Saturday 27 March 2021

ढाका यात्रा में निहित हैं चीन और पाकिस्तान के लिए संदेश



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लम्बे अंतराल के बाद विदेश यात्रा पर गत दिवस बांग्लादेश पहुंचे | कोरोना के कारण  बीते एक साल से भी ज्यादा से वे देश से बाहर नहीं गए थे | इस यात्रा के लिए बांग्लादेश का चयन बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष वह अपनी स्थापना की आधी सदी पूरी कर रहा है | ये भी सुखद संयोग है कि वहां प्रधानमंत्री पद पर बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना विराजमान हैं जिनके शासनकाल में दोनों देशों के रिश्ते काफी मधुर हुए | अन्यथा 1975 में  शेख साहब की हत्या के बाद वहां जिस तरह का फ़ौजी शासन आया उसके कार्यकाल में दोनों देशों के बीच  सम्बन्ध  काफी तनावपूर्ण हो गये | एक समय ऐसा भी आया जब पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादी संगठन बांग्लादेश की धरती से भारत विरोधी षडयन्त्र रचने लगे | लेकिन जबसे शेख हसीना का राज आया और भारत में  श्री मोदी सत्ता में आये तबसे न सिर्फ कूटनीतिक वरन व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्तों में  काफी सुधार आया है | हालाँकि आज भी इस्लामिक कट्टरपंथ इस देश में जड़ें जमाये हुए है जिसके चलते वहां रहने वाले हिन्दुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर हमले होते रहते हैं | बीच - बीच  में सीमा विवाद  और शरणार्थी समस्या को लेकर बांग्लादेश नाराज भी हुआ जिसका लाभ लेकर चीन ने वहां अपना प्रभाव बढ़ाने की काफी कोशिश की परन्तु  मौजूदा स्थिति में ढाका और नई दिल्ली के बीच संवाद और संपर्क पूरी तरह से सौजन्यतापूर्ण बना हुआ है | रोहिंग्या मुस्लिमों की वापिसी  के  अलावा नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बांग्लादेश में कुछ नाराजगी देखी गई किन्तु कोरोना काल  में भारत  ने जिस दरियादिली से अपने इस पड़ोसी की चिंता की उससे छोटे - छोटे विवाद गौण होकर रह गए | वैसे भी  बांग्लादेश के निर्माण में भारत की ऐतिहसिक भूमिका को देखते हुए अन्य किसी देश के राजप्रमुख का वहां जाना उतना प्रासंगिक नहीं होता | अपनी स्थापना  के समय दुनिया के सबसे गरीब देश के तौर पर जाना जाने वाला ये देश आज विकास की तेज रफ्तार के लिए प्रसिद्ध  हो रहा है | उसकी सीमा का बड़ा हिस्सा भारत से मिलता है जिससे होते हुए घुसपैठिये आते रहे हैं जिनके कारण असम , बंगाल और बिहार के बड़े हिस्सों में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ चुका है | असम में तो घुसपैठियों की वापिसी बड़ा राजनीतिक मुद्दा है | पिछली सरकारों ने चुनावी फायदे के मद्देनजर इन घुसपैठियों को मतदाता बनाकर अपना उल्लू तो सीधा कर लिया किन्तु देश के सामने बड़ी समस्या पैदा कर दी | इन घुसपैठियों की पहिचान और उसके बाद वापिसी ऐसा मुद्दा है जिसका कोई हल दूरदराज तक नजर नहीं आता | यद्यपि सीमा पर तार लगाने से घुसपैठ काफी कम हुई है लेकिन आज भी बड़ी संख्या में पशुधन की तस्करी होती है | सीमावर्ती कुछ इलाकों का विनिमय कर विवादों को हल करने की समझदारी भी दोनों देश दिखा चुके हैं | लेकिन साझा  भाषायी और सांस्कृतिक विरासत के बावजूद बीत पांच दशक में भारत और बांग्लादेश उतने करीब नहीं आ सके जितनी प्रारंभ में अपेक्षा थी |  इसका बड़ा कारण हमारी विदेश नीति में कमी रही जिसके कारण नेपाल की तरह से बांग्लादेश में भी  भारत को लेकर ये संदेह बना रहा कि वह  उस पर काबिज हो जाएगा | नेपाल के साथ तो  रिश्तों में सरकारी  न सही लेकिन  जनता के स्तर  पर फिर भी  काफी सहजता बनी रही जिसका कारण उसका हिन्दू राष्ट्र  होना था किन्तु शेख  मुजीब के मारे जाते ही बांग्लादेश भी  पाकिस्तान की तरह इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर अग्रसर होता गया | हालांकि 1971 में स्व. इंदिरा गांधी  चाहतीं तो बांग्लादेश से वैसी ही सैन्य सुरक्षा संधि कर सकती थीं जैसी दूसरे महायुद्ध के बाद अमेरिका ने प. जर्मनी , जापान और द. कोरिया के साथ की थी | यदि वह हो जाती  तब शायद शेख मुजीब की हत्या और तख्ता पलट न हो पाता और लम्बे समय तक भारत के साथ उसके रिश्तों में शत्रुता का भाव न बना रहता | बांग्लादेश के बंदरगाह भारत के लिए दक्षिण एशिया में व्यापार बढाने के लिए उपयोगी हो सकते हैं |  इसके अलावा उसकी सैन्य जरूरतों को भारत पूरा कर सकता है | सॉफ्टवेयर और अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में भी बांग्लादेश भारत की मदद ले सकता है | दोनों देशों का रहन - सहन  , खान - पान , पहिनावा और सांस्कृतिक समानताएं भी  रिश्तों में मजबूती ला सकती हैं | लेकिन इसके लिए विश्वास पैदा करना जरूरी है | बांग्लादेश को इस्लामी कट्टरवाद से दूर रखना भारत के लिए जरूरी है जिसके लिए उसके मन में समाई इस धारणा को दूर करना जरूरी है कि भारत उसको हड़पना चाहता है | श्री मोदी ने इसके पहले भी इस देश की यात्रा की थी जिसके काफ़ी सकारात्मक परिणाम आये | कोरोना काल के बाद से चीन की साख और धाक दोनों में जबरदस्त कमी आने से पड़ोसी देश भारत की तरफ देखने लगे हैं | श्री लंका इसके संकेत दे ही चुका है और अब नेपाल भी चीन की चाल में फंसने से बचने के फिराक में है | श्री  मोदी की ये यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब पाकिस्तान भी भारत से रिश्ते सुधारने की इच्छा जता रहा है | पिछली गर्मियों में चीन के साथ हुए सीमा विवाद के दौरान  भारत ने जिस साहस और कूटनीतिक दृढ़ता का परिचय दिया उससे न सिर्फ पड़ोसी अपितु दुनिया की बड़ी शक्तियां तक उसके प्रभाव को स्वीकार कर रही हैं | पाकिस्तान की तरफ से बढ़ाए गये दोस्ती के हाथ को थामने के पहले श्री मोदी की ढाका यात्रा में बिना कहे ही चीन और पाकिस्तान के लिए अनेक सन्देश निहित हैं | बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना व्यक्तिगत तौर पर चूँकि भारत के प्रति बहुत ही संवेदनशील हैं इसलिए ये उम्मीद की जा सकती है कि ये यात्रा रिश्तों को और मजबूत बनायेगी | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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