Monday 15 March 2021

तबादला उद्योग के चलते भ्रष्टाचार रोकना असम्भव



मप्र सरकार ने अपनी नई तबादला नीति के तहत  फैसला किया है कि प्रभारी  मंत्री  अधिकारियों , शिक्षकों या कर्मचारियों का तबादला साल में दो बार नहीं कर सकेंगे और विशेष परिस्थिति में ऐसा करने के लिए मुख्यमंत्री स्तर तक स्वीकृति लेनी होगी | हालाँकि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी इस नीति से बाहर होंगे | राज्य सरकार शीघ्र ही  तबादलों से प्रतिबंध हटाने जा रही है | पहले परीक्षाओं का मौसम खत्म होने के बाद सरकारी अमले के स्थानान्तरण की परम्परा थी | इसका उद्देश्य बच्चों की पढाई बीच सत्र में बाधित होने से रोकना था | लेकिन धीरे - धीरे तबादले की प्रक्रिया में भी अस्थिरता आ गई और फिर इसने एक उद्योग का रूप ले लिया | ज्योंही प्रतिबन्ध हटता है राजधानी में मंडी सज जाया करती है | मंत्रियों के बंगलों पर सौजन्य ( ? ) भेंट करने वाले सरकारी सेवकों की भीड़ इसका प्रमाण है | इसी के साथ ही बीच शैक्षणिक सत्र में स्थानान्तरण का सिलसिला भी अनवरत चला करता है | कमलनाथ सरकार बनी तो उसने पूरी नौकरशाही को अपनी अनुकूलता के अनुसार उलट - पुलट  किया | ये भी कहा जाता है कि नई सरकार बनने पर चुने हुए जनप्रतिनिधि चुनाव में हुए खर्च की भरपाई तबादलों से कर लेते हैं | कमलनाथ सरकार के 15 महीने के कार्यकाल में तबादले बिना रुके जारी रहे | संयोग से उसकी विदाई हो गयी और शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बन गये | उसके बाद फिर वही प्रक्रिया शुरू हुई | जबसे प्रभारी मंत्री नामक व्यवस्था शुरू हुई तबसे सम्बन्धित  जिले का सरकारी अमला उनकी पसंद का होने का चलन चल पडा | उसकी वजह से प्रभारी मंत्री की खुशी और नाराजगी किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के तबादले का कारण बनने लगी है | हाल ही में ऐसे अनेक वाकये हुए जिनमें किसी कर्मचारी या अधिकारी को महज इसलिए तबादले का शिकार होना पडा क्योंकि मंत्री जी अपने स्वागत - सत्कार में कमी से नाराज हो उठे | वैसे सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिहाज से प्रभारी मंत्री रूपी  व्यवस्था गलत नहीं है किन्तु कतिपय  मंत्रियों का जो शैक्षणिक और मानसिक स्तर होता  है उसे देखते हुए उन्हें तबादलों का अधिकार देना  बंदर के हाथ में उस्तरा पकडाने जैसा है | ये देखते हुए शिवराज सरकार ने एक साल में दो तबादले करने के अधिकार से प्रभारी मंत्रियों को वंचित करने की जो नीति बनाई है वह व्यवहारिक है | लेकिन ये भी  देखना   होगा कि विशेष मामलों में मुख्यमंत्री स्तर पर तबादले की प्रक्रिया भी पारदर्शी हो और उसमें राजनीतिक भेदभाव नजर न आये | किसी भी शासकीय कर्मी को अपने कर्तव्य के निर्वहन में कमी या गलती पर दंडित किये जाने के प्रावधान सेवा शर्तों में  हैं | निलम्बन और बर्खास्तगी के अलावा भी अनेक ऐसे तरीके हैं जिनसे उसे दंडित किया जाता है जिससे उसकी पदोन्नति पर असर पड़ता है | वरिष्ठ अधिकारी द्वारा  अपने अधीनस्थ की गोपनीय वार्षिक रिपोर्ट लिखने का जो प्रावधान है उसका उद्देश्य भी प्रशासनिक कसावट बनाये रखना ही है | हालाँकि इस कार्य में  कितनी ढील - पोल है ये किसी से छिपा नहीं है | सरकारी अमले के तबादले के पीछे मकसद ये होता है कि किसी एक जगह रहते हुए उसके निहित स्वार्थ जड़ें न जमा लें | लेकिन दंडस्वरूप किये जाने वाले स्थानांतरण का विशेष लाभ  इसलिए नहीं होता क्योंकि जो कर्मचारी या अधिकारी  स्वभावतः भ्रष्ट अथवा अकर्मण्य है उसे कहीं भी पदस्थ किया जावे वह कुत्ते की पूंछ की तरह ही बना रहेगा | कहने का आशय ये है कि शासकीय सेवा में स्थानान्तरण सामान्य और काफी हद तक आवश्यक  प्रक्रिया  है किन्तु उसका औचित्य साबित करना भी जरूरी है | प्रभारी मंत्री या दूसरे किसी भी जनप्रतिनिधि की व्यक्तिगत नाराजगी या प्रसन्नता के कारण होने वाले स्थानान्तरण से किसी भी तरह के सुधार की उम्मीद करना व्यर्थ है | कमलनाथ और शिवराज सिंह दोनों  के समय ये देखने में आया कि पहले तो लम्बी चौड़ी तबादला  सूची जारी हुई और अगले ही दिन उसमें से बड़ी संख्या में तबादले रद्द कर दिए गए | इसी तरह एक जगह हुए तबादले को बदलकर आनन - फानन में दूसरी जगह भेजने का आदेश जारी हो गया | जाहिर है ये सब राजनीतिक कारणों के साथ ही पैसे के लेनदेन से संभव होता है |  सबसे बड़ी बात ये है कि तबादला उद्योग के कारण ही प्रतिबद्ध नौकरशाही नामक विसंगति ने जन्म लिया | आज के दौर में किसी अधिकारी की निष्ठा किस नेता के प्रति है ये आसानी से उजागर हो जाता है | धीरे - धीरे ये प्रवृत्ति दलीय प्रतिबद्धता में बदलती गई | इसका नुकसान यह हुआ कि राजनीतिक विद्वेष का शिकार कर्मचारी या अधिकारी निठल्ला  बैठकर अपनी अनुकूल सरकार  आने की प्रतीक्षा करता है | भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राज्य में मनमाफिक सरकार नहीं होने पर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर खिसक लेते हैं | शिवराज सरकार ने एक साल में दो तबादले करने के  प्रभारी मंत्री के अधिकार को भले ही खत्म किया हो लेकिन तबादले को उद्योग बनने से रोकने की इच्छा  शक्ति के बिना व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा करना व्यर्थ है | प्रशासनिक ढांचा एक स्थायी व्यवस्था है जिसे सत्ता  परिवर्तन से अछूता रखा जाना ही सही मायनों में प्रशासनिक सुधार होगा | दुर्भाग्य से नेता और नौकरशाही के बीच होने वाले अपवित्र गठजोड़ ने जिस भ्रष्ट संस्कृति को जन्म दिया वह सारी समस्याओं की जड़ बन गई है | शिव्र्राज सरकार यदि  तबादला उद्योग रूपी भ्रष्टाचार के स्रोत को बंद करना चाहती है तो उसे ईमानदार और निष्पक्ष  होकर काम करना होगा | राजनीतिक तौर पर भले ही उनकी नीतियां कांग्रेस से भिन्न हों लेकिन प्रशासनिक अमले के भ्रष्टाचार को रोकने के मामले में मौजूदा सरकार भी  पूरी तरह विफल रही है | और इसके  प्रमुख कारणों में तबादला सबसे ऊपर है | प्रभारी मंत्रियों को ये  नई व्यवस्था कितनी रास आयेगी , कहना कठिन है क्योंकि मलाई का स्वाद चखने के बाद रूखी - सूखी खाने के लिए शायद ही  कोई तैयार होगा | वैसे भी गांधी , लोहिया और दीनदयाल केवल  जयन्ती मनाने तक ही प्रासंगिक रह गए हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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