Thursday 27 May 2021

श्रीलंका का चीन के जाल में फंसना भारत के लिए चिंता का बड़ा कारण



श्रीलंका वैसे तो एक संप्रभुता संपन्न देश है इसलिए वह अपने फैसले करने के  लिए स्वतन्त्र है | ताजा समाचार के अनुसार प्रधानमंत्री   महिंद्रा   राजपक्षे की  सरकार ने राजधानी कोलम्बो के बंदरगाह को चीन के हवाले करने का फैसला किया है जो वहां 269 हेक्टेयर में  एक पोर्ट सिटी बनाएगा जिसे सिंगापुर और हांगकांग  की तरह एक व्यावसायिक केंद्र बनाने का सपना श्रीलंका  सरकार देख रही है | उसके अनुसार कोलम्बो बन्दरगाह  और पोर्ट सिटी में चीन की सहायता से जिस अधोसंरचना का विकास होगा उससे इस टापू  नुमा देश में विदेशी निवेश के साथ ही पर्यटन में खासी वृध्दि होगी | आगामी 5 वर्षों में  2 लाख से ज्यादा  नए रोजगार भी उत्पन्न होंगे | भारत  के  लिए इस खबर का कोई महत्व न होता लेकिन दो बातों से ये हमारे लिए चिंता का कारण है  | पहला तो  ये परियोजना चीन द्वारा विकसित की जायेगी और दूसरी ये कि कोलम्बो बंदरगाह कन्याकुमारी से मात्र 290 किमी दूर है | इसे लेकर भी फ़िक्र न होती किन्तु चीन चूँकि भारत के प्रति खुलकर शत्रुता का भाव रखता है और श्रीलंका चाहे कितना भी आश्वस्त करे लेकिन आने वाले समय में वह  यहाँ अपना सैन्य जमावड़ा करने से बाज नहीं आयेगा | इसके पहले भी श्रीलंका भारत के विरोध को नजरअंदाज करते हुए हम्बनटोटा बन्दरगाह 99 साल की लीज पर चीन को सौंप चुका था | कोलंबो बंदरगाह और पोर्ट सिटी को लेकर भी ऐसा ही अनुबंध किये जाने की खबर है | इस बारे में सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि राजपक्षे सरकार ने सर्वोच्च  न्यायालय के निर्देश  की भी बड़ी ही चालाकी से अवहेलना कर  डाली  जहां  उक्त फैसले के विरुद्द्ध दो दर्जन याचिकाएं विचाराधीन हैं जिन पर न्यायालय ने सरकार से कह रखा था कि विपक्ष को विश्वास में लिए बिना कोई फैसला न करे | लेकिन राजपक्षे सरकार ने गत 24 मई को संसद में बहुमत के बल पर फैस्ला करने के बाद आनन - फानन में चीन के साथ करार करने का कदम उठा लिया | विपक्ष का कहना है कि चीन से आँख मूंदकर लिया जा रहा निवेश देश को उसका आर्थिक उपनिवेश बनाने का कारण बनेगा | स्मरणीय है श्रीलंका आर्थिक तौर पर काफी पिछड़ा माना जाता है | वहां से चाय और मसालों के अलावा और कुछ निर्यात नहीं होता | दोपहिया वाहन , ऑटो और छोटी कारें तक भारत से जाती हैं | अंतर्राष्ट्रीय अनुदान के बल पर उसका काम चलता है | चीन ने  इस कमजोर नस को पकड़ लिया | कुछ साल पहले तक श्रीलंका में तमिल उग्रवाद के कारण गृह युद्ध की स्थिति रही | राजपक्षे के पिछले कार्यकाल में लिट्टे नामक तमिल उग्रवादी संगठन को समूल नष्ट कर दिया गया | उसे इस बात पर गुस्सा है कि लिट्टे को भारत ने ही खड़ा किया था तथा तमिलनाडु की द्रमुक नामक पार्टी तमिल राष्ट्र के लिए लिट्टे को प्रश्रय देती थी | पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की हत्या के पीछे भी यही प्रमुख कारण बना | उसी अवधारणा के वशीभूत श्रीलंका विशेष रूप से राजपक्षे चीन की तरफ झुकते हुए चीनी पूंजी के लिए रास्ता साफ़ करते गए | लिट्टे के खात्मे के बाद इस देश में विदेशी पर्यटकों की संख्या बढने लगी है तथा अनेक देश यहाँ निवेश के इच्छुक बताये जाते हैं किन्तु चीन ने जिस तेजी से  अपना शिकंजा कसा उससे सब चौकन्ने हैं | वैसे भी श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है | पश्चिम एशिया और यूरोप से दक्षिण एशिया और पेसिफिक क्षेत्र में   आने वाले जलपोतों के लिए वह एक बेहतरीन विश्राम स्थल है |  साथ ही वह अफ्रीका के भी निकट है | चीन वैसे भी दक्षिण चीन के समुद्र के साथ ही हिंद माहासागर में भी  दबदबा बढ़ाना चाह रहा है किन्तु वियतनाम , थाईलैंड , मलेशिया , दक्षिण कोरिया आदि के विरोध के साथ भारत , जापान और आस्ट्रेलिया की मजबूत मोर्चेबंदी ने उसके मंसूबे पूरे नहीं होने दिए | कोरोना के कारण अमेरिका भी उससे बहुत नाराज है | ऐसे में चीन द्वारा  कोलम्बो बंदरगाह को हथियाकर पोर्ट सिटी के विकास के अधिकार हासिल करने से हिन्द महासागर में तनाव का बीजारोपण हो रहा है  | श्रीलंका को आज भले ही सब हरा - हरा दिख रहा है लेकिन वह जिस जाल में फंसता जा रहा है उसकी कल्पना तक उसे नहीं है | ये कहना भी गलत न होगा कि राजपक्षे भारत के प्रति  खुन्नस  के चलते अपने देश को ड्रेगन के जबड़े में धकेलने की ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं | श्रीलंका में राष्ट्रपति पद पर भी  प्रधानमन्त्री राजपक्षे के छोटे भाई ही आसीन हैं | इस वजह से उनकी सरकार को राजनीतिक तौर पर  खतरा नहीं है | इसे भारतीय विदेश नीति की असफलता भी कहा जा सकता है क्योंकि  इस निकटस्थ पड़ोसी से जहां भारत से गये  बौद्ध धर्म का बोलबाला है और सांस्कृतिक निकटता के अलावा दूसरी सबसे बड़ी आबादी तमिल भाषियों की होने के बाद भी , आपसी रिश्तों में कभी विश्वास नहीं रह सका | हालाँकि भारत ने कभी उसको दबाने की कोशिश नहीं की किन्तु तमिल उग्रवाद ने  सिंहली नेतृत्व के मन में जो भारत विरोध भर दिया वह  निकलने का नाम नहीं ले रहा | कोलम्बो बंदरगाह को चीन के हवाले करने का राजपक्षे सरकार का फैसला यदि अमल में आ गया तब वह  उनके  देश के लिए तो खतरे की  घंटी होगा ही लेकिन भारत के व्यापारिक और सामरिक हितों को भी उससे नुकसान होगा | सबसे बड़ी बात हिन्द महासागर भी अंतर्राष्ट्रीय शक्ति प्रतिस्पर्धा  का अड्डा बन सकता है क्योंकि अमेरिका भी इस इलाके में  अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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