गत वर्ष इन्हीं दिनों भारत में कोरोना का आगमन हो चुका था | देश के अनेक हिस्सों में संक्रमण के प्रमाण मिलने लगे | उसका वायरस चीन से निकलकर अन्य देशों में होता हुआ भारत आ धमका | विदेशों से आये भारतीय और विदेशी दोनों इसको आयात में सहायक बने | शुरुवात में ये अवधारणा थी कि भारत के मौसम और स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी ज्यादा है कि उन्हें कोरोना शायद ही दबोच सकेगा | लेकिन मार्च के अंतिम सप्ताह तक ये तय हो गया कि संक्रमण भारत में भी पाँव पसार चुका था और जल्द नियंत्रण न किया गया तो इसके महामारी का रूप लेने में देर नहीं लगेगी | अंततः देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा प्रधानमंत्री ने स्वयं टीवी पर आकर की जिसके बाद का घटनाक्रम सर्वविदित है | भारत सरीखी घनी आबादी वाले देश में जहां 80 फीसदी आबादी गरीब हो , वहां सब कुछ रुक जाना अप्रत्याशित ही नहीं अकल्पनीय भी था | इसका अर्थव्यवस्था पर हुआ असर भी किसी से छिपा नहीं है | लॉक डाउन का उद्देश्य लोगों के मेलजोल को रोककर संक्रमण के फैलाव पर काबू पाना था जो तमाम अड़चनों के बाद भी पूरा हुआ । वरना भारत में भी इटली , ईरान , स्पेन और अमेरिका की तरह मौत का तांडव दिखाई देता | जिस देश में प्राथमिक चिकित्सा तक सभी नागरिकों तक नहीं पहुँच सकी हो उसमें एक अनजान वायरस के हमले का सामना करने की व्यवस्था करना कल्पनातीत था किन्तु संकट के समय भारत एक नया रूप ले लेता है और वही कोरोना से की गई जंग में देखने मिला | सरकार और समाज के समन्वित प्रयासों और 135 करोड़ देशवसियों द्वारा अनुशासन का पालन किये जाने का सुपरिणाम ये हुआ कि लगभग छह माह बाद सितम्बर से कोरोना के संक्रमण में कमी आने लगी और साल खत्म होते तक हम स्वदेश में निर्मित टीका बनाने में भी कामयाब हो गए | ऐसे समय जब अमेरिका , ब्रिटेन सहित अनेक देशों में कोरोना की दूसरी और कहीं - कहीं तो तीसरी लहर से एक वर्ष पहले के हालात फिर लौट आये तब भारत में कुछ को छोड़कर अधिकतर राज्यों में कोरोना दम तोड़ने लगा था | लॉक डाउन समाप्त किये जाने के बाद से क्रमशः व्यापारिक और सामाजिक गतिविधियाँ भी शुरू हो गईं | होटल , रेस्टारेंट , सिनेमा , सांस्कृतिक - साहित्यिक समारोह आदि की भी अनुमति दी जाने लगी | हवाई और रेल यातायात को शुरू किये जाने से आवागमन ने जोर पकड़ा | सुस्त पड़े पर्यटन उद्योग को भी प्राणवायु मिलने लगी | शादी - विवाह पर लगे प्रतिबंध शिथिल कर दिए गए | धार्मिक स्थल भी खोल दिए गए | हाल ही में हरिद्वार में तो कुम्भ मेला प्रारंभ हो गया | गत वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद अनेक राज्यों में उपचुनाव और स्थानीय निकायों के चुनाव सफलता पूर्वक संपन्न हुए | संसद और विधानसभा के सत्र भी इस बीच हुए | कुल मिलाकर देश सामान्य स्थिति में लौट चला था | यद्यपि शारीरिक दूरी , मास्क और सैनिटाईजर जैसी सावधानियों की आवश्यकता पर जोर दिया जाता रहा | लेकिन यहीं लापरवाही हो गयी | लोगों ने संक्रमण में आई कमी को उसकी विदाई मान लिया | बाजारों में भीड़ बढ़ने लगी | किसान आन्दोलन जैसे छोटे - बड़े आयोजन भी सर्वत्र दिखाई देने लगे | राजनीतिक रैलियों में कोरोना संबंधी शिष्टाचार की धज्जियां खुलकर उडाई जाती रहीं | इन सबका परिणाम ये हुआ कि बीते कुछ दिनों से संक्रमण की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी जिससे अनेक शहरों में रात्रिकालीन कर्फ्यू और लॉक डाउन की नौबत आ गई | कल का आंकड़ा 35 हजार के पार चले जाने के बाद ये कहना कतई गलत न होगा कि कोरोना की वापिसी हो गई है | असम , बंगाल , तमिलनाडु , पुडुचेरी और केरल में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल ही रही है | मार्च के अंत में होली का उत्सव होगा | ऐसे में शारीरिक दूरी के साथ ही कोरोना संबंधी अन्य सावधानियों के प्रति लापरवाही पूरी तरह संभावित है | दीपावली के समय से ही लोग ये मान बैठे थे कि कोरोना की वापिसी हो चली है और टीका आते ही वह अंतिम सांसें लेने लगेगा | लेकिन इस आशावाद पर बीते कुछ दिनों में पानी फिर गया | अब जबकि उसके दूसरे हमले की पुष्टि हो चुकी है तब ये मानकर चलना निरी मूर्खता होगी कि अधिकतर नए मामले महाराष्ट्र या दूसरे किसी राज्य में हैं | संयोगवश भारत में सामुदायिक संक्रमण के हालात नहीं आये लेकिन उसकी वापिसी पहले से ज्यादा खतरनाक हो सकती है | और इसके लिए न चीन पर दोषारोपण किया जा सकता है और न ही सरकार पर | बीते एक साल में सरकार ने जो कुछ किया वह उम्मीद से ज्यादा था | भारत में टीके का विकास निश्चित रूप से बड़ी उपलब्धि कही जायेगी | उसका निर्यात किये जाने से भारत की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि हुई है लेकिन कोरोना की वापिसी सारे किये - धरे पर पानी फेर रही है | प्रधानमन्त्री ने इस बारे में जो कटाक्ष किया वह कुछ लोगों को भले बुरा लगे लेकिन ये बात बिलकुल सही है कि दूसरी लहर का कारण आम जनता द्वारा दिखाई गई लापरवाही है | इस बारे में एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि कोरोना भी मलेरिया , डेंगू , पीलिया , टाइफ़ाइड की तरह हमारे साथ रहने आ चुका है | उसका इलाज भले ही खोज लिया गया है और सरकार मुफ्त में टीका भी लगवा रही है लेकिन जरा सी असावधानी प्राणलेवा हो सकती है | ये देखते हुए शारीरिक दूरी , भीड़भाड़ से बचाव , मास्क और हाथ धोने जैसी बातों को अपने दैनिक आचरण में शुमार करना होगा | कोरोना के खतरे के बारे में किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं बची है | गत दिवस प्रधानमंत्री ने ग्रामीण इलाकों में कोरोना के फैलाव को रोकने संबंधी जो समझाइश दी वह बेहद महतवपूर्ण है | पिछले दौर में भारत के ग्रामीण और आदिवासी बहुल इलाके कोरोना की मार से काफी हद तक अछूते रहे लेकिन आगे भी ऐसा होता रहेगा ये मानकर बैठे रहना आत्मघाती होगा | लॉक डाउन हटने के बाद अर्थव्यवस्था किसी तरह पटरी पर लौटती दिख रही थी लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण चिंता के काले बादल फिर आसमान पर मंडराते दिख रहे हैं | गत वर्ष कोरोना से हम अनजान थे लेकिन आज के हालात में उसके खतरे और बचाव के प्रति सब जानते हुए भी लापरवाही की गई तो फिर कहने को और कुछ बचता ही नहीं है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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