Saturday 29 May 2021

शिष्टाचार का पालन कानून नहीं अपितु संस्कार से होता है



ममता बैनर्जी को राजनीति में आये कई दशक बीत चुके हैं | हाल ही में वे तीसरी बार बंगाल की  मुख्यमंत्री बनी हैं  | चुनाव प्रचार के दौरान उनके और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के बीच काफी तनातनी रही  | यहाँ तक कि मुकाबला मोदी बनाम ममता बनकर रह गया था | चुनाव परिणामों ने प्रधानमन्त्री  की  साख को काफी धक्का पहुँचाया जिन्होंने बंगाल में पूरी ताकत झोंक दी थी | हालाँकि भाजपा को  संतोष होगा कि  जिस राज्य में उसका नामलेवा नहीं होता था वहां  वह मुख्य विपक्षी दल बन बैठी | सुश्री  बैनर्जी के लिए ये चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि  लोकसभा के  बाद विधानसभा चुनाव में भी भाजपा , कांग्रेस और वामपंथियों को पीछे छोड़ते हुए उनकी  प्रमुख  प्रतिद्वंदी बनकर उभरी | इसीलिये  उन्होंने अपने स्वभाव अनुसार केंद्र  सरकार से पंगा लेना शुरू कर दिया | चुनाव पूर्व  भाजपा ने भी उनको घेरने के लिए सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत  तृणमूल से   बड़ी संख्या में दलबदल करवाया और टूटकर आये लोगों को उम्मीदवारी भी  दी  | दरअसल  ममता  की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह ये  है कि वे अपनी पार्टी को तो शानदार  सफलता दिलवाने में कामयाब हो गईं किन्तु खुद चुनाव हार गईं |  हुआ यूँ कि  वे अपनी परम्परागत भवानीपुर सीट छोड़कर  नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी की चुनौती स्वीकार करने जा पहुँची जो चनाव के पहले उनका साथ छोड़कर भाजपा में चले गये थे | लेकिन वह दांव गलत साबित हुआ | भाजपा ने भी श्री अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष बनाकर  ममता के जले पर नमक छिड़कने का काम किया  |  चुनाव के बाद तृणमूल के लोगों ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले करने शुरू कर दिए | हालाँकि चुनाव  के पहले भी प्रायोजित हिंसा वे  करते थे लेकिन सरकार बन जाने के बाद अपेक्षा थी कि मुख्यमंत्री परिपक्वता का परिचय देकर सामान्य वातावरण बनाने का प्रयास करेंगीं | लेकिन गत दिवस तूफ़ान से हुई  क्षति का जायजा लेने  आये  प्रधानमन्त्री के स्वागत में मुख्यमंत्री और किसी बड़े अधिकारी की गैर मौजूदगी के बाद श्री मोदी द्वारा बुलाई गयी बैठक में ममता न सिर्फ 30 मिनिट देर से गईं वरन प्रधानमन्त्री को तूफ़ान से हुए नुकसान की  क्षतिपूर्ति हेतु 20 हजार करोड़ की मांग सम्बन्धी फ़ाइल देने  के बाद ये कहते हुए चली गईं कि उनको दूसरी किसी बैठक में जाना था |  बताया जाता है मुख्यमंत्री इस बात से नाराज थीं कि बैठक में  नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु को भी बुलाया गया था | उल्ल्लेखनीय है उक्त बैठक में लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी भी आमंत्रित थे किन्तु दिल्ली में होने की वजह से वे नहीं आये | बंगाल के पहले प्रधानमंत्री  उड़ीसा भी गये  जहाँ मुख्यमंत्री नवीन पटनायक उनके साथ रहे | वहां भी नेता प्रतिपक्ष को बुलाया गया था जो कोरोना संक्रमित होने से नहीं आ सके | जिस भवन में प्रधानमन्त्री की बैठक हो रही थी  उसी में मौजूद रहने के बाद भी ममता  30 मिनिट देर से आईं जबकि प्रधानमन्त्री और राज्यपाल धैर्यपूर्वक उनकी प्रतीक्षा करते रहे |  उन्हें चाहिए था कि वे  राज्य को तूफ़ान से हुए नुकसान का विस्तृत ब्यौरा देते हुए ज्यादा से जयादा राहत  की माँग करतीं | प्रधानमन्त्री को यदि वीडियो के जरिये तबाही के दृश्य  दिखाए जाते तो उससे राज्य को फायदा ही होता | लेकिन मुख्यमंत्री ने  बजाय अवसर का लाभ उठाने के बचकानी हरकत की | भले ही वे इस बात पर खुश हों कि उन्होंने प्रधानमंत्री  और राज्यपाल को आधा घंटे इंतजार करवा दिया किन्तु इससे उनकी शान बढ़ी हो ऐसा नहीं |  प्रधानमन्त्री यदि उनके व्यवहार से नाराज होकर बैठक रद्द कर  लौट जाते तब वे  बंगाल की उपेक्षा को लेकर हल्ला मचा देतीं | वे चाहती तो कोई बहाना खोजकर किसी वरिष्ठ मंत्री को अधिकारियों के साथ भेजकर प्रधानमन्त्री के सामने राज्य की जरूरत का ब्यौरा रखवा सकती थीं | लेकिन वे  मुख्य सचिव को लेकर बैठक में आईं  जो  उनके साथ ही  चले गए | बाद में केंद्र  सरकार ने उनको वापिस दिल्ली आकर रिपोर्ट करने कहा |  उल्लेखनीय है मुख्य सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा के अंतर्गत केंद्र  के अधीन होते हैं | उनका सेवाकाल समाप्त होने के बाद ममता ने उन्हें तीन महीने की सेवा वृद्धि दे दी थी | हो सकता है मुख्यमंत्री उन्हें दिल्ली  भेजने में टांग फंसायें | ये भी सम्भव है कि मुख्य सचिव इस्तीफा दे दें | लेकिन इस घटना ने बंगाल और केंद्र के पहले से खराब चले आ रहे रिश्तों में और कड़वाहट घोल दी है | सुश्री बैनर्जी का स्वभाव देखते हुए किसी को इस आचरण पर आश्चर्य नहीं हुआ किन्तु राजनीति से हटकर इस तरह के मामलों में  शिष्टाचार का उल्लंघन अपरिपक्वता के साथ ही बेहूदगी भी है |  भविष्य में अपने राज्य की किसी जरूरत को लेकर मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के पास  जाएँ और उनका यथोचित सत्कार न हो तो वह  किसी भी दृष्टि से उचित न होगा | चुनाव के बाद प्रधानमन्त्री ने बंगाल के विकास में सहयोग देने की बात भी कही थी | गैर भाजपा शासित अन्य राज्यों और  केंद्र के बीच अनेक मुद्दों पर टकराव होता रहता है लेकिन प्रधानमन्त्री  सरकारी दौरे पर राजकीय अतिथि होते हैं | इसलिए  जो भी हुआ वह अशोभनीय और अवांछित कहा  जाएगा | ममता बैनर्जी के व्यवहार में किसी सुधार की उम्मीद करना तो व्यर्थ है किन्तु यदि वे आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा बनकर नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ी होना चाहती हैं तब उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के अनुरूप अपने को ढालना होगा | गत दिवस उन्होंने  प्रधानमन्त्री के साथ जिस तरह का व्यवहार किया उसके चलते वे बंगाल की नेता भले बनी  रहें लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य पर उनका उभरना संभव नहीं होगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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