Wednesday 10 March 2021

रोहिंग्या भारत में भी फ़्रांस जैसे हालात बना देंगें



म्यांमार में राष्ट्रविरोधी गतिविधयों के कारण भगाये गये रोहिंग्या मुस्लिम मूलतः बांग्ला देश के हैं लेकिन बजाय वहां जाने के  बजाय वे अवैध रूप से भारत में घुस आये और बँगला देशी शरणार्थियों की तरह से ही देश के विभिन्न हिस्सों में डेरा जमाकर बैठ गये | हाल ही में जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्रों में बने शिविरों से हटाकर उन्हें वापिस  भेजने की कार्रवाई शुरू किये जाने पर उनकी तरफ से उत्पात मचाया जाने लगा | इसी के साथ ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ कि म्यांमार से चलकर ये जम्मू कैसे जा पहुंचे और पिछली केंद्र सरकार ने आतंकवादी छवि वाले इन विदेशी  मुस्लिमों को पाकिस्तान की सीमा के नजदीक बसाने की गलती क्या सोचकर की थी ? रोहिंग्या के विरुद्ध वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा दिखाई गई सख्ती का भी उन लोगों  ने विरोध किया जो नागरिकता कानून के विरुद्ध  आसमान सिर पर उठाये घूमते रहे | कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तो अख़बारों में लेख लिखकर रोहिंग्या के पक्ष में ये दलील दे डाली कि शरणार्थी को पनाह देना प्राचीन भारतीय परम्परा रही है | 1971 में बांग्ला देश से आये शरणार्थियों के पास तो वहां छिड़े गृह युद्ध का बहाना था लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार ने जिस कारण से निकाल बाहर किया था उस पर ध्यान दिए बिना ही भारत में उन्हें मानवीयता के आधार  पर क्यों  स्वीकार किया गया ये बड़ा सवाल है | जम्मू से उनके निकाले जाने के दौरान  ये खबर भी आ गयी कि उप्र के अनेक इलाकों में  रोहिंग्या मुसलमान फ़ैल गए हैं और भ्रष्ट शासन तंत्र का लाभ उठाते हुए आधार कार्ड जैसे दस्तावेज हासिल करने में सफल हो गए | यही नहीं बांगला देश से अपने बाकी परिजनोँ को बुलाने की व्यवस्था भी  वे कर रहे हैं | कुछ तो भारतीय  पासपोर्ट बनवाकर खाड़ी देशों में नौकरी हसिल करने में भी  सफल हो गए | हवाला कारोबार के अलावा अन्य अपराधिक गतिविधियों से उनका सम्बन्ध भी उजागर हो रहा है | धीरे - धीरे ये बात भी सामने आ रही है कि पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादी गतिविधियों से भी ये जुड़ते जा रहे हैं | सबसे बड़ी बात ये है कि म्यांमार में देश विरोधी गतिविधियों के कारण भगाए गए रोहिंग्या को भारत में पनाह देने के मामले में इतनी उदारता क्यों बरती गई और उन्हें जम्मू जैसे सीमावर्ती क्षेत्र में बसाये जाने की मूर्खता के पीछे क्या सोच रही ? बांग्ला देशी शरणार्थियों के रूप में पैदा हुई समस्या  नासूर बन चुकी है | वोट बैंक की राजनीति ने पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत की जनसंख्या में बड़ा असंतुलन पैदा कर  दिया है | बंगाल और असम में होने जा रहे विधानसभा  चुनाव में मतदाता बन चुके  बांगला देशी घुसपैठिये बड़ी भूमिका निभाएंगे जिनकी मिजाजपुर्सी में धर्म निरपेक्षता के झंडाबरदार जुटे हुए हैं | इन्हें वापिस भेजे जाने की चर्चा मात्र से ममता बैनर्जी भड़क उठती हैं | ऐसे में अब रोहिंग्या मुस्लिमों को भी बर्दाश्त किया जाना समझ से परे है और जो पार्टियां और नेता मानवीयता का हवाला देकर इनको शरण देने की वकालत कर रहे हैं वे राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से लापरवाह हैं | भारत में करोड़ों बँगला देशी पहले ही नागरिकता ले चुके हैं | बंगाल की वामपंथी सरकार ने भी उनको मतदाता बनाने में मदद की जिसके कारण असम , बंगाल , बिहार , उड़ीसा जैसे राज्यों के अनेक इलाकों में ये चुनाव को प्रभावित  करने की हैसियत हासिल कर चुके हैं | रोहिंग्या को लेकर भी वही गलती दोहराने  से बचना चाहिए क्योंकि  उनका अभी तक का आचरण  दर्शाता है कि वे पूरी तरह से विघटनकारी  और मानवीय संवेदनाओं से  परे हैं | कुछ लोगों का ये भी कहना है कि जम्मू और उप्र में रोहिंग्या के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई के पीछे बंगाल और असम के विधानसभा चुनाव हैं लेकिन इस तरह के कदम को राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में देखा जाना ज्यादा सही होगा | रोहिंग्या मुस्लिमों के हमदर्दों से भी  अपेक्षा है कि वे भारत को धर्मशाला बनने से रोकने में सहायक बनें न कि क्षणिक स्वार्थ के लिए राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करें | बांगला देशी शरणार्थी जिस तरह देश भर में फैलकर लाइलाज समस्या बन गये उसकी पुनरावृत्ति न हो ये ध्यान रखना नितांत जरूरी है वरना फ्रांस जैसे हालात अपने देश में कभी  भी बन सकते हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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