Monday 31 May 2021

अस्पतालों में ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों का प्रबंध सर्वोच्च प्राथमिकता



कोरोना की दूसरी लहर के चरम  में  दैनिक संक्रमितों का अधिकतम  आंकड़ा 4.5 लाख से भी ऊपर चला गया था | अस्पतालों में बिस्तरों की कमी  के साथ ही ऑक्सीजन आपूर्ति और वेंटीलेटरों की किल्लत भी देखने मिली जिस  कारण  बड़ी संख्या  में लोग मारे गये  |  उस दौर की याद आज भी दहला देती है | श्मसान में दाह संस्कार करने के लिए परिजनों को घंटों ही नहीं अपितु कई दिनों तक इन्तजार करना पड़ा | निश्चित रूप से वह एक अप्रत्याशित और अभूतपूर्व  संकट था | सरकार सहित निजी क्षेत्र द्वारा दी जाने वाली स्वस्थ्य सेवाएँ बुरी तरह चरमरा गईं | सरकारी अस्पतालों में चूँकि चिकित्सा संबंधी नियमों का पालन करना होता है इसलिए वहां जो भी इंतजाम हुए वे भले देर से हुए हों लेकिन पुख्ता हुए | लेकिन निजी अस्पतालों ने अंधाधुंध कमाई के फेर में बिस्तरों की संख्या तो बढ़ाई लेकिन उस अनुपात में आवश्यक सुविधाएँ नहीं बढ़ीं | कुछ ने तो पार्किंग हेतु बनाये गये तलघर में ही कोरोना वार्ड के अलावा  न्यूनतम जरूरतों का ध्यान रखे बिना ही सघन चिकित्सा वार्ड बना दिए गये | हालाँकि कोरोना संक्रमण के चरमोत्कर्ष में जैसी और जितनी चिकित्सा मिल सकी उसी में लोगों ने काम चलाया | चिकित्सकों और उनके सहयोगी कर्मियों ने इस अवधि में जिस  सेवा भाव का परिचय दिया वह भी मिसाल है | निजी अस्पतालों के मालिकों ने भले ही निर्लज्जता के साथ मुनाफाखोरी की लेकिन सरकारी अस्पतालों में संसाधनों के अभाव में जितना भी हो सका इलाज किया गया | लेकिन इस सबसे हटकर एक बात जो इस दौरान पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि 138 करोड़  की आबादी के हिसाब से हमारे देश में चिकित्सा प्रबंध बहुत ही नगण्य हैं | देश के बहुत बड़े हिस्से में चिकित्सा नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं है | गत दिवस प्रधानमन्त्री ने मन की बात में ये जानकारी दी कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी देखते हुए अस्पतालों में प्रयुक्त होने वाली ऑक्सीजन का  उत्पादन दस गुना बढ़ा | निश्चित रूप से ये संतोष का विषय है | ऑक्सीजन के वैकल्पिक स्रोत के तौर पर कंसंट्रेटर नामक उपकरण भी अस्पतालों के साथ घरों में रखे जा रहे हैं | विदेशों से बड़ी संख्या  में उनका आयात हो रहा है | कोरोना देखभाल केन्द्रों  की शक्ल में साधारण संक्रमण वाले मरीजों के इलाज की भी काफी व्यवस्था सरकार और निजी सेवाभावी संस्थाओं द्वारा की गई है | लेकिन ये सब होते - होते कोरोना की दूसरी लहर ढलान पर आ गई और 1 जून से देश के बड़े हिस्से में तालाबंदी वापिस लेकर व्यापारिक संस्थान और कार्यालय कतिपय बंदिशों के साथ खुलने जा रहे हैं | उद्देश्य व्यापार और उद्योग को गति देकर अर्थव्यवस्था को संबल देना है | लोगों की  आवाजाही के साथ ही  सार्वजनिक परिवहन भी शुरू किये जाने का फैसला किया जा रहा है | हालाँकि अनेक राज्यों और उनके भीतर कई शहरों में संक्रमण ज्यादा होने से  कुछ दिन और तालाबंदी जारी  रखी जावेगी | लेकिन इसके बाद भी कोरोना की उपस्थिति बनी रहने की आशंका है और तीसरी लहर कब आयेगी ये भी पक्के तौर पर कोई नहीं बता पा रहा | कोरोना के टीके लगाने के काम की गति को देखते हुए साल खत्म होते तक भी अगर यह अभियान पूरा हो जावे तो बड़ी बात होगी | ऐसे में अब जो जरूरत समझ आती है वह है देश में कोरोना के संक्रमण की चरम स्थित्ति के समय जितने मरीज अस्पतालों , शिविरों अथवा घरों में इलाजरत थे उससे भी ज्यादा ऑक्जसीन सुविधायुक्त  बिस्तरों का  प्रबन्ध सर्वोच्च प्राथमिकता  के आधार  पर किया जाए | ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि चिकित्सा जगत भी इस बात को लेकर आशंकित है कि कोरोना अथवा इस जैसी दूसरी संक्रामक बीमारी का हमला भविष्य में हो सकता है | ब्रिटेन और वियतनाम से जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार कोरोना से मिलता - जुलता नया संक्रमण देखने मिला है | छोटे देशों में  जनसंख्या कम होने से अस्पताल , चिकित्सक और दवाओं की जरूरत भी कम होती है लेकिन भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश की जरूरत तो अमेरिका और यूरोप के अनेक बड़े देशों को मिलाकर भी ज्यादा है | ऐसे में केंद्र  और राज्य सरकारों को चाहिए कि  वे कोरोना की दोनों लहरों से मिले सबक को भुलाने की बजाय चिकित्सा तंत्र को इतना मजबूत करें जिससे किसी को अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन के लिए भटकना न पड़े | इसके अलावा देश में दवा उत्पादन के क्षेत्र में भी बड़े सुधार की जरूरत है | जिस तरह वैक्सीन बनाने में भारत अग्रणी है वैसे ही दवा उत्पादन के साथ ही चिकित्सा संबंधी उपकरणों के मामले में अधिकतम  आत्मनिर्भरता जरूरी है | अभी तक देखने में आता रहा है कि किसी भी आपदा के जाते ही हम पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं | लेकिन कोरोना ने जिस तरह लाखों ज़िन्दगी छीनने के साथ ही अर्थव्यवस्था को चौपट कर  दिया उसके मद्देनजर आवश्यक है कि भारत चिकित्सा क्षेत्र में एक अग्रणी देश बने | यदि हम ऐसा कर पाए तो आपदा में अवसर तलाशने की बात सही हो जायेगी वरना हम नहीं  सुधरेंगे की परिपाटी जारी रहेगी | और वह  दुर्भाग्यपूर्ण होगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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