Wednesday 31 March 2021

धार्मिक ध्रुवीकरण : पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी अपराध न किया हो



बंगाल के चुनाव में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भाजपा  हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करते हुए चुनावी वैतरणी पार करना चाह रही है | वहां जय श्री राम का नारा भाजपा की पहिचान बन गया है | चुनाव सर्वेक्षण करने वाले भी  जब किसी  भाजपा समर्थक से परिणामों के बारे में पूछते हैं  तो वह कहता है इस बार जय श्री राम जीतेगा | ममता बैनर्जी के सामने इस नारे को लगाने वाले उनकी नाराजगी का शिकार हुए तो ये उन्हें चिढ़ाने का जरिया बन गया | ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि बंगाल में धार्मिक आधार पर मतदाताओं को गोलबंद करने का ये प्रथम  प्रयास है | चूँकि भाजपा पहली बार बंगाल के राजनीतिक नक़्शे में अपनी जगह बनाती दिख रही है इसलिए चुनावी लड़ाई का पूरा फोकस   तृणमूल कांग्रेस  और भाजपा पर  है | ममता ने भी ये मान लिया है कि उनका मुकाबला भाजपा से है | ये चौंकाने वाली बात है कि बंगाल पर  तीन दशक से ज्यादा राज करने वाली वामपंथी पार्टियों में अपने बल पर चुनाव लड़ने की ताकत नहीं बची और वे कांग्रेस  के अलावा भडकाऊ भाषणों की लिए कुख्यात  फुरफुरा शरीफ नामक मुस्लिम धार्मिक केन्द्र के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन करने बाध्य हो गये |  इस चुनाव में तृणमूल सरकार की वापिसी के पक्ष में सबसे बड़ा आधार  30 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का एकमुश्त समर्थन माना जा रहा है | राज्य की सबसे चर्चित सीट नंदीग्राम में ममता की विजय की सम्भावना का प्रमुख कारण वहां के लगभग 65 हजार मुस्लिम मतदाता हैं जिनका 80 फीसदी हिस्सा  तृणमूल को मिलने  के दावे किये जा रहे हैं | ममता समर्थक ये मानते हैं कि भाजपा द्वारा हिंदू मतों के ध्रुवीकरण  की जोरदार कोशिशों के बावजूद ममता को उनका 40  प्रतिशत तो मिलेगा ही और इस आधार पर उनकी जीत सुनिश्चित है | ये बात भी तेजी से प्रचारित की जा रही है कि फुरफुरा शरीफ के अनुयायी भी संयुक्त मोर्चे की बजाय तृणमूल को मत देंगे ताकि   मुस्लिम मतों का बंटवारा रोका जा सके | उल्लेखनीय है बिहार  में असदुद्दीन ओवैसी द्वारा मुस्लिम मतदाताओं में बंटवारा किये जाने पर  तेजस्वी यादव के हाथ आते - आते सत्ता खिसक गई थी | उसके बाद ओवैसी ने बंगाल में भी आमद दर्ज कराई लेकिन अब्बास सिद्दीकी के कारण वे ठन्डे हो गये | हालाँकि कॉंग्रेस और वामपंथियों को फुरफुरा शरीफ के पीरजादा से हाथ मिलाने पर काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी | जैसा कहा जा रहा है कि संयुक्त मोर्चे की रणनीति मुस्लिम मतों में विभाजन करवाकर त्रिशंकु विधानसभा बनवाने की है ताकि ममता से सौदेबाजी की जा सके | ये कितनी कामयाब होती है ये तो 2 मई को ज्ञात होगा परन्तु  हिन्दू ध्रुवीकरण पर चिंता जताने वाले मुस्लिम मतों को ममता के पक्ष में गोलबंद होने की संभावना से खुश हैं | हालांकि  इस बात का जवाब कोई नहीं दे रहा कि आखिर  बंगाल की राजनीति में हिन्दू कार्ड खेलने की गुंजाईश किसने पैदा की ? इस बारे में एक वामपंथी ने खुलकर ये कहा कि  वाममोर्चे ने दशकों तक बंगाल पर राज किया लेकिन हिन्दुओं को ये महसूस नहीं होने दिया कि उनकी उपेक्षा करते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण किया जा रहा हैं | जबकि ममता ने महज दस साल में हिन्दुओं के बीच नाराजगी बढ़ा दी | ऐसे में हिन्दू मतों को गोलबंद करते हुए बंगाल में कमल खिलाने की कोशिश क्रिया की प्रतिक्रया ही है | जो तबका मुस्लिमों के थोक में भाजपा के विरुद्ध मत करने की संभावना को धर्मनिरपेक्षता मान रहा है उसे हिन्दुओं के भाजपा के पक्ष में लामबंद होने के दावों में साम्प्रदायिकता नजर आना दोहरा मापदंड है | इस बारे में अब ये बात  तेजी से चल रही है कि  देश में धार्मिक आधार पर पहले मुस्लिमों का  ध्रुवीकरण हुआ | इसकी शुरुवात कांग्रेस ने की लेकिन बाद में लालू - मुलायम सरीखे क्षेत्रीय नेता इस वोट बैंक को ले उड़े जो उप्र और बिहार में कांग्रेस की दयनीय स्थिति का कारण बना | भाजपा ने तो 1989 से खुलकर हिन्दू कार्ड खेलना  शुरू किया जिसका उसे लाभ हुआ और 25 साल के भीतर देश की सत्ता पर काबिज हो गई और वह भी अपने दम पर | उसके इस पैंतरे के बाद बाकी पार्टियां किसी तरह मुस्लिम मतों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने में जुट गई जिनमें तृणमूल भी अग्रणी कही जायेगी | अब जबकि जवाब में हिन्दू मतों को एकजुट करने की कोशिश भाजपा ने शुरू  की तो धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरे का ढोल पीटा जाने लगा | मुस्लिम मतों का पूरा हिस्सा  साथ होने का दावा करने वाले किस मुंह से ये कहते हैं कि हिन्दू धार्मिक आधार पर थोक के भाव किसी पार्टी के साथ नहीं जायेंगे | चुनावी पंडित भी जब किसी पार्टी या उम्मीदवार के जीतने का अनुमान लगते समय मुस्लिम  मतों के  सामूहिक समर्थन की बात करते है तब क्या वे हिन्दू मतदाताओं को एकजुट होने के लिए प्रेरित नहीं करते ? सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं को गोलबंद करना आदर्श स्थिति नहीं है लेकिन मुस्लिम मतदाताओं को ऐलानिया किसी पार्टी का पक्षधर बताये जाने वाले दूसरे धर्म के मतदाताओं से धार्मिक आधार पर मतदान न  किये जाने की अपेक्षा करें तो ये सिवाय पाखंड के और क्या है ? ईसा मसीह का एक प्रसिद्ध कथन  है कि किसी अपराधी को पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी  अपराध न किया हो | मुस्लिम ध्रुवीकरण के जन्मदाताओं को हिन्दू ध्रुवीकरण पर उँगलियाँ उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए | वैसे हिन्दू मतों का महत्व ममता को भी समझ आ चुका है | चंडीपाठ और मंदिर दर्शन के बाद गत दिवस उन्होंने अपना गोत्र भी सार्वजनिक कर दिया | चुनाव जो न करवाए थोड़ा है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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