Saturday 6 March 2021

मनोरंजन की आड़ में नग्नता के फैलाव पर रोक जरूरी



एक समय था जब भारत में माँ - बाप बच्चों को सिनेमा देखने तक से  रोकते थे | लेकिन पहले टेलीविजन और उसके बाद इंटरनेट के उदय ने मनोरंजन को सर्वसुलभ कर दिया | जिन बच्चों को रेडियो पर गाने सुनने से भी  रोका जाता था उनके हाथ में मोबाइल फोन आते ही वे अपनी उम्र से ज्यादा  बड़े होने लगे | इन दिनों जिस ओटीटी की सर्वत्र चर्चा हो रही है वह  सिनेमा के नये विकल्प के तौर  पर आ धमका है | बीते दो दशक में परम्परागत सिनेमाघरों की जगह तेजी से मल्टीप्लेक्स खुले लेकिन ओटीटी ने उस व्यवसाय को भी खतरे में  डाल दिया है | वेब सीरीज नामक नई विधा आजकल सामान्य चर्चाओं का विषय बनने लगी है | इसके कारण मनोरंजन उद्योग में जबरदस्त बदलाव आने लगा है | लेकिन इसके जरिये  भारतीय दर्शकों के समक्ष जो कुछ परोसा जा रहा है उससे समाज में एक हलचल भी है | भारतीय संदर्भों में खुलेपन को लेकर एक विशिष्ट सोच है जिसमें अश्लील दृश्यों और संवादों के बारे में मर्यादाओं की  रेखा  भले ही सदियों पुरानी है किन्तु औसत भारतीय परिवारों में आज भी  न सिर्फ बच्चों अपितु वयस्क सदस्यों के बीच भी खुलेपन के बारे में संकोच देखा जा सकता है | यही वजह है कि जिस ओटीटी का सस्ते और सहज मनोरंजन के रूप  में स्वागत किया गया अब उसके सामने लक्ष्मण रेखाएं खींचने का प्रयास हो रहा है | गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय ने इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार को लताड़ते हुए कहा कि केवल नियम बनने से काम नहीं  बनने वाला | न्यायालय ने इंटरनेट , ओटीटी  के साथ डिजिटल मीडिया पर परोसी जा रही अश्लीलता को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के निर्देश भी दिए जिसके लिए सरकार ने समय मांग लिया | बीते एक वर्ष में कोरोना की वजह से फिल्मों के निर्माण में बहुत बाधा आई | सिनेमाघरों के बंद हो जाने से मनोरंजन उद्योग का कारोबार ठप्प हो गया | लेकिन इसी दौरान लघु फिल्मों ओर वेब सीरीज ने जोर पकड़ा और देखते - देखते  ये नया तरीका जनता को रास आने लगा | टीवी धारावाहिकों की जगह वेब सीरीज चर्चा में शुमार होने लगी | लेकिन मनोरंजन के नाम पर ठेठ पश्चिमी शैली में जिस तरह से नंगापन मनोरंजन की आड़ में पेश किया जाने लगा  और उसे नियंत्रित करने में सरकार की असमर्थता  सामने आई इसके बाद से ही मामला अदालत की देहलीज पर जा पहुंचा | हिंसा और अन्तरंग दृश्यों के अलावा गालियों से भरे संवादों की वजह से ओटीटी प्लेटफार्म नामक मनोरंजन का ये साधन समाज के एक बड़े वर्ग विशेष रूप से युवा पीढी को अपने मोहपाश में जकड़ता जा रहा है | सर्वोच्च न्यायालय में एक कम्पनी का बचाव करते हुए एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा  कि मेरे घर चलिए , ऐसी सैकड़ों फ़िल्में हैं जिनमें नग्नता ( पोर्न ) नहीं है | उनकी बात पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन ये भी सच है कि ओटीटी के रूप में जो नया छोटा पर्दा मनोरंजन का नया जरिया बन गया उस पर नियन्त्रण कर पाने में मौजूदा नियम कानून पूरी तरह असहाय साबित हुए हैं | इसीलिये न्यायालय को ये कहना पडा कि अश्लील सामग्री रोकने के लिए सरकार कानून बनाये | लेकिन सवाल ये है कि सरकार इस बारे में अभी तक इतनी उदासीन क्यों रही ? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मनोरंजन उद्योग के माध्यम से  भारतीय समाज में मानसिक विकृति को जन्म देने का जो घिनौना कार्य किया गया  उसकी वजह से यौन अपराधों में अकल्पनीय वृद्धि हुई | सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि किशोरावस्था में प्रविष्ट बच्चे तक ऐसी वारदातों में शामिल देखे जा रहे हैं | पारिवारिक रिश्तों की पवित्रता नष्ट किये जाने की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि के पीछे भी मनोरंजन की शक्ल में फ़ैल रही अश्लीलता ही है | अभी तक तो केवल इन्टरनेट के जरिये फैले पोर्नोग्राफी के कारोबार को लेकर ही चिंता व्यक्त की जाती थी किन्तु अब ओटीटी रूपी इस माध्यम ने डरावनी स्थित उत्पन्न कर दी है | इसके पहले कि अश्लीलता के  कारोबारी समाज की सोच को पूरी तरह विकृत करने में सफल हो जाएँ , सरकार और समाज के जिम्मेदार लोगों को आगे बढकर उसे रोकने की दृढ़ता दिखानी चाहिए | भारत भले ही  कितना भी आधुनिक और  पश्चिमपरस्त हो जाए लेकिन वह नग्नता को संस्कृति मानने के लिए कभी तैयार नहीं होगा | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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