नेताओं से लेकर आम जनता तक ने किया उसकी वजह से ही कोरोना की दूसरी लहर कहर बरपाने पर आमादा हैं | जिस संक्रमण को दम तोड़ता मान लिया गया था वह दोगुनी ताकत से आ धमका है | बीते एक साल के अनुभवों के आधार पर होना तो ये चाहिए था कि पूरा समाज एकजुट होकर जिम्मेदारी से इस विपदा का सामना करता किन्तु ऐसे समय जब चारों तरफ से मृत्यु की पदचाप सुनाई दे रही है तब भी कुछ लोग इंसानियत को  त्यागकर सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरने में लगे हुए हैं | ऐसे लोगों को कानून तो जो सजा देगा वह अपनी जगह होगी ही किन्तु समाज को भी ऐसे लोगों को ये एहसास करवाना चाहिए कि इंसानों के बीच रहना है तो इंसानियत का पालन भी करना पड़ेगा | दशकों पहले की सामाजिक व्यवस्था की याद करें तो किसी  व्यक्ति द्वारा इंसानी  मर्यादाएं तोड़कर किये गये कदाचरण के लिए समाज की ओर से जो जो दंड दिया जाता था उसमें सामाजिक बहिष्कार सबसे प्रमुख  था |   दुर्भाग्य से आज के दौर में चूँकि नैतिकता और आदर्श केवल किताबों और प्रवचनों तक सीमित रह गये हैं इसलिए सामाजिक संरचना का तानाबाना भी धन की चकाचौंध से प्रभावित होने लगा है | यही वजह है कि अनुचित और अपराधिक तरीकों से धन -संपदा अर्जित करने वालों को भी सम्मान मिल जाता है | कोरोना काल में ज्यादातर   निजी अस्पतालों द्वारा जिस तरह से मानवीयता को दरकिनार रखते हुए पैसा बटोरने का अभियान चलाया गया उसकी निंदा तो सभी करते हैं लेकिन उन अस्पतालों के मालिक बने बैठे गैर चिकित्सकीय लोग अपनी सम्पन्नता के बल पर शासन , प्रशासन  और समाज में अपनी वजनदारी बरकारार रखे हुए हैं | यही वजह है कि गलत काम करने वाले बजाय  तिरस्कृत किये जाने के पुरस्कृत हो रहे हैं | जिन लोगों के अपराधिक कार्यों का उल्लेख प्रारम्भ में किया गया उन्हें यदि समाज  का भय होता तब  गलत काम करने में उनके पाँव ठिठकते भी , लेकिन उनको ये विश्वास है कि भले ही अदालत उन्हें दो - चार साल के लिए जेल भेज दे किन्तु बाहर  आने के बाद समाज  उन्हें पूर्ववत स्वीकार कर ही लेगा | उस दृष्टि से विकृत मानसिकता वाले जो भी लोग आपदा के इस दौर में इंसानियत के साथ हैवानियत से पेश आ रहे हैं समाज को उनका तिरस्कार करना चाहिए | वरना मानवीयता के दुश्मनों का हौसला और बुलंद होता जायेगा | 
- रवीन्द्र वाजपेयी


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