मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश के उन वरिष्ठ जननेताओं में हैं जिन्हें चौथी बार प्रदेश की सत्ता संभालने का अवसर मिला | 2018 के चुनाव में भाजपा थोड़े से अंतर से सरकार बनाने से चूक गई किन्तु महज सवा साल के भीतर शिवराज का राजयोग फिर प्रबल हुआ और गत वर्ष आज ही के दिन एक बार फिर उनकी ताजपोशी हो गयी | आज वे उसका जश्न मना रहे हैं | अख़बारों में बड़े - बड़े इश्तहारों के जरिये सरकार की उपलब्धियों से लोगों को परिचित कराया गया | सत्ता गँवा चुके पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को ये सब अच्छा नहीं लग रहा जो स्वाभाविक है | लेकिन यदि शिवराज की जगह होते तब शायद आज के दिन वे भी यही करते | गत वर्ष जब प्रदेश में सत्ता बदलने की मुहिम चल रही थी तब कोरोना की आहट भी सुनाई देने लगी थी | श्री चौहान के शपथ लेने के बाद लॉक डाउन का लम्बा दौर शुरू हुआ जिसकी वजह से उन्हें असहज और अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में शासन चलाना पड़ा | लम्बे समय तक तो वे अकेले ही चले | बाद में कुछ मंत्री और बनाए किन्तु सरकार पूरा आकार नहीं ले सकी | कोरोना से निपटना वाकई बड़ा काम था | लॉक डाउन की वजह से सरकारी राजस्व की आवक रुक गई | ऊपर से राहत कार्यों को चलाने की भी जिम्मेदारी किन्तु तमाम विषमताओं के बाद भी मुख्यमंत्री ने उस दौर में बेहतर कार्य किया | सबसे बड़ा दबाव था कांग्रेस छोड़कर आये दो दर्जन विधायकों को उपचुनाव में जितवाना जिसके बिना उनकी सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता | एक और मानसिक बोझ था ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सामंजस्य का | लेकिन श्री चौहान ने उक्त दोनों मोर्चों पर बड़ी ही कुशलता के साथ काम करते हुए ये साबित कर दिया कि वे शासन चलाने के लिए जरूरी परिपक्वता से संपन्न हैं | यही वजह है जिसके आधार पर उन्होंने बीते एक साल में चुनावी मोर्चे पर सफलता के साथ ही राजनीतिक सामंजस्य और प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया | इस दौरान उन्होंने अपने स्वभाव और प्रचलित छवि से अलग जिस तरह माफिया के विरुद्ध आक्रामक रुख दिखाया उसका सकारात्मक असर भी जनमानस पर दिखाई दे रहा है | सरकारी जमीन को रसूखदारों के अवैध कब्जे से मुक्त करवाने की उनकी मुहिम से भूमाफिया और अपराधी तत्वों में घबराहट है | लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिन पर श्री चौहान को बारीकी से ध्यान देना चाहिए | आज भी पूरे प्रदेश में खनन और शराब माफिया बेख़ौफ़ है | ये कहना भी गलत न होगा कि श्री चौहान की अपनी पार्टी के प्रभावशाली नेता भी इन धंधों को संरक्षण दे रहे हैं | ट्रांसफर में होने वाली सौदेबाजी भी राज्य सरकार की छवि को धूमिल करती है और सबसे मूलभूत बात जो मुख्यमंत्री से अपेक्षित है वह है निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार | हालाँकि लोकायुक्त और आर्थिक अपराध शाखा की कार्र्वाई में बड़ी संख्या में भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी लपेटे में आये हैं लेकिन जांच और दंड प्रक्रिया इतनी धीमी है कि अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाते | सरकारी नियुक्तियों की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता के दावे गलत साबित होते रहे हैं | पिछले कार्यकाल में व्यापमं नामक घोटाले ने मप्र की राष्ट्रव्यापी बदनामी करवाई थी | ये भी कहा जा सकता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता चली जाने के पीछे उस घोटाले का बड़ा हाथ था | हालाँकि श्री चौहान उससे उबर चुके हैं और बहुत कुछ सबक भी लिया होगा जिसकी बानगी चौथी पारी में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से मिल रहा है लेकिन उन्हें ये स्वीकार करना चाहिए कि कृषि , उद्योग , पर्यटन , शिक्षा , चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में मप्र भले ही कितना आगे बढ़ गया हो लेकिन सरकारी महकमों के भ्रष्टाचार में अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है | नौकरशाही की निरंकुशता भी बदस्तूर जारी है जिसके कारण आम जनता के मन में गुस्सा है | ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि मप्र के सरकारी दफ्तरों में घूसखोरी चरमोत्कर्ष पर है | ग्रांम पंचायत से लेकर सचिवालय तक यही आलम है | यदि शिवराज मप्र को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते हैं तो इसकी शुरुवात उन्हें भोपाल स्थित राज्य सचिवालय से करनी होगी जहां से चलकर उसका विस्तार निचले स्तर तक होता है | ये बात भी बिलकुल सही है कि बड़े भ्रष्टाचार से आम जनता भले अप्रभावित रहती हो लेकिन छोटे स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार से उसका विश्वास व्यवस्था में खंडित होता है | चौथी पारी की पहली वर्षगाँठ पर मुख्यमंत्री से अपेक्षा है कि वे अपने सिंघम अवतार से आम जनता को भ्रष्टाचार से राहत दिलाने वाले काम करें | गोवा के मुख्यमंत्री रहे स्व. मनोहर पार्रिकर को आदर्श बनाकर यदि वे आगे बढ़ें तो उनकी गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के तौर पर हो सकती है | उल्लेखनीय है गत वर्ष सत्ता सँभालते ही कोरोना नामक जिस संकट से उनका सामना हुआ वह फिर लौट आया है | मुख्यमंत्री और उनकी पूरी सरकार को इस मुसीबत से प्रदेश को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंकनी होगी | टीकाकरण अभियान चलाने के साथ ही कोरोना का संक्रमण फैलने से रोकना बहुत ही बड़ा काम है | उम्मीद की जा सकती है कि पिछले अनुभवों के आधार पर वे कोरोना के दूसरे हमले का सामना भी सफलतापूर्वक कर लेंगे |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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