Tuesday 2 March 2021

भाजपा शासित राज्य सस्ता कर दें तो बाकी भी मजबूर होंगे



 लगातार तीसरे महीने जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ से अधिक होना इस बात का सूचक है कि कारोबारी जगत कोरोना संकटकाल से बाहर निकल आया है | हालाँकि अभी भी अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जिनकी पुरानी रफ्तार अभी तक नहीं लौटी किन्तु ये बात बिलकुल सही है कि लॉकडाउन हटने के बाद से उद्योग - व्यापार  ने तेजी से गति पकड़ी |  चूँकि लॉक डाउन के दौरान रबी और उसके बाद खरीफ फसल में भी कृषि क्षेत्र  ने अच्छा प्रदर्शन  किया इसलिए ग्रामीण इलाकों से भी बाजार में मांग आने लगी  जिसका सबसे बड़ा सबूत था रिकॉर्ड संख्या  में ट्रैक्टर की बिक्री | इसी के साथ ही  ऑटोमोबाइल उद्योग को भी उपभोक्ताओं का आशातीत  प्रतिसाद मिला | सूचना तकनीक का  व्यवसाय तो लॉक डाउन के दौरान भी अपनी रफ़्तार से चलता रहा | घर में  बैठे - बैठे  काम करने की जो नई कार्य संस्कृति इस दौरान प्रचलित हुई उसने इस उद्योग में एक नए युग का सूत्रपात कर दिया जिससे स्थापना व्यय घटाने में मदद मिली | मनोरंजन और पर्यटन उद्योग भी धीरे - धीरे ही सही किन्तु पटरी पर लौटता नजर आ रहां  है | रेलगाड़ियों का परिचालन निरंतर बढ़ने की तरफ है | सड़क मार्ग से यात्रा भी अब पहले जैसी हो चली है | ताजा  आंकड़ों के अनुसार हवाई जहाज से यात्रा करने वालों का दैनिक आंकड़ा तीन लाख से ऊपर चला गया है | इस प्रकार ये कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था बीमारी के बाद अब चलने - फिरने की  स्थिति में आने लगी है और उस आधार पर ये सोचना  गलत न होगा कि नये  वित्तीय वर्ष में वह ऊंची छलांग लगाने में कामयाब  हो सकेगी | इसका संकेत पूंजी बाजार में आ रही उछाल है जिसका कारण बड़ी संख्या में विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति बढ़ता हुआ भरोसा है | ये बात भी इस बारे में जोड़ी जा सकती है  कि गत वर्ष की गर्मियों में  लद्दाख सेक्टर में चीन द्वारा उत्पन्न युद्द की स्थिति का भारत ने जिस दृढ़ता से सामना किया उससे वैश्विक स्तर पर ये अवधारणा मजबूत हुई कि वह चीन को चुनौती देने में सक्षम है | उसी के बाद से विदेशी पूंजी का प्रवाह हमारे शेयर बाजार में बढ़ने लगा | यद्यपि लॉक डाउन हटने के बाद किसान आन्दोलन के रूप में उत्पन्न गतिरोध ने अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँचाने का काम किया | चूँकि वह राष्ट्रव्यापी रूप नहीं ले पाया इसलिए धीरे - धीरे उस झटके से भी  कारोबारी जगत उबर रहा है | उम्मीद है उत्तर भारत में रबी फसल की सरकारी खरीद शुरू होते ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पैसे का आगमन बढ़ेगा जिससे उपभोक्ता बाजार को संबल मिलना तय है | हालाँकि कोरोना के दूसरे हमले ने महाराष्ट्र और केरल में चिंता के कारण पैदा कर दिए  हैं लेकिन गत दिवस आम जनता के लिए टीकाकरण प्रारम्भ हो जाने के बाद जिस तरह का आत्मविश्वास देखा जा रहा है उसके कारण ये उम्मीद हो चली है कि आगामी गर्मियीं में आने वाला शादी सीजन बीते साल की मुर्दानगी को दूर करते हुए बाजारों को गुलजार कर देगा | निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को लेकर चारों तरफ से शुभ संकेत मिल रहे हैं | लेकिन पेट्रोल और डीजल के दामों में लगी आग से  आम उपभोक्ता का बजट गड़बड़ा गया है | इसकी वजह से निजी और सार्वजानिक परिवहन खर्च बढ़ जाने से चीजे महंगी होने लगी हैं | हालाँकि केंद्र सरकार लगातार ये संकेत दे रही है कि वह इनके दाम घटाने के प्रयास कर रही है | राज्यों से भी ये कहा जा रहा है कि वे अपने कर घटाने के साथ ही  पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाकर उनकी कीमतों पर अंकुश लगाये जाने में मददगार बनें | केंद्र  सरकार ने गत दिवस जो संकेत दिये उनके अनुसार जल्द ही वह पेट्रोल- डीजल पर केन्द्रीय कर घटाने जा रही है | हालांकि इसके पीछे पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव भी हैं लेकिन  पेट्रोल और डीजल सहित रसोई गैस जैसी आम उपभोक्ता की जरूरत वाली चीजों पर जिस तरह का जजिया कर केंद्र और राज्यों की सरकारें थोप रही हैं वह संवेदनशीलता के अभाव को दर्शाता है | यदि केंद्र सरकार वास्तव में चाहती है कि पेट्रोल - डीजल सस्ते हों तो उसे कम से भाजपा शासित राज्य सरकारों पर दबाव डालकर वहां इन पर करों में कमी करवाना चाहिए जिसके बाद बाकी राज्य भी वैसा करने बाध्य होंगे और तभी पेट्रोल - डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने की परिस्थिति बन सकेगी | ये बात भी सौ फीसदी सच है कि पेट्रोल - डीजल सस्ते होने से महंगाई कम होने के बाद उपभोक्ता बाजार में कारोबार बढ़ेगा जिसके फलस्वरूप सरकार के पास घूम फिरकर उतना ही राजस्व आ जाएगा |  कम कराधान से आधिक आय का ये सूत्र पूरे विश्व में मान्य और सफल है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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