Wednesday 19 May 2021

इजरायल को छेड़कर हमास ने अपनी बर्बादी का रास्ता खोल दिया




चौंकाने वाली बात ये है कि  हमास नामक जिस संगठन ने फिलहाल इजरायल से पंगा ले लिया उसे तो सभी फिलिस्तीनी भी पसन्द नहीं करते। इसका गाजा पट्टी पर कब्जा है। यासर अराफात ने जब इजरायल से शांति समझौता किया तबसे हमास नामक संगठन ने गाजा पट्टी पर कब्जा जमाकर इजरायल से लड़ते रहने की नीति प्रारम्भ की जबकि खुद  फिलिस्तीन सरकार के हमास से मतभेद हैं। मौजूदा युद्ध हमास के दुस्साहस से शुरू हुआ जब उसने इजरायल पर रॉकेट छोड़े । लेकिन जो जवाब इजरायल ने दिया उसने उसकी कमर तोड़ दी। हालांकि वह ईरान से मिली ताक़त पर लड़ रहा है लेकिन इजरायल हमलावर को घायल करके नहीं छोड़ता और यह हमास को पता चल रहा है। विश्व बिरादरी युद्ध रोकना चाहती है क्योंकि उसे अरब देशों से तेल की दरकार है। लेकिन सऊदी अरब और सं अरब अमीरात द्वारा इजरायल से दोस्ती किये जाने ने मध्य पूर्व के समीकरण बदल डाले हैं । मौजूदा संघर्ष को रोकने के लिए भी उक्त दोनों प्रयास कर रहे हैं । लेकिन जैसा कि इजरायल का कहना है कि हमास ने बेवजह उसे उकसाया जिसका दंड उसे समूल नाश के तौर पर दिया जाएगा और जिस तरह से इजरायली वायु सेना ने रौद्र रूप दिखाया उससे ये लग भी रहा है कि हमास  बिना सोचे -  समझे  बर्बादी के रास्ते पर चल पड़ा । उसने जब इजरायल पर रॉकेट दागे उसके पहले तक वहां युद्ध की न स्थिति थी और न ही सम्भावना। यद्यपि गाजा पट्टी में दोनों तरफ से गोलाबारी आये दिन चला करती है। लेकिन  वर्तमान संघर्ष हमास की मूर्खता का परिणाम है जिसकी वजह से वहां बसे फिलिस्तीनियों को बेवजह मौत और दूसरी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इजरायल के आक्रामक रुख को  अमेरिका और ब्रिटेन सहित पश्चिमी महाशक्तियों का समर्थन प्राप्त है।जिसके कारण उसके विरुद्ध संरासंघ में चीन और रूस जैसे देशों की कोई भी मुहिम आगे नहीं बढ़ पाती । लेकिन हमास ने इस विवादग्रस्त इलाके में शांति की कोशिशों को जिस तरह पलीता लगाया उसने यासर अराफात को भी उनके जीवन के अंतिम समय काफी दुखी कर दिया जो लंबे संघर्ष के बाद एक शांति समझौते के तहत इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करने को राजी हुए थे और उसके बाद लगातार अनेक वर्षों तक वहां शांति भी  रही । लेकिन फिलिस्तीनी मुक्ति मोर्चे द्वारा सशस्त्र संघर्ष की बजाय शान्ति और सहअस्तित्व का रास्ता चुन लेने से  मध्य पूर्व के साथ वे अन्तर्राष्ट्रीय ताकतें निराश हुईं जिन्हें फिलिस्तीन और इजरायल के लड़ते रहने में अपना स्वार्थ सिद्ध होता लगता था। ईरान के अलावा रूस ,सीरिया और काफी हद तक चीन ने  हमास  नामक संगठन को दूध पिलाकर बड़ा किया जिसने फिलीस्तीनियों के सर्वमान्य नेता  यासर अराफात की नीयत पर ही सवाल उठा दिए। इस बारे में ये कहना पूरी तरह से सही है कि इजरायल ने हर युद्ध में फिलीस्तीनियों के साथ ही सीरिया , जॉर्डन ,लेबनान और मिस्र जैसे देशों के संयुक्त हमले को न सिर्फ नाकाम किया बल्कि उनकी सैन्य शक्ति की कमर ही तोड़कर रख दी। येरुशलम  यहूदी ,इस्लाम और ईसाइयत का जन्मस्थान होने से तीनों धर्मों को मानने वाले इस पर अपना कब्जा चाहते हैं । बीते लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा तक इस इलाके पर विभिन्न ताकतों का कब्जा रहा जिसमें पहले तुर्की और अंत में ब्रिटेन था। दूसरे महायुध्द के बाद ब्रिटेन एवं मित्र राष्ट्रों ने अपनी मातृभूमि से बेदखल किये गए यहूदियों को दोबारा उनका देश देने हेतु फिलिस्तीन का विभाजन कर दिया । हिटलर ने नस्लीय घृणा के तहत जिस बेरहमी से यहूदियों को गैस चेम्बर में थोक के भाव मौत के मुंह में धकेला उससे भी उनके प्रति सहानुभूति बढ़ी लेकिन इजरायल की स्थापना के पीछे ईसाई धर्म की अनुयायी पश्चिमी ताकतों की दूरगामी रणनीति ये थी कि येरुशलम से ईसाइयत का गहरा सम्बन्ध होने पर भी चूंकि उसके आसपास कोई ईसाई बहुल देश नहीं था इसलिए वे खुद वहां जमे नहीं रह सकते थे। ब्रिटेन भी दूसरे महायुद्ध के बाद आर्थिक और सामरिक तौर पर फिलिस्तीन पर कब्जा जमाए रहने में असमर्थ था। वैसे दुनिया भर से यहूदियों को वहां लाकर बसाने का काम प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच शुरू कर दिया गया था और 1948 में विधिवत इजरायल की स्थापना कर उसे मान्यता दे दी गई किन्तु उसके पड़ोसी इस्लामी देश इसे हजम न कर सके और उस पर हमला कर दिया। इस तरह जन्म लेते ही यहूदी राष्ट्र को अपना अस्तित्व बचाने जूझना पड़ गया। सैकड़ों सालों तक खानाबदोश रहे यहूदी शक्तिशाली की विजय के सूत्र से प्रेरणा लेकर उस हमले का जवाब देने उठ खड़े हए और लम्बे संघर्ष के बाद पड़ोसी अरब देशों को परास्त करने में कामयाब हुए।उसके बाद 1967 में फिर उस पर छह सात देशों ने आक्रमण किया लेकिन 6 दिन के भीतर सबकी  हेकड़ी निकल गई। यद्यपि ये कहना गलत न होगा कि अमेरिका और ब्रिटेन का संरक्षण मिले बिना इजरायल का अस्तित्व बचना कठिन था किन्त ये भी उतना ही सच है कि आम इजरायली अपने देश के प्रति कुछ भी करने से नहीं हिचकता। बीते सात दशक में यह देश  अपनी रक्षा प्रणाली को अभेद्य बनाकर आक्रमण क्षमता भी आश्चर्यजनक रूप से विकसित करते हुए शक्तिशाली देशों के समकक्ष खड़ा हो गया। आर्थिक के साथ ही विज्ञान , तकनीकी और रेगिस्तान में खेती के तरीके खोजना उसकी जीवटता का प्रमाण है। उसकी गुप्तचर व्यवस्था के सामने सीआईए तक नहीं ठहरती। उस पर फिलीस्तीन की जमीन हड़पते जाने और येरुशलम पर कब्जा जमाने का आरोप तथ्यों के आधार पर सही है किंतु इसके लिए उसे मजबूर किया गया। उस पर जब भी हमले हुए उसने अपनी सीमा का विस्तार करते हए शत्रु को कमजोर किया जो उसके अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। अरब देशों की आंखों में कांटे की तरह चुभने वाले इस देश को एक हकीकत के तौर पर लगभग पूरा अरब जगत स्वीकार कर चुका था। यासर अराफात ने जब लम्बे संघर्ष के बाद इजरायल से शांति समझौता कर फिलिस्तीन का शासन सम्भाला तब ये लगा था कि मध्य पूर्व में शांति स्थायी तौर पर आ जायेगी किन्तु कुछ विघ्नसंतोषियों को वह रास नहीं आई और उनके संरक्षण में हमास नामक संगठन पनपा जिसने फिलिस्तीन के गाजा पट्टी इलाके पर कब्जा कर लिया। हमास इजरायल के अस्तित्व को नहीं मानता और यही मौजूदा समस्या की जड़ है। इस युद्ध की शुरुवात हमास ने रॉकेट दागकर कर तो दी जिन्हें इजरायल की जबरदस्त रक्षा प्रणाली ने हवा में ही  नष्ट कर दिया और उसके बाद जो पलटवार किया उसने हमास के कब्जे वाले इलाके में जबरदस्त तबाही मचा दी । पता नहीं हमास का नीति निर्धारक या सलाहकार कौन है जिसने बेवजह  सोते हुए शेर की पूंछ पर पैर रखने की जुर्रत करते हुए अपने लोगों को बेमौत मरवाने के साथ चारों तरफ बर्बादी के मंजर पैदा करने के कारण पैदा कर दिए। इजरायल ने साफ कर दिया कि वह हमास को जड़ सहित उखाड़े बिना जंग नहीं रोकेगा। दुनिया भर उससे आक्रामक रुख रोकने की गुजारिश कर रही है। भारत सहित तमाम देश कच्चे तेल के लिए अरब देशों पर निर्भरता के चलते इजरायल का खुलकर समर्थन नहीं कर पाते लेकिन जिस तरह सऊदी अरब और सं.अरब अमीरात ने इजरायल के साथ आर्थिक रिश्ते मजबूत कर द्विपक्षीय लाभ का रास्ता खोल दिया वैसी ही समझदारी शेष इस्लामिक देशों को दिखानी ही पड़ेगी । अन्यथा फिलिस्तीन का आकार हर युद्ध के बाद सिमटता जायेगा। अकाट्य सत्य ये है कि इस्लाम , यहूदी और ईसाइयत एक ही पूर्वज की संतानों से जन्मे धर्म हैं । यहूदियों को अपना इलाका छोड़कर सैकड़ों सालों तक दूसरे देशों में बदहाली का शिकार होना पड़ा ये भी पूर्ण सत्य है । ईसाई देशों तक में उनके साथ अत्याचार हुए क्योंकि ईसाइयत भी उन्हें पसंद नहीं करती थी किन्तु धीरे - धीरे समय ने करवट बदली और इजरायल की स्थापना ईसाई देशों ने ही करवाते हुए उसे पूर्ण सहयोग तथा संरक्षण दिया। जिस तरह पाकिस्तान ने भारत का अस्त्तित्व मिटाने की शेखी में अपने दो टुकड़े करवा लिए ठीक वही गलती इजरायल के पड़ोसी इस्लामी देश करते आये जिसकी वजह से उसको अपना विस्तार करने का मौका मिलता रहा। पता नहीं अरब देशों को मदद करने वाले उन्हें ये क्यों नहीं समझाते कि इजरायल के साथ अच्छे रिश्ते पश्चिम एशिया में न सिर्फ शांति अपितु विकास के नए रास्ते खोल सकते हैं ।जिस कच्चे तेल के भंडार पर अरब देश इठलाते और इतराते हैं उसका विकल्प दुनिया खोज  चुकी है और आने वाले 10 - 15 सालों के भीतर उसकी मांग तेजी से घटेगी । ऐसे में उन्हें इजरायल से तकनीक और खेती के हुनर सीखकर नए युग की शुरुवात करनी चाहिए। बेहतर हो हमास जैसे आतंकवादी संगठनों को इस्लामी देश खुद होकर नष्ट करें क्योंकि इन्हीं की वजह से पूरे विश्व में उनकी नकारात्मक छवि बनी हुई है। फिलिस्तीन और इजरायल के बीच हुए ऐतिहासिक शांति समझौते के बाद यदि बजाय हेकड़ी के बुद्धिमत्ता दिखाई गई होती  तो आज पश्चिम एशिया आग में न जल रहा होता। यासर अराफात तो हकीकत से रूबरू होकर समझौता कर बैठे लेकिन अल कायदा , बोको, हराम , आई एस आई एस और तालिबान ने इस्लामी जगत को जो नुकसान पहुँचाया उसका आकलन करना सम्भव नहीं है। ओसामा बिन लादेन , जवाहिरी , बगदादी जैसे आतंकवादियों ने इस्लाम को क्या दिया ये बड़ा सवाल है। मजे की बात ये है कि जिस अमेरिका के विरुद्ध ये सब मरने - मारने उतारू हो जाते हैं शुरू में ये उसी के टुकड़ों पर पलते रहे। इजरायल का गठन भी वैश्विक कूटनीति का हिस्सा रहा लेकिन उसके अस्तित्व को नकारना वास्तविकता से मुंह मोड़ना है। हमास जैसे संगठन इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु हैं और ये बात अरब देश जितनी जल्दी समझ लें अच्छा अन्यथा जो हो रहा है वह होता रहेगा और क्या पता फिलीस्तीन का बचाखुचा अस्तित्व भी नष्ट हो जाये।

-- रवीन्द्र वाजपेयी 
 

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