Monday 19 April 2021

वरना इनकी आत्माएं हमें माफ़ नहीं करेगी



 
ये समय न आलोचना का है और न ही बलि के बकरे तलाशने का | देश के जो हालात हैं उन्हें देखते हुए ये कहना गलत न होगा कि आजादी के बाद से आये तमाम संकटों में ये सबसे बड़ा और भयावह है | समूचा ज्ञान - विज्ञान और सुख  - सुविधाओं के अनगिनत संसाधन महत्वहीन हो चले हैं | जिन लोगों को अपनी सम्पन्नता के बल पर सब कुछ खरीदने का गुमान था वे भी असहाय  नजर आ रहे हैं | सत्ता के उच्च आसन पर विराजमान अनेक  महानुभाव महामारी की चपेट में आकर जान गँवा बैठे | देश की राजधानी से लेकर कस्बों तक के छोटे - बड़े अस्पताल कोरोना मरीजों से भरे पड़े हैं | जिंन  दवाइयों  से उपचार और जीवनरक्षा संभव है वे या तो उपलब्ध ही नहीं है  या फिर दोगुने - चौगुने दाम पर मिल रही हैं | अस्पतालों  में आक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो रही है जिसकी वजह से  सैकड़ों मरीजों की जान जा चुकी है | अस्थायी अस्पताल जैसी व्यवस्थाएं भी की जा रही हैं | हालाँकि गत वर्ष भी कोरोना के कारण आपातकालीन इंतजाम किये गये थे लेकिन इस बार उसका हमला बहुत ही तेज और बड़ा होने से चिकित्सा जगत के हाथ पाँव फूल गये हैं | बावजूद इसके जंग जारी है और तमाम विसंगतियों के बावजूद भारत एक बार फिर इस संकट पर विजय हासिल करेगा ये विश्वास भी कायम है  | लेकिन मुद्दे की बात ये है कि इस दौरान मिले अच्छे - बुरे अनुभवों से कुछ सीखा भी जायेगा या रात गई बात गई वाली मानसिकता पर चलते हुए सब भुला दिया जाएगा | बीते सात दशक के दौरान भारत ने समय - समय पर  सुरक्षा , आर्थिक , खाद्यान्न और प्राकृतिक संकटों का सामना किया है | आतंकवाद भी हमारी धरती पर पैर जमाये हुए है | संवैधानिक और राजनीतिक स्तर पर पर भी अनेक अवसर आये जब देश मुसीबत  में फंसता नजर आया किन्तु  उन सबका सामना साहस के साथ करते हुए हम आगे बढ़ते गये | लेकिन मौजूदा संकट अपनी तरह का अलग ही है जिसने हर मोर्चे पर हमें घेर रखा है | ये कहना पूरी तरह सही होगा कि इसके चले जाने के बाद भी यदि हम भविष्य की चुनौतियों से निपटने के प्रति अपने आपको  तैयार नहीं करते तो फिर ये मान लेना होगा कि हम आग लगने पर कुआ खोदने की आदत से  मजबूर हैं | मौजूदा संकट में एक बात  तेजी से उभरकर सामने आई कि हमें  स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण करना होगा | आशय ये है कि महानगरों या अन्य बड़े  शहरों तक सीमित चिकित्सा सुविधाएँ यदि जिला स्तर पर उपलब्ध कराई जा सकें तो मरीजों को ज़रा - जरा सी बात पर अपने शहर से बाहर न भागना पड़े | उदाहरण के तौर पर जबलपुर जैसे संभागीय मुख्यालय तक से सामान्य हालातों में भी बड़ी संख्या में मरीज 300 किमी. दूर नागपुर जाते हैं | जिससे साबित हो जाता है कि स्थानीय चिकित्सा सुविधाएँ  अपर्याप्त हैं | यहाँ काफ़ी पुराना मेडिकल कॉलेज होने के साथ ही मेडीकल विवि भी खुल गया है | लेकिन उसके बाद भी मरीजों को नागपुर जैसे शहर ले जाने की बाध्यता सवाल तो खड़े करती ही है | ये तो महज एक उदाहरण है क्योंकि जबलपुर जैसे देश के सैकड़ों संभागीय मुख्यालयों की स्वास्थ्य सेवाएं चाहे वे सरकारी हो या निजी  , जनता का विश्वास हासिल करने में विफल रही हैं | कोरोना तो चलिए एक आकस्मिक और अप्रत्याशित  संकट है जिसकी चपेट से अमेरिका जैसा संपन्न और हर क्षेत्र में विकसित देश तक नहीं  बच सका किन्तु जानी - पहिचानी  बीमारियों के  भी समुचित इलाज की व्यवस्था आज जिला स्तर पर नहीं  है और ये स्थिति बीते  सात दशक की बाकी उपलब्धियों को महत्वहीन साबित कर देती है | जनकल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें लगातार नए - नए कार्यक्रम और नीतियाँ लागू करती रही हैं |  आयुष्मान योजना के अंतर्गत  तकरीबन 50 करोड़ साधनहीन  लोगों को   5 लाख  तक की निःशुल्क  चिकित्सा मोदी सरकार ने उपलब्ध करवाई है | अनेक राज्य सरकारें भी चिकित्सा के लिए लोगों की  मदद करती हैं | केन्द्रीय कर्मचारियों को सीजीएचएस जैसी सुविधा मिली हुई है | लेकिन कोरोना के दूसरे हमले ने उन सबकी निरर्थकता उजागर कर दी | देश की राजधानी दिल्ली  और  आर्थिक राजधानी मुम्बई हो या फिर भोपाल जैसी  प्रादेशिक राजधानी , सभी की चिकित्सा सुविधाएँ दम तोड़ती नजर आ रही हैं  | वर्तमान संकट जब भी खत्म हो तब देश भर में चिकित्सा सुविधाओं का जिला स्तर पर विकेंद्रीकरण किये जाने का समयबद्ध अभियान चलाया  जाना चाहिए | इसके लिए जरूरी संरचना को ध्यान में रखते हुए युद्धस्तर पर काम करना होगा | चिकित्सकों के साथ ही दवाएं , जरूरी उपकरण आदि की व्यवस्था भी की जानी चाहिए | निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी ये देखना  होगा कि वे अपने क्षेत्र को  चिकित्सा सुविधाओं के मद्देनजर सक्षम बनाएं जिससे छोटी - छोटी जरूरतों के लिए जनता को बड़े शहरों के चक्कर लगाने की मजबूरी से मुक्ति मिल सके | कोरोना संकट का सबसे बड़ा सबक यही होगा कि हमें सीमा की सुरक्षा और आर्थिक विकास  के साथ ही हर नागरिक को समय पर समुचित चिकित्सा सुविधा प्रदान करने का पुख्ता प्रबंध करना चाहिए | कोरोना नामक महामारी को प्रकृति का संकेत मानकर भविष्य में आने वाले ऐसे ही किसी भी संकट से निपटने के लिए काम शुरू करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए  | वरना इस दौरान अपनी  जान गंवाने वाले देशवासियों  की आत्मा हमें कभी माफ़ नहीं करेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी



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