Tuesday 1 June 2021

विधायकों की वेतन वृद्धि का प्रयास जले पर नमक छिड़कने जैसा



देश  में बेरोजगारी अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है | कोरोना काल में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां चली  गईं या फिर वेतन में  कटौती हो गयी | केन्द्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता भी स्थिर कर दिया गया था | सांसदों की क्षेत्र  विकास निधि  बंद कर दी गई | लम्बे - लम्बे लॉक डाउन  से कारोबार ठप्प रहने  के कारण सरकार की कर वसूली घट गई | राज्य सरकारों का खजाना खाली है | कोरोना ने जो आपातकालीन हालात उत्पन्न कर  दिए उनके कारण सरकार का पूरा ध्यान और संसाधन चिकित्सा प्रबंधों और अब टीकाकरण पर केन्द्रित हो गया है | आज से लॉक डाउन में आंशिक ढील दी गई लेकिन आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह प्रारम्भ नहीं होने से अर्थव्यवस्था की स्वाभाविक गति शायद ही वापिस आ सकेगी |  इसका सबसे ज्यादा असर छोटे  व्यवसायी , निजी क्षेत्र के नौकरीपेशा और श्रमिक वर्ग पर पड़ेगा जिसके सामने घर चलाने की समस्या पैदा हो गई है | हालाँकि निर्धन तबके को सरकार ने मुफ्त राशन बांटकर  भुखमरी से बचा लिया लेकिन मध्यम वर्गीय स्वरोजगारी , व्यापारी और नौकरीपेशा वर्ग की कमर कोरोना ने बुरी तरह तोड़कर रख दी है | आय के स्रोत सिमट जाने के बावजूद  भी  बिजली के बिल , बैंक की किश्तें और अन्य सरकारी देनदारियों के लिए जमकर दबाव बनाया जाता है | बिजली का उपयोग न करने वाले संस्थानों से भी न्यूनतम प्रभार के  नाम पर पठानी वसूली की जा रही है | सरकारी कर्मचारी को वेतन - भत्ते समय पर मिलते रहें , इसमें किसी को ऐतराज नहीं है लेकिन मुसीबत तो पूरे समाज पर आई है इसलिए सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखना शासन का दायित्व है | लेकिन लोकतंत्र नामक व्यवस्था में जनता के प्रतिनिधि के तौर पर नव - सामन्तों का जो नया वर्ग उत्पन्न हुआ उसकी संवेदनहीनता दुखी करने के साथ ही क्रोधित भी कर देती है | आज खबर आई कि  मप्र विधानसभा के सदस्यों के वेतन और भत्तों में वृद्धि करने की तैयारी शुरू हो गई है | इस हेतु एक वरिष्ठ विधायक की अध्यक्षता में समिति का गठन भी कर दिया गया जिसमें   सत्ता और विपक्ष  दोनों का प्रतिनिधित्व है | बाताया जा रहा है 2016 के बाद विधायकों के वेतन और भत्ते चूंकि नहीं बढ़े  इसलिए ये समिति बनाई गई है | यद्यपि इसकी कवायद कमलनाथ सरकार के समय ही शुरू  हो गई थी किन्तु वह गिर गई और उसके बाद आ गया कोरोना | अब एक साल बाद जब कोरोना की दूसरी लहर में बड़े पैमाने पर जन और धन हानि हुई है तथा सरकारी खजाना खाली पड़ा है तब विधायकों के वेतन - भत्तों में वृद्धि जैसे विषय नितांत गैर जरूरी लगते हैं | आश्चर्य की बात है कि छोटी - छोटी सी बातों पर सरकार पर  चढ़ बैठने वाला विपक्ष ऐसे मामलों में सर्वदलीय एकता का पक्षधर बन जाता है | संसद में भी यही नजारा देखने  मिलता है | अक्सर सत्र के अंतिम दिन सांसदों के वेतन - भत्तों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव संसदीय कार्यमंत्री पेश करते हैं जिस पर न कोई बहस होती है और न ऐतराज | प्रस्ताव पेश होते ही  समूचा सदन एकमत से उसे स्वीकृति प्रदान कर देता है | देखा - सीखी विधान सभाओं में भी  ऐसा होने लगा | जनप्रतिनिधियों को अपना कार्य ठीक से करने के लिए पर्याप्त वेतन - भत्ते और अन्य सुविधाएँ मिलनी ही चाहिये | लेकिन देखने वाली बात ये भी है कि जिन सांसदों - विधायकों की आय उनके द्वारा दिये गए शपथ पत्र के मुताबिक लाखों और करोड़ों में है , वे भी वेतन - भत्तों और सुविधाओं को लेने से इंकार नहीं करते | हालाँकि कुछ हैं जो पूरा पैसा जन कल्याण में लगा देते हैं | लेकिन समाजवाद और साम्यवाद का झन्डा उठाने वाले भी इस वृद्धि का विरोध करते शायद  ही कभी देखे गए हों | सदस्य न रहने पर भी मिलने वाली पेंशन , निःशुल्क यात्रा और चिकित्सा से भी अपवादस्वरूप किसी ने इंकार किया होगा | मप्र विधानसभा के माननीय सदस्यों से ये अपेक्षा है कि वे वेतन - भत्तों में वृद्धि के किसी भी प्रयास को तब तक स्थगित रखने का दबाव बनायें जब तक प्रदेश कोरोना संकट से उबरकर सामान्य स्थिति में नहीं लौट आता | आने वाले कम से कम दो साल कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई में लग जायेंगे और वह भी  तब जब तीसरी लहर या उस जैसी ही कोई आपदा न आ टपके | विधायकों को ये  समझ लेना चाहिए कि इस समय जनता बेहद नाराज है और उसकी नाराजगी हर दृष्टि से जायज भी है | ऐसे में जब आम आदमी की आर्थिक स्थिति बुरी शक्ल में है तब माननीय विधायकों के वेतन - भत्तों में वृद्धि की बात सोचना भी जनता के जले पर नमक छिड़कने जैसा होगा | अच्छा होगा विधायकों के बीच से ही इसके  विरुद्ध  आवाज उठे लेकिन उसकी सम्भावना लगभग शून्य है क्योंकि यही एक ऐसा मुद्दा है जिसमें दलीय मतभेद किनारे रख दिए जाते हैं | ये देखकर हंसी आती है कि चुनाव में करोड़ों फूंकने   वाले अधिकतर  नेतागण चुनाव जीतने के बाद वेतन और भत्ते के साथ सरकारी सुविधाओं के मोहताज हो जाते हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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