Saturday 13 March 2021

क्यों न कर्ज का नाम बदलकर मुफ्त उपहार कर दिया जावे



 तमिलनाडु से आ रही खबरों के अनुसार आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक सत्ता से बाहर होने जा रही है और द्रमुक भारी बहुमत के साथ दस साल बाद सरकार बना लेगी | करूणानिधि और जयललिता के निधन के बाद इस राज्य की राजनीति में दिग्गजों का अभाव साफ़ दिख रहा है | हालाँकि करूणानिधि के बेटे और चेन्नई के पूर्व महापौर स्टालिन प्रदेश की राजनीति में जाने पहिचाने चेहरे हैं जिसके जवाब में अन्नाद्रमुक के पास कोई  दमदार नेता नहीं है | वर्तमान मुख्यमंत्री  पलानि स्वामी की छवि अभी भी स्टेपनी की ही है | इनके अलावा फ़िल्मी सितारे रजनीकांत और कमल हासन ने भी अपनी - अपनी  पार्टी बनाकर राजनीति में उतरने का प्रयास किया  लेकिन वे आधे - अधूरे मन से आगे बढ़ने के बाद ठहरे हुए हैं | ऐसे में मुकाबला तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच ही होगा | कांग्रेस का  द्रमुक और भाजपा का  अद्रमुक के साथ गठबंधन  है | दक्षिण का ये राज्य , हिन्दी और उत्तर भारत के विरोध के लिए जाना जाता है | एक समय था जब यहाँ अलग तमिल राष्ट्र जैसी मांग भी उठी किन्तु श्री लंका में लिट्टे के खात्मे के बाद उसकी हवा निकल गई | बीती आधी शताब्दी से यहाँ की सियासत पर फ़िल्मी हस्तियों का कब्जा रहा | करूणानिधि , एमजी रामचंद्रन और जयललिता तमिल  फिल्म उद्योग से जुड़े हुए  थे | बीते कुछ सालों में जरूर ये सिलसिला टूटा लेकिन अभी भी वहां दोनों प्रमुख क्षेत्रीय दलों का ही आधिपत्य है और कांग्रेस तथा भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल इनका दामन पकड़कर चलने को मजबूर हैं | फ़िल्मी हस्तियों के वर्चस्व के कारण राजनीति भी लटकों - झटकों से भरपूर रही है | इसका प्रमाण चुनाव में किये जाने वाले वायदों से मिलता रहा | मिक्सर - ग्राइंडर , टीवी , मंगलसूत्र जैसे उपहार घोषणापत्र के वायदों में प्रमुखता से छाये रहते हैं | इनकी देखासीखी बाकी राज्यों में भी इसका अनुसरण किया जाने लगा | हालाँकि जयललिता द्वारा 2 रूपये में इडली का नाश्ता शुरू किये जाने जैसी योजना जनहित में मील का पत्थर साबित हुई जिसकी नकल करते हुए ममता बैनर्जी ने भी बंगाल की जनता से वैसा ही वायदा किया है | लेकिन जो नई बात सुनाई दे रही है उसके अनुसार अपनी जमीन खिसकते देख अन्नाद्रमुक ने स्वर्ण लोन  माफी जैसा वायदा उछालकर सत्ता में वापिसी का दांव चल दिया है | राजनीतिक  विश्लेषकों के अनुसार इस वायदे की वजह से मैदान  से बाहर हो रही सत्तारूढ़ पार्टी वापिस मुकाबले  में उतरने लायक हो गई है | कुछ लोग तो इसे चुनाव  की दिशा बदलने वाला पैंतरा बता रहे हैं | इसका कारण ये है कि स्वर्ण आभूषणों के प्रति तमिलनाडु में जबर्दस्त आकर्षण है | देश भर के हालमार्क केन्द्रों में से 30 फीसदी इसी राज्य में हैं | सहकारी  संस्थाओं द्वारा वितरित 20 हजार करोड़ रु.  के  ऋणों में लगभग 7 हजार करोड़ सोना गिरवी रखकर लिए गये ऋण ही हैं | प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 15.5 लाख महिलाओं को इस प्रस्तावित ऋण माफी का  लाभ मिलेगा | अन्नाद्रमुक के इस चुनावी बाउंसर से द्रमुक चिंतित  हो उठी है | 48 ग्राम तक के स्वर्ण  ऋण माफ़ करने का वायदा किसानों के कर्जे माफ़ किये जाने जैसा करिश्माई साबित होने की अटकलें लगाई  जाने लगी हैं | सुना है द्रमुक के चुनाव सलाहकार प्रशांत किशोर इस दांव का जवाब तलाशने में जुट गये हैं  | लेकिन इससे इतर देखें तो क्या इस तरह के वायदे मतदाताओं को घूस देने की श्रेणी में नहीं  आते ? चुनावों के दौरान सख्ती का प्रतीक बन जाने वाला चुनाव आयोग इस मुफ्तखोरी पर अंकुश लगाने के मामले में क्यों उदासीन बना रहता है , ये बड़ा सवाल है | लोकतंत्र में जनहित की नीतियों को लागू किया जाना हर दृष्टि से वांछनीय है  किन्तु ये भी देखा जाना जरूरी है कि समाज के एक वर्ग को दिए जाने वाली मुफ्त सुविधा का भार दूसरे वर्ग पर पड़ता है | जिन सहकारी संस्थाओं द्वारा दिये गये स्वर्ण ऋण माफ़ किये जाने का वायदा अन्नाद्रमुक ने किया है उनकी भरपाई करने में राज्य सरकार द्वारा की जाने वाली देरी से उनका आर्थिक आधार डगमगाना तय है | किसानों के  कर्जे माफ़ किये जाने वाले राज्यों में ऋण देने वाले बैंकों और सहकारी संस्थाओं के सामने भारी संकट उत्पन्न हो गया क्योंकि  चुनावी वायदा सुनते ही कर्जदारों ने अदायगी बंद कर दी वहीं सत्ता में आने के बाद सरकार उनकी भरपाई में टरकाऊ रवैया दिखाती रही | मप्र , राजस्थान , छतीसगढ़ , पंजाब जैसे राज्यों में  किसानों के कर्ज माफ़ करने की घोषणा ने सरकार और वित्तीय संस्थानों के लिए मुसीबत पैदा कर दी | सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह के वायदों से सत्ता हथियाए जाने के कारण जनता की मानसिकता में  भी  मुफ्तखोरी बढ़ रही है | पहले के जमाने में कर्ज को बुरा माना जाता था लेकिन राजनीति के चलते  लोग  कर्ज लेने और फिर अदा न करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं  | उस  दृष्टि से      तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक द्वारा स्वर्ण ऋण माफ़ किये जाने का चुनावी वायदा बहुत ही खतरनाक संकेत है | भाजपा का उसके साथ गठबंधन है लेकिन वह राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद उस पर हावी होने की स्थिति में नहीं है | लेकिन उसे चाहिए वह इस तरह के वायदों से खुद को दूर रखे क्योंकि चुनाव दर चुनाव ये बढ़ता  ही जा रहा है | ये सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा कहना कठिन है | चुनाव आयोग को भी इस बारे में कड़ाई दिखानी चाहिए | यदि मुफ्त खैरात बांटने पर रोक नहीं  लगाई जाती तब बड़ी बात नहीं आने वाले समय में कर्ज का  नाम बदलकर मुफ्त उपहार करना पड़ेगा | गरीबों की मदद करना बुरा नहीं है लेकिन उन्हें मुफ्तखोर बनाना देश के दूरगामी हितों के विरुद्ध होगा |  

- रवीन्द्र वाजपेयी



No comments:

Post a Comment