Wednesday 14 April 2021

सरकार कितना भी छिपाए किन्तु अस्पताल और श्मशान सच उगल देते हैं



कोरोना के कहर ने मौतों का आंकड़ा भी बढ़ा दिया है | गत वर्ष की तुलना में चूँकि संक्रमण अधिक घातक है इसलिए मरीज को  संभलने का समय नहीं मिलता | जाँच रिपोर्ट आने में होने वाले विलम्ब से भी असमंजस की स्थिति बनी रहती है जिसकी वजह से देश भर में हजारों कोरोना संक्रमितों को इलाज ही नहीं मिल पाया और वे मौत के गाल में समा गये |  गाँव , कस्बों या छोटे जिलों को छोड़ भी दें लेकिन मुम्बई - दिल्ली जैसे  महानगरों तक में चिकित्सा प्रबंधन पूरी तरह गड़बड़ा गया है | ये कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना के दूसरे हमले की भयावहता का पूर्वानुमान लगाने में सरकार और सम्बन्धित लोग चूक गये | जैसे ही टीका बाजार में आया तैसे ही ये मानकर चला जाने लगा कि कोरोना पर विजय हासिल कर ली गई लेकिन इस दौरान इस तथ्य की अनदेखी की गई कि संक्रामक बीमारी का विषाणु सदैव गुरिल्ला शैली में हमला करते हुए बड़ी से बड़ी  फौज को भी चकमा दे जाता है | लेकिन इस सबसे अलग देश भर में इस बात की चर्चा है कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की संक्रमण और मौतों की संख्या को छिपा रही है |  ऐसा क्यों किया जाता है इसके बारे में तरह - तरह की चर्चाएँ हैं | अव्वल तो कहा जा सकता है कि  शासन और प्रशासन अपनी नाकामी छुपाने की गरज से ऐसा करते हैं और दूसरी वजह ये कि मौत के बढ़ते आंकड़े से जनता भयभीत होकर कहीं  आपा न खो बैठे | नेता और नौकरशाहों की  सोच वैसे भी कुछ अलग हटकर बन जाती है जिसके वशीभूत वे अपनी सफलता को तो बढ़ा - चढ़ाकर प्रचारित करते हैं लेकिन जब बात विफल होने की  होती है तब तरह - तरह के प्रपंच रचकर सच्चाई पर पर्दा डालने का दुष्चक्र रचा जाता है | कोरोना के पहले भी ऐसा होता रहा है | लेकिन इस बीमारी के बारे में कुछ भी छिपाना इसके विरुद्ध हो रही लड़ाई को कमजोर करने का कारण बन रहा है | मसलन पिछली लहर की समाप्ति का दावा  जिस जोरशोर से किया गया उसने आम जनता के मन में निश्चिंतता का भाव भर दिया | यदि उस समय से ही खतरे की घंटी बजाई जाती तो हो सकता है मौजूदा स्थिति जन्म ही न लेती | सूचना क्रांति के इस दौर में किसी तथ्य अथवा  जानकारी का छिपाना संभव नहीं  रह गया है | और फिर ध्यान देने योग्य बात ये भी है कि  सरकार द्वारा सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश किये जाने से सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों पर प्रसारित होने वाली अनधिकृत और अतिरेक से भरी  खबरों पर विश्वास करने आम जनता बाध्य हो जाती है | बेहतर  हो आंकड़ों की ये बाजीगरी बंद कर वास्तविकता से जनसाधारण को अवगत कराया जावे | रही बात संक्रमण  और मौतों की बढ़ती जा रही संख्या से भय का माहौल बनने की तो नेता - नौकरशाह गठजोड़ को ये  जान लेना चाहिए कि कोरोना संबंधी कोई  भी जानकारी छिपाने या उसमें कांट - छाँट किये जाने से ज्यादा नुकसान हो रहा है | सरकार की विश्वसनीयता इसी में है कि वह पारदर्शिता को पूरी तरह अपनाये | और फिर कोरोना के मामले और मौतें छिपाने से किसी भी  तरह का लाभ होता हो , ऐसा भी नहीं है | तत्संबंधी किसी भी जानकारी को जस का तस सार्वजनिक करने से आम जनता के मन में भी खतरे को गम्भीरता से लेने का भाव पैदा होगा | सरकार और स्थानीय प्रशासन सहित सरकारी अस्पतालों का अमला इस विषम परिस्थिति में जो कर रहा है उसके लिए उनकी तारीफ़ की जानी चाहिए क्योंकि उनके भी अपने परिवार हैं | अनेक स्वास्थ्यकर्मी यहाँ तक कि अनुभवी चिकित्सक तक इस दौरान संक्रमित होकर चल बसे | ये देखते हुए जरूरी है कि नए संक्रमण के साथ  ही कोरोना से होने वाली मौतों की वास्तविक जानकारी दी जावे | आंकड़ों में  हेराफेरी करने के बाद भी शासन और प्रशासन हालात को छिपाने में नाकामयाब साबित हुए | उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के अलावा  श्मशान भूमि और कब्रिस्तान से आ रहे आंकड़ों से सच्चाई सामने आ ही रही है तो फिर उस पर पर्दा डालने का औचित्य ही क्या ? 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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