Friday 26 March 2021

बंगाल के परिणाम राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाले होंगे



पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की धूम है | 27 मार्च को असम और बंगाल में पहले चरण का मतदान होगा | केरल , तमिलनाडु , पुडुचेरी भी चुनाव प्रक्रिया से गुजर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा बंगाल को लेकर है जहां 294 विधानसभा सीटें हैं | हालाँकि तमिलनाडु में  भी  234 सीटें हैं लेकिन वहां की राजनीति  दो  क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुख्यतः सीमित है इसलिए राष्ट्रीय परिदृश्य पर वह उतना चर्चित नहीं हो पाता | पुडुचेरी केंद्र शासित छोटा सा राज्य है जबकि  केरल की विधानसभा में 140 और  असम में 126 सीटें ही हैं | लेकिन बंगाल इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में है क्योंकि वहां  तृणमूल कांग्रेस नामक क्षेत्रीय दल के 10 वर्षीय शासन के विरुद्ध  भाजपा ने जोरदार मुकाबले की स्थिति पेश कर दी है | तीन दशक से ज्यादा तक यहाँ वाममोर्चे की सरकार रही जिसे 2011 में ममता बैनर्जी के उखाड़ फेंका | वाममोर्चे के पहले बंगाल में  भी कांग्रेस का शासन था किन्तु केंद्र में सत्तारूढ़ रहने के बाद भी वह वाममोर्चे के किले में सेंध नहीं लगा सकी | ममता बैनर्जी ने कांग्रेस पर सीपीएम की बी टीम होने का आरोप लगाते हुए तृणमूल कांग्रेस बनाई और कुछ सालों तक संघर्ष करने के बाद् अंततः वाममोर्चे को सत्ता से बाहर कर दिया | भारतीय राजनीति में वह बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि बंगाल साम्यवाद के अभेद्य दुर्ग में तब्दील हो चुका था और यहीं  नक्सलवाद का जन्म हुआ | एक समय वह भी था जब कोलकाता की दीवारों पर चेयरमैन माओ जिंदाबाद के नारे दिखाई देते थे | बंगाल की तर्ज पर त्रिपुरा पर  भी वाममोर्चे की जबर्दस्त पकड़ हो गई | लेकिन बीते 10 सालों के भीतर इन दोनों राज्यों में बड़ा  राजनीतिक परिवर्तन हुआ | बंगाल में  ममता और त्रिपुरा में भाजपा ने वामपंथी आधिपत्य समाप्त कर दिया |  इस समूची प्रक्रिया में कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर सरकती गई |  हालांकि  ममता  ने वामपंथियों  के शासन को तो उखाड़ फेंका लेकिन वे उनकी शासन करने की संस्कृति को नहीं मिटा पाईं जिसके कारण राजनीतिक हत्याएं और  गुंडागर्दी का आलम जस का तस बना रहा | कांग्रेस चाहती तो वह अपने लिए फिर  जगह बना सकती थी लेकिन  राहल गांधी के उदय के बाद वह  अपनी संघर्ष क्षमता खोती जा रही है जिसका लाभ उठाते हुए भाजपा ने पहले पूर्वोत्तर राज्यों में  पैर जमाये और इस चुनाव में वह तृणमूल के विकल्प के तौर पर मैदान में है | हालाँकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी  मोदी लहर ने बंगाल में भी  अपना असर दिखाया किन्तु 2016 के विधानसभा चुनाव में उसे महज 3 सीटें मिलने से ये अवधारणा बन गई कि बंगाल की जनता नरेंद्र मोदी से तो प्रभावित है किन्तु राज्य में भाजपा के पास कोई दमदार नेता नहीं होने से प्रदेश की सत्ता उसे सौंपने में वह हिचकती है | भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस कमी को समझकर तृणमूल सहित अन्य पार्टियों में तोड़फोड़ मचाते हुए जबरदस्त भर्ती  अभियान चलाया और पार्टी में नये - नये आये नेताओं को उम्मीदवार बनाकर स्थानीयता के अभाव को दूर कर दिया | हालाँकि उसका ये दाँव कितना कारगर होगा और वह लोकसभा चुनाव के परिणामों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए ममता के किले को ध्वस्त कर सकेगी , इस बात की   पूरे देश में चर्चा है | राजनीतिक पंडित , टीवी चैनलों के रिपोर्टेर और तमाम सर्वेक्षण एजेंसियां बंगाल चुनाव के परिणामों का आकलन करने में जुटी हुई हैं | यद्यपि अभी तक आये अधिकाँश सर्वे  ममता की वापिसी को लेकर आश्वस्त हैं वहीं उनका ये भी  कहना है कि इस बार तृणमूल को चुनौती कांग्रेस और वामपंथियों का मोर्चा नहीं वरन भाजपा दे रही है जिसे 100 से ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद लगाई  जा रही है | लेकिन प्रथम चरण के मतदान के तीन दिन पहले आये कुछ सर्वेक्षणों में भाजपा के बहुमत का अनुमान लगाये जाने से बाजी उलटने की उम्मीद बढ़ गई है | और यदि ऐसा होता है तब ये राष्ट्रीय राजनीति में बहुत बड़ी घटना होगी | 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले अगर भाजपा ने बंगाल फतह कर लिया तो ये विपक्ष खास तौर पर कांग्रेस के लिए चिंता  का बड़ा कारण होगा और वह विपक्षी एकता की सूत्रधार बनने की हैसियत भी  खो बैठेगी | इस प्रकार जिन  पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें बंगाल के नतीजे भावी राष्ट्रीय राजनीति को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले होंगे | यदि भाजपा वहां सरकार नहीं  बना सकी किन्तु उसकी सीटें 125 के आसपास रहीं तब भी ये बड़ी बात होगी क्योंकि वामपंथ के गढ़ रहे  इस राज्य में उसका वैकल्पिक ताकत बन जाना मामूली बात नहीं होगी   | उसे ये  पता है कि पूर्वोत्तर के छोटे  - छोटे राज्यों में उसकी  जीत बिना बंगाल हासिल किये अधूरी रहेगी |   लेकिन ममता बैनर्जी अपनी सरकार बचाने  में सफल हो गईं तब  वे विपक्षी राजनीति की धुरी बन सकती हैं जो  राहुल गांधी के लिए बड़ा धक्का होगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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