Monday 22 March 2021

दागदारों की भीड़ में कौन बेदाग़ है कह पाना कठिन




मुकेश अम्बानी के घर के सामने मिली एक कार में विस्फोटक सामग्री पाए जाने के बाद हुए घटनाक्रम में नाटकीय मोड़ आ रहे हैं | इसी क्रम में मुम्बई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को हटाकर महत्वहीन कहे  जाने वाले पद पर भेज दिया गया | जिसके बाद उनका मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखा  वह पत्र सार्वजानिक हो गया जिसमें उन्होंने  आरोप लगाया कि गृह मंत्री  अनिल देशमुख ने  संदर्भित प्रकरण में गिरफ्तार किये गए चर्चित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे   को प्रतिमाह डांस बार , रेस्टारेंट , होटल और ऐसे ही अन्य व्यवसायों से 100 करोड़ रु.  वसूली का लक्ष्य  दिया था |  ईमेल से भेजे उक्त पत्र की वास्तविकता को लेकर संदेह था किन्तु श्री सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि वह उन्होंने ही भेजा था | जिस कार को लेकर सारा बवाल शुरू हुआ उसके मालिक की रहस्यमय मौत के बाद उसकी पत्नी ने  वाजे पर आरोप लगा दिए इसलिए बात आगे बढ़ गई वरना लीपापोती हो जाती | और फिर विस्फोटक मिलने से जांच में एनआईए कूट पड़ी जिसके बाद ये साफ होने लगा कि सचिन  के बारे में जो सुना जा रहा था वह उससे भी बहुत आगे है | सबसे बड़ी बात ये देखने में आई कि पूरी शिवसेना उसके बचाव में खड़ी थी | यहाँ तक कि श्री ठाकरे भी तरफदारी करते दिखे | इस पर राकांपा प्रमुख शरद पवार  ने उनसे मिलकर नाराजगी भी जताई जिसके बाद परमबीर का तबादला किया गया परन्तु  उन्होंने जो धमाका किया उससे श्री पवार के लिए शर्मनाक हालात बन गये | विपक्ष ने स्वाभाविक तौर पर गृहमंत्री को  तत्काल हटाये जाने की मांग उठा दी वहीं कांग्रेस ने भी उसके सुर में सुर मिला दिया | ऐसे में जो दबाव श्री ठाकरे पर था वह घूमकर श्री पवार पर आ गया क्योंकि उनकी कृपा से गृहमंत्री बने श्री देशमुख पर लगे  आरोप  से पूरी पार्टी निशाने पर आ गई | ये कहना भी गलत नहीं होगा कि श्री पवार द्वारा बनवाये गये किसी मंत्री की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि वह उनको नजरअंदाज करते हुए इतनी बड़ी रकम अकेले हजम कर जाए | बहरहाल अभी तक की खबरों के अनुसार श्री पवार ने मामला मुख्यमंत्री पर ढाल दिया और ये भी कह  दिया कि सचिन को निलम्बन के बाद नौकरी पर बहाल करने में परमबीर का ही हाथ था | ऐसा कहकर शायद वे श्री ठाकरे पर निशाना साधना चाहते हैं जिनका वरदहस्त वाजे  की ताकत माना  जाता रहा | उल्लेखनीय है लम्बे समय  तक निलम्बित रहने  के दौरान वह शिवसेना में बतौर प्रवक्ता कार्यरत था और नौकरी में लौटते ही उसे एक के बाद एक महत्वपूर्ण दायित्व सौंप दिये गये जिनकी तरफ श्री पवार ने भी  इशारा किया | इस घटनाचक्र ने महाराष्ट्र सरकार के अस्तित्व पर भी  सवाल उठा दिए हैं क्योंकि वाजे के बुरी  तरह फंस जाने के बाद श्री पवार ने शिवसेना पर दबाव बनाने की जो कोशिश की थी वह परमबीर के आरोप के बाद उल्टी पड़ गई  और  छींटे  उनके दामन पर भी पड़ने लगे  | परमबीर से भी ये पूछा जा रहा है कि उन्होंने अपने तबादले के बाद ही इतने बड़े खुलासे का सहस क्यों दिखाया ? सवाल और भी हैं जिनका जवाब जांच से मिल सकता है और शायद  न भी मिले क्योंकि मुकेश अम्बानी के घर के बाहर मिली कार के मालिक की हत्या के बाद सारा ध्यान आकर  वाजे पर केन्द्रित हो गया | जाहिर है शिवसेना का वह प्रिय पात्र रहा है वरना परमबीर की क्या औकात थी जो  अचानक उसे बेहद ताकतवर बना दिया गया | जो कुछ भी  सामने आया है उसके बाद सचिन के भ्रष्ट और शातिर दिमाग  होने के साथ ही ये भी साफ़ हो चुका  है कि वह राज्य की  वर्तमान  सत्ता का खासमखास था और पुलिस की नौकरी उसके लिए महज दिखावा थी |  श्री ठाकरे की मुसीबत ये है कि गृहमंत्री को हटाये जाने से  पूर्व पुलिस कमिश्नर की चिट्ठी में लगाये गये आरोपों की प्रथम दृष्टया पुष्टि मान ली जायेगी जो श्री पवार को शायद ही पसंद आये  | यही वजह है कि न तो श्री देशमुख ने नैतिकता के आधार पर कुर्सी छोड़ने का बड़प्पन दिखाया और न ही उनके राजनीतिक आका श्री पवार ने उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया | गृहमंत्री को हटाये जाने का फैसला मुख्यमंत्री पर छोड़ने की उनकी टिप्पणी के पीछे भी राजनीति है जबकि उन जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता से अपेक्षा थी कि वे श्री देशमुख को निर्दोष  साबित होने तक सरकार से बाहर रहने का निर्देश देते | और ऐसे में विपक्ष का ये आरोप अपने आप में संज्ञान योग्य हो जाता है कि गृह मंत्री द्वारा की जा रही  कथित वसूली में उनकी पार्टी के उच्च नेतृत्व की भी भूमिका है | आश्चर्य इस बात का है कि महाराष्ट्र की इस संयुक्त सरकार के पालक - पोषक श्री पवार ही हैं | ऐसे में उनके द्वारा गृह मंत्री को हटाये जाने का मामला श्री ठाकरे पर छोड़ा जाना एक तरह से उन  पर  दबाव बनाने का तरीका है | सबसे बड़ी बात ये है कि एक कार को रहस्यमय तरीके से श्री अम्बानी के घर के सामने विस्फोटक सामग्री के साथ छोड़ जाने के मामले में वाजे की संलिप्तता का खुलासा होने के साथ ही उसके पास मिली महंगी गाड़ियां , सबूत नष्ट किये जाने का दुस्साहस और उसके बाद मिले राजनीतिक संरक्षण से जो बातें निकलकर सामने आईं वे सब गृहमंत्री पर लगाये गये आरोप से उड़ी धूल में दबाये जाने का चिर परिचित षड्यंत्र शुरू हो चुका है | परमबीर ने श्री देशमुख को घेरकर बर्र के छत्ते में पत्थर मार दिया है | जिसके बाद उद्धव पर हावी हो रहे श्री पवार सकपकाहट में हैं | इस आरोप के बाद परमबीर खुद को दूध का धुला साबित करने के अलावा वाजे को भी निरीह बताकर उसके गुनाहों पर पर्दा डालने का दांव चल रहे हैं , जिसके पीछे शिवसेना  की रणनीति हो तो अचंभा नहीं होगा |  लेकिन एक बात  आईने की तरह साफ है कि सचिन वाजे ने जो किया वह  अकेले उसके  बूते की बात नहीं थी | जाहिर है उसे ऊपरी  संरक्षण प्राप्त था अन्यथा वह इतना बड़ा अधिकारी नहीं था जो इतनी बड़ी घटना को इस आत्मविश्वास के साथ अंजाम देता कि उसको पकड़ने वाला कौन है ? परमबीर खुद को बचाने के  लिये हरिश्चंद्र बन रहे हैं या वे भी  सचिन वाजे की तरह किसी के मोहरे  हैं और  उद्धव सरकार रहेगी या जायेगी ये उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा जितना ये कि परमबीर द्वारा लगाये आरोप पर अभी तक गृहमंत्री श्री देशमुख ने  कोई अनुशासनात्मक  या कानूनी कार्रवाई करने की  हिम्मत नहीं दिखाई | जहां तक जनता का सवाल है तो उसे पूरा विश्वास है कि इस मामले से जुड़े जितने भी पात्र सामने आये हैं उनमें से किसी का भी दामन बेदाग नहीं है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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