Thursday 1 April 2021

ममता की चिट्ठी में छिपे हैं भविष्य के संकेत



राजनीति में समय का चयन बेहद महत्वपूर्ण होता है |  इस दृष्टि से बंगाल  की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी द्वारा राज्य विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के पहले देश भर के विपक्षी नेताओं को चिट्ठी भेजकर भाजपा के विरुद्ध संयुक्त संघर्ष  की अपील किये जाने का सांकेतिक महत्त्व है | सुश्री बैनर्जी ने इस पत्र के जरिये ये जताने की कोशिश की है कि वे भाजपा के विरुद्ध समूचे विपक्ष को एकजुट करने के लिए सक्रिय होंगी | राजनीति के जानकार ये मान  रहे हैं कि चुनाव बाद के  परिदृश्य को अपने  अनुरूप  ढालने के लिए उन्होंने ये रणनीतिक कदम उठाया है | वरना जो कांग्रेस बंगाल में तृणमूल सरकार को हटाने के लिए वाम दलों और अब्बास सिद्दीकी के सेकुलर फ्रंट के साथ मिलकर मैदान में हैं उसकी सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी को भी उक्त पत्र भेजने का कोई औचित्य नहीं था | यद्यपि ममता ने शरद पवार , उद्धव ठाकरे , अरविन्द केजरीवाल , स्टालिन , जगनमोहन रेड्डी , केसी रेड्डी , तेजस्वी यादव , अखिलेश यादव , फारुख अब्दुल्ला , महबूबा मुफ्ती , नवीन पटनायक और हेमंत सोरेन को तो पत्र  लिखा लेकिन वामदलों में उन्होंने सीपीआई और सीपीएम की उपेक्षा करते  हुए भाकपा ( माले ) के नेता नेता दीपांकर भट्टाचार्य को पत्र भेजा जिससे ये स्पष्ट हो गया कि उनके मन में वाममोर्चे के शासन में हुए दुर्व्यवहार की कसक अभी भी  है | लेकिन जिस कांग्रेस को सीपीएम की बी टीम निरूपित करते हुए  छोड़कर उन्होंने तृणमूल बनाई उसकी कार्यकारी  अध्यक्ष श्रीमती गांधी उनकी सूची में पहले क्रमांक पर क्यों हैं  इसके पीछे की राजनीति भी अब बाहर  आ रही है | उल्लेखनीय है कि बंगाल में कांग्रेस ने वाम दलों के साथ चुनावी गठबंधन तो  किया है लेकिन गांधी परिवार का कोई भी सदस्य वहां प्रचार करने नहीं आ रहा | राहुल और प्रियंका दोनों असम में तो सक्रिय हैं किन्तु बंगाल से दूरी बनाये हुए हैं | इसके पीछे चुनाव बाद की व्यूह रचना है जिसमें त्रिशंकु विधानसभा उबरने की सूरत में भाजपा को रोकने के लिए ममता की ताजपोशी करवाना है | वाम दलों में दीपांकर भट्टाचार्य चूँकि मुख्य धारा के साम्यवादी आन्दोलन से नहीं जुड़े हैं इसलिए उनको खुश करने का प्रयास किया गया | दूसरी बात ये भी है कि खुदा न खास्ता अगर ममता की पार्टी सत्ता से बाहर हो जाती है और बाहरी समर्थन से भी सरकार बनाना नामुमकिन हो जाता है तब वे अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति में जगह तलाशेंगी | इस चुनाव के बाद यूँ भी बंगाल में  लोकसभा और राज्य सभा के कुछ उपचुनाव होंगे जिनके जरिये वे दिल्ली की सियासत में दोबारा प्रवेश करने का सोच सकती हैं | ये बात बिलकुल सही है कि कांग्रेस के झंडे तले अब छोटे दल अपने को सुरक्षित नहीं समझते | सोनिया जी  अस्वस्थता  के कारण विपक्ष की एकता के लिए जरूरी मेहनत करने में असमर्थ हैं वहीं राहुल से अपनी पार्टी ही नहीं संभल रही | शरद पवार , शरद यादव , मुलायम सिंह , लालू यादव आदि सभी आयु और स्वास्थ्य के कारण राष्ट्रीय राजनीति की धुरी बनने में अक्षम हैं वहीं उनके उत्तराधिकारी  कसौटी पर  खरे नहीं उतर सके | ऐसे में ममता बनर्जी विपक्षी राजनीति के नेता की खाली  जगह को भरने की इच्छा रख रही हैं तो गलत नहीं है | बंगाल की मुख्यमंत्री रहने के बाद भी वे केंद्र सरकार से टकराने का कोई अवसर नहीं छोड़तीं | राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहिचान भी है | सबसे बड़ी बात उनकी आक्रामकता है जो विपक्षी नेता का सबसे बड़ा गुण है | विधानसभा चुनाव के दो दिन पहले विपक्ष के तमाम नेताओं को भाजपा के विरुद्ध एकजुट होने के लिए लिखित निवेदन भेजना उनकी चुनावी रणनीति के लिहाज से भी एक दांव हो सकता है जिसके जरिये वे  ये आगाह करना चाहती हैं कि भाजपा को हराने के लिए विपक्षी मतों का बंटवारा रोकना होगा | चूँकि बंगाल में तृणमूल ही भाजपा को रोकने में सक्षम है इसलिए विपक्षी मतों का ध्रुवीकरण नितान्त जरूरी है | उनके पत्र पर  विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया और जवाब आने वाले दिनों में सामने आ जायेंगे किन्तु एक लड़ाई के बीच  अगली की तैयारी करने को साधारण कदम नहीं माना जा सकता | बंगाल का ये चुनाव काफी कशमकश भरा है जिसमें पहली बार भाजपा ने खुद को बतौर विकल्प पेश करने का जो दुस्साहस किया था वह इस हद तो सफल हो गया है कि  लगभग सभी विश्लेषक ये मान  रहे हैं कि तृणमूल और भाजपा के बीच ही टक्कर है तथा कांग्रेस , वामदलों और आईएसएफ़ का गठबंधन वोटकटवा की भूमिका में है | नंदीग्राम में शुबेन्दु अधिकारी को चुनौती देने उतरीं ममता का वहां लगातार पांच दिन तक डेरा डाले रहना ये तो दर्शाता ही है कि लड़ाई को वे खुद आसान नहीं मान रहीं | ऐसे में विपक्षी नेताओं को लिखित उनका पत्र बंगाल के मतदाताओं के भावनात्मक दोहन का भी प्रयास है | खास तौर पर उस वर्ग को वे अपने पाले में खींचना चाह रही हैं जो लोकसभा चुनाव में वामदलों से नाराज होकर भाजपा की तरफ झुक गया था   |  ममता का ये पत्र उनकी दूरगामी रणनीति  है लेकिन विपक्षी एकता की इस मुहिम से सीपीआई और सीपीएम को बाहर रखने से वह कितनी सफल होगी ये बड़ा सवाल है क्योंकि केरल से मिल रहे संकेतों के अनुसार वाममोर्चा वहां सत्ता में लौट रहा है और उसे सुश्री बैनर्जी का नेतृत्व कतई मंजूर नहीं होगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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