Wednesday 30 June 2021

एक वर्ग को राहत दूसरे की आफत न बने



दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पंजाब की जनता को आश्वासन दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में  आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला तब हर परिवार को 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त दिए जाने के साथ ही पुराने बिल माफ़ होंगे | दिल्ली में इसी फॉर्मूले को आजमाकर  आम आदमी पार्टी ने  परचम लहरा दिया था |  2018 में कांग्रेस ने भी पंजाब , मप्र और छत्तीसगढ़ में किसानों के 2 लाख रु. तक के  कर्जे माफ़ करने का वायदा करते हुए चुनावी  सफलता हासिल की | कमलनाथ सरकार ने मप्र में  100 रु. में 100 यूनिट तक बिजली देने का इंतजाम किया था | मप्र में स्व. अर्जुन सिंह गरीबों को एक बत्ती कनेक्शन निःशुल्क देकर गरीबों  के मसीहा बन बैठे थे | दक्षिण भारत विशेष रूप से तमिलनाडु में तो चुनाव के दौरान लगता है जैसे  मुकाबला राजनीतिक दलों की बजाय उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वालों के बीच हो रहा हो | धीरे - धीरे ये चलन हर राज्य में बढ़ता गया |  हालाँकि मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा लड्कियों को सायकिल , गरीबों को सस्ता राशन जैसी योजनाएं लोक कल्याणकारी शासन  के प्राथमिक दायित्वों में आती हैं लेकिन इसके साथ ये  भी देखा जाना चाहिए कि उनका सरकार के खजाने पर क्या असर होता है | दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने  बिजली - पानी , शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जो योजनायें प्रारम्भ कीं उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण दिल्ली  सरकार के पास आने वाले राजस्व की मात्रा है | उद्योग और व्यापार के अलावा हजारों कंपनियों के मुख्यालय दिल्ली में होने से राज्य सरकार को कर के रूप में जबरदस्त आय होती है | भौगोलिक क्षेत्र भी महानगर तक ही सीमित है | ऐसे में जो काम वहां की सरकार करने में सक्षम है वैसा बड़े राज्य नहीं कर सकते | उदहारण के लिए मप्र का विद्युत् मंडल एक ज़माने में देश  का सबसे सम्पन्न मंडल हुआ करता था | अर्जुन सिंह जी द्वारा बांटे गये एक बत्ती कनेक्शन की आड़ में बिजली चोरी की जो संस्कृति शुरू हुई उसने मंडल का भट्टा बिठा दिया | ये बात केवल मप्र तक ही सीमित नहीं रही अपितु  देश के सबसे  समृद्ध राज्य  कहे जाने वाले महाराष्ट्र और  पंजाब तक आर्थिक बदहाली के कगार पर आ गये | कोरोना काल में गरीबों को दिए गये मुफ्त राशन की योजना का उद्देश्य निश्चित रूप से बड़ा पवित्र था किन्तु वही राशन किराना दुकानों को बेचे जाने की खबरें भी आती रहीं | केजरीवाल जी या उन जैसे बाकी नेता  मुफ्त उपहार योजना के जरिये चुनावी सफलता तो हासिल कर लेते हैं  लेकिन सरकार का आर्थिक प्रबंधन गड़बड़ा जाता है |  सबसे बड़ी बात ये है कि राजनेताओं की ये  दरियादिली समाज के बाकी वर्गों पर बोझ बन जाती है | एक वर्ग को सस्ती बिजली देने के बाद शेष उपभोक्ताओं को दी जाने वाली बिजली के दाम लगातार बढाते जाना एक तरह की ठगी है | गत दिवस मप्र सरकार के एक मंत्री ने स्वीकारा कि किसानों को विभिन्न योजनाओं में 93 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है | बोझ ज्यादा हो जाने के बाद अब उसमें कमी  किये जाने की बात मंत्रीमंडल के भीतर से ही उठ रही है लेकिन किसानों की नाराजगी मोल लेने की हिम्मत किसी में नहीं है | सवाल ये है कि ईमानदारी से  कर देने वालों पर बोझ बढाकर  वोटों का इंतजाम क्या न्यायसंगत है | ये बात सही है कि  कल्याणकारी योजनायें  करों अथवा शुल्कों से ही संचालित होती हैं | लेकिन इनका उपयोग युक्तियुक्तपूर्ण होना चाहिए | इनसे यदि समाज में वर्गभेद और ईर्ष्या बढ़े तब इनका मूल उद्देश्य ही जाता रहता है | भारतीय सामज  में परोपकार बतौर संस्कार  है | कोरोना काल में गरीब और वंचित वर्ग की मदद करने के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत दोनों स्तरों पर सराहनीय कार्य हुए | लेकिन सरकार जो कल्याणकारी योजनायें चलाती है उनके पीछे राजनीतिक स्वार्थ होता है इसलिए वह लाभान्वितों के अलावा बाकी लोगों को नाराज करती है | अर्थव्यवस्था जिस संकट से गुजर रही है उसमें राहत की जरूरत उद्योगपति , व्यापारी , नौकरीपेशा , किसान , मजदूर से लेकर बेरोजगार युवाओं तक को है | इसलिए श्री केजरीवाल सहित अन्य सत्ताधीशों को चाहिये कि वे सरकारी कृपा की बरसात समाज के सभी वर्गों पर न्यायोचित तरीके से करें और ऐसा करते समय ये भी देखा जावे कि इससे प्रदेश और देश की आर्थिक सेहत पर क्या असर पडेगा ? कोरोना काल  में राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा कितने परोपकारी प्रकल्प  चलाये गये इन पर भी एक श्वेत पत्र आ जाए तो उनकी दानशीलता का भांडा फूटते देर नहीं  लगेगी | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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