Tuesday 6 April 2021

गुजरात और बंगाल दोनों हैं तो इसी देश में



बंगाल की  मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अपने गुस्से के लिए मशहूर हैं | विधानसभा  चुनाव के पहले  उनकी पार्टी तृणमूल के ढेर सारे नेताओं का भाजपा में चला जाना उनके गुस्से को  बढ़ाने  वाला रहा | लेकिन उनकी नाराजगी इस बात पर ज्यादा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल में भाजपा के प्रचार की बागडोर संभाल रखी है | हालाँकि राज्य से भाजपा के 18 लोकसभा सदस्य  हैं लेकिन वहाँ पार्टी के पास एक  दमदार नेता नहीं है जिसे ममता की टक्कर का कहा जा सके | इसीलिये उसने अपना मुख्यमंत्री  उम्मीदवार घोषित नहीं किया | बीते कुछ सालों से भाजपा ने मप्र सरकार  के पूर्व मंत्री कैलाश  विजयवर्गीय को बंगाल में तैनात कर रखा है जिन्होंने बड़ी ही कुशलता से भाजपा को  मुकाबले में ला खड़ा किया | ममता ने इसी मुद्दे पर अपने चुनाव अभियान को केन्द्रित रखते हुए बंगाल की बेटी का नारा गुंजा दिया | तीसरे दौर के मतदान के एक दिन पहले उन्होंने तीखे शब्दों में कहा कि बंगाल पर गुजरात के लोगों ( मोदी - शाह ) को राज नहीं  करने देंगे | चुनाव परिणाम तो  मतदाता तय करेंगे किन्तु प्रांतवाद की ये धारणा  राष्ट्रीय एकता के लिए नुकसानदेह है | 1956 में भाषावार प्रान्तों की रचना  कितनी घातक साबित हुई ये किसी से छिपा नहीं है | दशकों बीत जाने के बाद भी भावनात्मक मुद्दे आग भड़काते हैं | उस दृष्टि से ममता ने कई नया काम नहीं किया | महाराष्ट्र में तो इस तरह की बातें अक्सर सुनाई देती रही हैं | सवाल ये है कि क्या बंगाल सिर्फ बंगालियों का है ? इसी तरह क्या केवल मराठी भाषी महाराष्ट्र और तमिल बोलने वाले तमिलनाडु में रह सकते हैं ? सुश्री बैनर्जी की अपनी पार्टी के तमाम प्रवक्ता गैर बंगाली हैं | चुनाव जीतने के लिए जिन प्रशांत किशोर की सेवायें उनके द्वारा ली जा रही हैं वे भी बाहरी हैं | कुछ समय पहले तक तृणमूल के वरिष्ठ राज्यसभा सदस्य रहे दिनेश त्रिवेदी तो गुजराती मूल के ही हैं | बंगाल सहित पूरे पूर्वोत्तर में मारवाड़ी व्यवसायी पीढ़ियों से रह रहे हैं और इस अंचल के  औद्योगिक विकास में उनकी महती भूमिका रही है | बिरला परिवार का तो मुख्यालय ही एक तरह से कोलकाता हुआ करता था | जहां तक राजनीति की बात है तो देश आजाद होने के बाद बंगाली मूल की सुचेता कृपलानी देश के सबसे बड़े राज्य उप्र की मुख्यमंत्री रहीं वहीं अलाहाबाद से जुड़े कश्मीरी पंडित परिवार के डा. कैलाशनाथ काटजू मप्र के मुख्यमंत्री बनाये गये थे | राज्यसभा में तो दूसरे राज्यों के नेताओं का चुना जाना सामान्य बात है | दस साल तक देश के प्रधानमन्त्री रहे डा. मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा में आते रहे हैं | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद महाराष्ट्र से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं | तमिलनाडु में अम्मा के नाम से मशहूर रहीं स्व. जयललिता स्वयं कर्नाटक की थीं जबकि अभिनेता से नेता बने रजनीकांत मूल रूप  से मराठी भाषी हैं | और भी अनेक उदहारण हैं जिनमें एक राज्य के किसी नेता  ने  अन्य राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान  बनाया हो | बंगाल में भले ही  गुजराती मूल के लोग कम रहते हों लेकिन उप्र और बिहार से लाखों लोग वहां रोजगार के लिए आये और वहीं के होकर रह गये | बाहरी  व्यक्ति को लेकर स्थानीय भावनाएं दरअसल रोजगार के  अवसर छिन जाने की आशंका से उग्र होती हैं | लेकिन जिस संदर्भ में सुश्री बैनर्जी ने बंगाल पर किसी  गुजराती द्वारा राज नहीं किये जाने की बात कही और उससे उनका मानसिक तनाव  ही व्यक्त हुआ है | कुछ दिन पहले ही उनकी पार्टी की एक सांसद ने चुनौती भरे अंदाज में कहा था कि दीदी अगला चुनाव बनारस से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध लड़ेंगी | अपने राज्य में केवल बंगालियों का वर्चस्व चाहने वाली नेत्री के  किसी  और राज्य से लड़ने की बात किस मुंह से कही जा रही है ये बड़ा सवाल है |  समाजवादी आन्दोलन से जुड़े स्व. जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव अपने मूल राज्य से निकलकर बिहार में जाकर स्थापित हो गये | ये भारतीय राजनीति के संघीय स्वरूप को व्यक्त करता है | बंगाल की दार्जिलिंग सीट से भाजपा के स्व.जसवंत सिंह और एस.एस  अहलुवालिया लोकसभा के लिए चुने जाते रहे जबकि दोनों दूसरे राज्यों के थे | स्व. इंदिरा गांधी ने कर्नाटक की चिकमंगलूर और अविभाजित आन्ध्र की मेडक लोकसभा  सीट से चुनाव जीता वहीं सोनिया गांधी कर्नाटक की वेल्लारी से सांसद रह चुकी हैं | उनके पुत्र राहुल गांधी  वर्तमान लोकसभा में केरल की  वायनाड सीट के सांसद हैं | 2014 में जब श्री मोदी उप्र की वाराणसी सीट से लड़ने गए तब तक उनका उस शहर या राज्य से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था | वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात की गांधी नगर सीट का लम्बे समय तक लोकसभा में प्रातिनिधित्व किया था | पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज मप्र की विदिशा सीट से चुनी जाती रहीं जबकि वे थीं हरियाणा की | भारतीय राजनीति में ऐसी तमाम नजीरें भरी पडी हैं | 2018 में मप्र के मुख्यमंत्री बने कमलनाथ 1980 में इंदिरा जी के कृपा से  लोकसभा चुनाव लड़ने भेजे गये | उनका मप्र से  तब कोई जुडाव नहीं था | आज भी वे बाहरी ही कहे जाते हैं | 1971 में तत्कालीन  राष्ट्रपति स्व. वी.वी गिरि के साहेबजादे शंकर  गिरी कांग्रेस  टिकिट पर मप्र की दमोह सीट से लोकसभा पहुंचे  थे | ऐसे में बंगाल में किसी बाहरी का राज नहीं  होने देने जैसा बयान स्वस्थ मानसिकता का परिचायक नहीं कहा जा सकता | भविष्य में यदि श्री मोदी बंगाल आकर चुनाव लड़ें तब भी  क्या इसी तरह का बयान तृणमूल नेत्री देंगी ? भारत में लोकतंत्र के मजबूती के लिए भाषा और प्रान्त जैसी संकुचित भावनाएं त्यागनी होंगी | चुनाव आते - जाते रहेंगे लेकिन देश की एकता अक्षुण्ण रहनी चाहिए | बंगाल को अलग - थलग रखने की राजनीति ने वहां विकास प्रक्रिया को कितना पीछे धकेल दिया ये सर्वविदित है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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