बंगाल में जहां तृणमूल और भाजपा अपने दम पर बहुमत लाने के लिए हाथ - पांव मार रहे हैं , वहीं कांग्रेस, वामपंथी , फुरफुरा शरीफ के पीरजादा और अब्बासी के इंडियन सेकुलर फ्रंट के साथ मिलकर बना तीसरा मोर्चा मुस्लिम बहुल सीटों पर ध्यान केंद्रित कर दोनों का खेल बिगाड़ने के फेर में है। उसे पता है कि वह खुद बहुमत लाने में असमर्थ है इसलिए उसकी इच्छा है त्रिशंकु विधानसभा बने ताकि सत्ता का रिमोट उसके हाथ आ सके। भाजपा द्वारा जय श्री राम के जरिये ममता बैनर्जी को घेरने के बाद वे भी चंडीपाठ करते हुए खुद को हिन्दू साबित करने लगीं । लेकिन तीसरा मोर्चा इसे लेकर मुस्लिमों को फुसलाने में जुट गया है। उल्लेखनीय है राज्य की 294 में लगभग 100 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम मत थोक में जिसके साथ जाएंगे उसकी जीत सुनिश्चित है। 46 सीटों पर तो उनकी संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है वहीं 16 पर 40 , 33 पर 30 और 50 सीटों पर वे 25 फीसदी से ज्यादा बताये जा रहे हैं | कुल मतदाताओं के हिसाब से देखने पर राज्य में 30 प्रतिशत मुसलमान मतदाता हैं जिनके हाथ में चुनावी बाजी पलटने की ताकत बताई जा रही है | एक ज़माने में ये वाम मोर्चे के साथ थे और बीते 10 सालों से ममता के | भाजपा ने सुश्री बैनर्जी द्वारा किये गये तुष्टीकरण को जिस तरह मुद्दा बनाया उससे ये सम्भावना थी कि मुस्लिम गोलबंद होकर तृणमूल सरकार की वापिसी का रास्ता साफ़ कर देंगे | लेकिन पहले फुरफुरा शरीफ के पीरजादा ने चुनाव मैदान में उतरने की पहल की और बाद में मुस्लिम धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीकी द्वारा बनाया इन्डियन सेकुलर फ्रंट भी कूद पडा | हालाँकि बिहार में सफलता के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बंगाल में भी घुसने की कोशिश की किन्तु पीरजादा और सिद्दीकी को अपने पाले में खींचकर कांग्रेस और वामपंथियों ने उनकी उम्मीदों को ठंडा कर दिया | हालांकि वे अभी भी प्रयासरत हैं लेकिन बंगाल के मुस्लिम मतदाता ममता से छिटके तो जाहिर है वे पीरजादा और सेकुलर फ्रंट की तरफ झुकना पसंद करेंगे | यद्यपि वाममोर्चे और कांग्रेस दोनों में इसे लेकर गुस्सा है | जी 23 से जुड़े कांग्रेस के अनेक नेताओं ने भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ गठबंधन की खुलकर मुखालफत की वहीं साम्यवादियों के खेमे में भी इसे नापसंद किया जा रहा है | लेकिन इस गठबंधन के कारण मुस्लिम मतदाताओं द्वारा प्रभावित तकरीबन 100 सीटों पर संघर्ष तिकोना हो गया है | भले ही ममता अभी भी भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी होने के कारण मुसलमान मतदादातों की पहली पसन्द बनी हुई हैं लेकिन उनका अचानक सामने आया हिन्दू स्वरूप मुसलमानों में इस धारणा को बढ़ावा दे रहा है कि दीदी भी यदि हिन्दू कार्ड खेलने लगीं तब वे न घर के रहेंगे न घाट के | ऐसे में उनका एक धडा यदि तीसरे मोर्चे की तरफ झुक जाए तो ममता के समीकरण बिगड़ सकते हैं | अब तक आये लगभग सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भाजपा की सीटों में जबर्दस्त वृद्धि के बावजूद उसे बहुमत से दूर मान रहे हैं | साथ ही तृणमूल की संख्या में भी भारी गिरावट के आसार हैं | बहुमत के लिए आवश्यक 148 से कुछ ही ज्यादा सीटें ममता को मिलने के अनुमान में यदि 5 से 10 प्रतिशत की कमी आई तब तीसरे मोर्चे की लाटरी खुल जायेगी | ये बात तो पूरी तरह स्पष्ट है कि भाजपा किसी भी स्थिति में तृणमूल के साथ नहीं जायेगी और ममता के लिए भी ऐसा करना आत्म्घाती होगा | महबूबा मुफ्ती का हश्र वे भूली नहीं हैं | ऐसे में कांग्रेस और वामपंथी ही ममता के खेवनहार बन सकते हैं | ये भी संभव है कि त्रिशंकु की स्थिति में यदि अकेले उसके समर्थन से ममता सरकार की संभावना बनी तब कांग्रेस वामपंथियों से भी अलग हो जाये | हालाँकि ये सब राजनीतिक कयास हैं लेकिन इतना तय है कि यदि भाजपा बहुमत से वंचित होने पर भी 125 सीटों के करीब जा पहुँची तब तृणमूल 148 के जादुई आंकड़े से नीचे आ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा | यही कांग्रेस और वामपंथी चाह रहे हैं | विभिन्न एजेंसियों द्वारा किये जा रहे मैदानी सर्वे में भी कांग्रेस और साम्यवादियों के समर्थक खुलकर ये कहते सुने जा सकते हैं कि इस बार त्रिशंकु विधानसभा बनेगी | हालाँकि मुस्लिम मतदाताओं में से अधिकतर ममता का यशोगान करते हैं लेकिन एक तबका खामोशी ओढ़े बैठा है जिसमें वे लोग हैं जो ममता के चंडी पाठ को उनका अवसरवाद मानकर मुस्लिम मतों के स्वतंत्र अस्तित्व की बात सोचने लगे हैं | इस वर्ग को पीरजादा और अब्बास में अपना भविष्य नजर आ रहा है | दरअसल मुसलमानों को ये लग रहा है कि सभी पार्टियां भाजपा को रोकने के लिए हिन्दू हितैषी होने की होड़ में शामिल हो रही हैं | ऐसे में इसके पहले कि वे पूरी तरह किनारे धकेल दिये जाएँ उन्हें अपना खुद का नेतृत्व विकसित करना चाहिए | ओवैसी को बाहरी मानकर भले ही वैसा भाव न दिया गया किन्तु फुरफुरा शरीफ से जुड़े लाखों परिवारों के साथ ही अब्बास सिद्दीकी भी मुस्लिम युवाओं में पैठ बना चुके हैं | यदि यह मतों में तब्दील हुई तब नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं | बिहार इसका ताजा उदाहरण है | वैसे भी कांग्रेस और वामपंथियों के लिए बंगाल मे अपना अस्तित्व बनाये रखने का ये आख़िरी अवसर है | यदि तृणमूल और भाजपा में किसी को भी पूर्ण बहुमत मिल गया तो इनकी बची - खुची उम्मीदें भी बंगाल की खाड़ी में डूबकर रह जायेंगी |
-रवीन्द्र वाजपेयी
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