एक साल आज ही के दिन देश में लॉक डाउन लागू हुआ था | शुरुवात में 21 दिन की अवधि के लिए समूचे देश में लोगों को घरों में रहने की बंदिश लगाई गयी | ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि तीन सप्ताह में संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ दिया जाएगा | लेकिन जैसे - जैसे समय बढ़ता गया वैसे - वैसे लॉक डाउन में वृद्धि की जाती रही | जून के पहले हफ्ते से कुछ ढील देने की शुरुवात हुई लेकिन पूरी तरह से सामान्य स्थिति आते - आते पूरा साल बीत गया | और तब तक संक्रमण में कमी के साथ ही देश में निर्मित टीके की आपूर्ति भी सुनिश्चित हो गई | ऐसा लगने लगा कि भारत ने कोरोना के विरुद्ध जंग जीत ली है और तो और टीके का निर्यात दुनिया के अनेक देशों को करते हुए वैश्विक स्तर पर अपनी साख और धाक दोनों जमाई | प्रथम पंक्ति में रहकर कोरोना के विरुद्ध लड़ रहे वर्ग को सबसे पहले टीका लगाने के अभियान के बाद 1 मार्च से वरिष्ठ नागरिकों का टीकाकरण प्रारम्भ किया गया | आगामी 1 अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर की आयु वालों के भी टीकाकरण की शुरुवात होने जा रही है | भारत का कोरोना टीकाकरण अभियान विश्व में सबसे बड़ा है | सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क और निजी अस्पतालों में 250 रु. में टीकाकरण हो रहा है | जिसमें अस्पताल का 100 रु. शुल्क भी शामिल है | वैसे कुछ निजी चिकित्सालय टीके की मूल कीमत 150 रु. ही ले रहे हैं | इस प्रकार लाखों लोगों को प्रतिदिन टीका लगाया जा रहा है | अभी तक कुछ अपवाद छोड़कर टीकाकरण को लेकर सकारात्मक खबरें ही आ रही हैं जिससे लोगों के मन में व्याप्त शंकाएँ भी दूर होने लगी हैं | लेकिन जैसे ही टीका लगना शुरू हुआ वैसे ही कोरोना की वापिसी की खबरें भी आने लगीं | बीते कुछ सप्ताह में ऐसा लगने लगा कि घूम - फिरकर हालात पिछले साल जैसे ही बनने लगे हैं | प्रति दिन का आंकड़ा 50 हजार को पार कर चुका है | अनेक शहरों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लागू के बाद साप्ताहिक लॉक डाउन करना पडा और जब उससे भी बात नहीं बनी तब लम्बे लॉक डाउन का निर्णय लिया गया | नागपुर , पुणे , नासिक, मुम्बई , अहमदाबाद , इंदौर और भोपाल के अलावा अनेक शहर हैं जहां कोरोना ने पूरी ताकत से पलटवार किया है | ये स्थिति चिंता में डालने वाली है | बड़ी मुश्किल से अर्थव्यवस्था के साथ ही जन जीवन भी तेजी से सामान्य होने लगा था लेकिन बीत कुछ सप्ताहों ने मानों घड़ी की सुइयों को पीछे घुमा दिया | सवाल ये है कि कोरोना पर विजय हासिल करने के करीब पहुचंने के बाद आखिरकार ये हालात क्यों और कैसे बन गये ? इसके यूँ तो अनेक जवाब हो सकते हैं किन्तु सीधा और सपाट उत्तर है लोगों की लापरवाही | केवल मास्क का ही उपयोग किया जाता रहे तो भी कोरोना से काफी हद तक बचा जा सकता है | इस बारे में ये कहना पूरी तरह सही होगा कि न केवल अशिक्षित और अल्प शिक्षित वरन पूरी तरह से शिक्षित वर्ग में भी कोरोना संबंधी अनुशासन तोड़ने की होड़ सी लग गई | ये बात काफी पहले ही साफ हो चुकी थी कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों तक में कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर आ चुकी है जिसके लक्षण तो अलग हैं ही , ये पहले से ज्यादा खतरनाक है | बावजूद इसके जैसा एक साल पहले सोचा जा रहा था कि भारत का मौसम और लोगों की रोग प्रतिरोधक् क्षमता के कारण कोरोना यहाँ पांव नहीं जमा सकेगा ठीक उसी तर्ज पर दूसरी लहर को लेकर बेफिक्री का परिचय दिया गया जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण पूरी ताकत से आ धमका और एक साल पहले जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी | शिक्षण संस्थान , होटल , रेस्टारेंट , क्लब , धार्मिक स्थल , आदि में आवाजाही पर फिर से रोक लगाने की जरूरत आ गयी | त्यौहारों के आयोजन में भी इस कारण से प्रतिबन्ध लगाये जा रहे हैं | साप्ताहिक के साथ ही लम्बे लॉक डाउन की नौबत भी आ गई | टीकाकरण के समानांतर कोरोना का फैलाव वाकई विचित्र स्थिति का परिचायक है | लेकिन उसी के साथ ये परीक्षा की घड़ी भी है क्योंकि बीते एक साल में हुए नुकसान की भरपाई होने के पहले ही एक बार फिर अर्थव्यवस्था पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं | ये देखते हुए अब ये नागरिकों का कर्तव्य है कि वे कोरोना से जुड़े अनुशासन का कडाई से पालन करें | मास्क न पहिनने पर पुलिस को लोगों का चालान करना पड़े ये बहुत ही शोचनीय स्थिति है | 135 करोड़ की आबादी वाले देश में टीकाकरण अभियान सम्पन्न करवाना वाकई कठिन कार्य है | और फिर टीका लगने के बाद भी मास्क जैसे बचाव के साधन का उपयोग जरुरी होगा | इसलिए ये मान लेना ही बुद्धिमत्ता होगी कि आने वाले एक से दो साल तक कोरोना हमारे इर्द - गिर्द मंडराता रहेगा और ज़रा सी असावधानी में हम उसके शिकार हो जायेंगे | लॉक डाउन की पहली सालगिरह दरअसल इस बात के चिन्तन का अवसर है कि कोरोना के दूसरे हमले को कैसे बेअसर किया जाए | एक साल पहले तो हम ही नहीं लगभग पूरी दुनिया इस अदृश्य शत्रु से अनजान थी लेकिन अब तो उसकी चाल और चरित्र दोनों पता चल चुके हैं | ऐसे में अब उसके शिकंजे में फंसना हमारी अपनी गलती होगी | सावधानी हटी और दुर्घटना घटी जैसे नारे सिर्फ पढने की ही नहीं समझने की भी चीज है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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