Wednesday 3 March 2021

मप्र का बजट : कर्जे के बोझ के साथ ऊंची उड़ान का सपना




मप्र सरकार के बजट में  शिवराज सिंह चौहान  सरकार ने समाज के हर वर्ग को संतुष्ट करने का दावा किया है। चौतरफा विकास की गंगा बहाने के  आश्वासन के साथ  शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, व्यापार-उद्योग, अधोसंरचना, कर्मचारियों के वेतन-भत्ते जैसी मदों में भारी-भरकम आवंटन किये जाने की घोषणा भी  की गई है। प्रदेश के वर्तमान मेडिकल कालेजों की बदहाली के बावजूद  नए मेडिकल कालेज खोलने जैसा दुस्साहस भी बजट  घोषणाओं में है। वेतन बाँटने के लाले के बीच पुराने एरियर्स बाँटने का ऐलान कर्मचारी वर्ग के तुष्टीकरण का परम्परागत प्रयास है। शिक्षकों और पुलिस की  नयी भर्ती की घोषणा से बेरोजगारों में उम्मीद जगाने का प्रयास भी वित्तमंत्री ने  किया है। आंकड़ों की फसल इतनी  जबरदस्त है कि अच्छे - अच्छे अर्थशास्त्री भी भ्रमित  हो जाएँ। भाजपा के लिए ये सपने साकार करने वाला बजट है जो आत्मनिर्भर मप्र की राह प्रशस्त करेगा। उसे जनहितकारी भी  बताया जा रहा है क्योंकि उसमें  नया कर लगाने से परहेज किया गया  है। लेकिन  पेट्रोल-डीजल पर लगाये गये करों में राहत देने से भी सरकार ने कन्नी काट ली । उल्लेखनीय है मप्र देश के उन राज्यों में से है जहां  पेट्रोल - डीजल सबसे महंगा है। सत्ता  पक्ष ये  दावा भी कर रहा है कि कोरोना के कारण उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर इससे बढ़िया बजट बन ही नहीं सकता था। अपनी विफलताओं के लिए पिछली सरकार को कठघरे में खड़ा करने के रिवाज  को  दोहराने से भी परहेज नहीं किया जा रहा। दूसरी तरफ विपक्ष के लिए ये निराशा पैदा करने वाला जनविरोधी बजट है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से लेकर छोटे-छोटे विपक्षी नेता तक इसकी आलोचना  करते हुए कह रहे हैं कि इसमें  बेरोजगारों , किसानों , कर्मचारियों के अलावा व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिए राहत की कोई बात  नहीं है। समाज के विभिन्न  वर्गों से  बजट को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। उद्योग - व्यापार जगत नए कर नहीं लगने पर तो राहत का अनुभव कर रहा है परन्तु पुराने बोझ में कमी नहीं किये जाने को लेकर नाराजगी भरी निराशा भी है। अर्थशास्त्र के जानकारों की राय भी अलग-अलग है। इस सबसे हटकर देखें तो बजट में आत्मनिर्भर प्रदेश का जो संकल्प प्रदर्शित किया गया है वह तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक  कर्जे लेकर लोक-लुभावन घोषणाएं करने की नीति  बंद नहीं की जाती। महज चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने 2018 में सत्ता सँभालने के दस दिन के भीतर किसानों के  2 लाख तक के कर्जे माफ करने का वायदा किया था। लेकिन  कमलनाथ सरकार  उसे पूरा नहीं कर पाई। उसके बाद आई  शिवराज सरकार के लिये तो सिर मुड़ाते ही ओले गिरने जैसी  स्थिति बन गयी क्योंकि सत्ता संभालते ही लॉक डाउन आ टपका जिससे जूझने में शासन - प्रशासन की समूची शक्ति और संसाधन झोंकने पड़े। करों की उगाही ठप्प पड़ जाने से राज्य सरकार द्वारा रिजर्व बैंक से कर्ज पर कर्ज लिया जाना मजबूरी बन गई जो बढ़ते - बढ़ते प्रदेश के बजट से ज्यादा हो गया। इसके बाद बजट में किये गये वायदे और विकास के  काम किस तरह पूरे होंगे ये यक्ष प्रश्न है जो आत्मनिर्भर मप्र के लक्ष्य को ऐसे सुंदर सपने में तब्दील कर देगा जिसे  साकार करना असंम्भव है। हालांकि  इसे निराशावाद कहने वाले भी बहुत मिल जायेंगे लेकिन कटु बात यही है कि पैसे का व्यवहार पैसे से ही होता है नमस्कार से नहीं। शिवराज सिंह ने मप्र के विकास  के लिए काफी कुछ किया है। 2003  में दिग्विजय सिंह की सरकार जिस बिजली , पानी और सड़क के मुद्दे पर जनता द्वारा परास्त की गई थी उनमें  काफी सुधार हुआ है। बिजली ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच चुकी है। किसानों को सिचाई के लिए अब उसके इन्तजार में बैठे नहीं  रहना पड़ता। इसी तरह जल की व्यवस्था में भी  उल्लेखनीय  सुधार हुआ है और सड़कों की दशा तो चमत्कारिक रूप से सुधरी है। लेकिन बिजली की दरें  जिस तरह बढ़ती जा रही हैं वह जनता के लिए बोझ है। पेट्रोल - डीजल पर प्रदेश सरकार ने जितना करारोपण कर रखा है वह उसकी तमाम उपलब्धियों पर पानी फेरने के लिये काफी है। नए मेडिकल कालेज खोलने के इरादों पर भी तब सवाल खड़े हो जाते हैं जब मौजूदा में ही पढ़ाने वाले कम पड़ रहे हों। हालाँकि सीटें बढ़ाने का निर्णय स्वागतयोग्य है। वैसे बजट किसी  भी सरकार का हो वह देखने में तो आकर्षक ही  लगता है। लेकिन वास्तविकता ये है कि उसमें की गयी घोषणाओं को अमल में लाने के लिए संसाधनों का प्रबंध करने के लिए न तो कोई  ठोस कार्ययोजना होती है और न ही दूरदृष्टि। मप्र को वाकई आत्मनिर्भर बनाना है तो कर्ज के बोझ को कम करते हुए राहत और विकास के काम कैसे होंगे ये स्पष्ट होना चाहिए। कर्ज लेकर घी पीने की पुरानी कहावत की तर्ज पर  सरकार चलाने की नीति भारतीय  शासन प्रणाली का प्रतीक बनकर रह गया है। जबरदस्त घाटे के बोझ  के साथ  आकाश को छू लेने का प्रयास करना कितना व्यवहारिक होगा, ये विश्लेषण का विषय है। विपक्ष बजट की आलोचना करते हुए अपने धर्म का निर्वहन कर रहा है लेकिन सरकार उसकी होती तब वह भी ऐसे ही  सपने दिखाता जो कभी पूरे नहीं  होते।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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