हालाँकि जितिन प्रसाद इतने बड़े नेता नहीं हैं जिनके आने से भाजपा को उप्र में बड़ी ताकत मिल सके | वे खुद भी पिछले दो लोकसभा चुनाव हार चुके हैं | उनके स्वर्गीय पिता जितेन्द्र प्रसाद जरूर कांग्रेस की केन्द्रीय राजनीति में काफी प्रभावशाली थे | रही बात जितिन की तो वे भी केंद्र में मंत्री रह चुके हैं | लेकिन बीते काफी समय से राजनीतिक तौर पर उपेक्षित थे | कांग्रेस के भीतर असंतुष्टों का जो जी - 23 नामक गुट पनपा उसमें शामिल होने से जरूर वे चर्चा में आये | कांग्रेस से उनकी नाराजगी की वजह उप्र में प्रियंका वाड्रा का हावी होता जाना है |जितिन चाह रहे थे कि राज्य में कांग्रेस की कमान उनको दी जाए लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के पहले राहुल गांधी ने अचानक प्रियंका को महामंत्री बनाकर उप्र की जवाबदारी सौंप दी | हालंकि उनकी सक्रियता के बावजूद राहुल गांधी अमेठी की पुश्तैनी सीट हार गए | उसके बाद हुए अनेक उपचुनावों के साथ ही हाल के पंचायत चुनावों में भी पार्टी की दयनीय स्थिति में लेश मात्र भी सुधार नहीं हुआ | जितिन को कांग्रेस ने बंगाल का काम दिया था लेकिन वहां के विधानसभा चुनाव में उसका सफाया हो गया | उसके बाद उनको लगने लगा कि कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है और इसलिए वे भाजपा में आ गये | हालांकि इस पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इसकी अटकलें पिछले लोकसभा चुनाव से ही लगाई जा रही थीं | अब ये प्रचारित किया जा रहा है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीतियों से नाराज भाजपा के परम्परागत समर्थक ब्राह्मण मतदाता जितिन के आने से खुश हो जायेंगे | ये आकलन कितना सही है ये तो भविष्य बतायेगा किन्तु बंगाल के चुनाव में दलबदलुओं को सिर पर बिठाने का खामियाजा उठाने के बाद भी भाजपा नेतृत्व दूसरे दलों से आने वालों के लिए लाल कालीन बिछाए बैठा है | खबर है मुम्बई के युवा कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा भी जितिन की राह पर चलकर भाजपाई बनने वाले हैं | चर्चा तो राजस्थान के सचिन पायलट की भी हो रही है | कहते हैं गत वर्ष मप्र की कमलनाथ सरकार को गिरवाकर भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में तोड़फोड़ करने के काम में लगे हैं | विशेष रूप से राहुल ब्रिगेड के सदस्य कहलाने वाले युवा नेताओं पर उनकी नजर है | वैसे भाजपा के कार्यकर्ताओं में नए मेहमानों को लेकर बहुत उत्साह नहीं है | मप्र में सिंधिया समर्थकों को थोक के भाव मंत्री बनाये जाने से पार्टी के अनेक वरिष्ठ विधायक कोप भवन में बैठे हैं | बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद दलबदलू नेताओं के तृणमूल में लौटने की खबरों के साथ ही अपने संगठन में जमकर खींचातानी के बाद भी पार्टी आलाकामान कांग्रेस में तोड़फोड़ करने के प्रति इच्छुक है तो उसके पीछे सोच ये है कि उसे इतना कमजोर कर दिया जावे कि वह राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर अपने को पेश करने की स्थिति में ही न रहे | भाजपा को एक बात समझ में आ चुकी है कि क्षेत्रीय दलों को उनके प्रभाव वाले राज्यों में प्रदेश स्तर की राजनीति में मात देना कठिन है | लेकिन जब लोकसभा चुनाव आते हैं तब मतदाता राष्ट्रीय पार्टी को महत्व देते हैं | ये देखते हुए भाजपा चाह रही है कि कांग्रेस के युवा नेताओं को अपने पाले में खींचकर उसकी मारक क्षमता कम कर दी जाए | इससे क्षेत्रीय पार्टियां भी उसके साथ गठबंधन करने में कतराने लगेंगी | लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ ही स्वाभाविक तौर पर आता रहा है | लेकिन यही हाल रहा और राहुल के निकटस्थ साथी छोडकर जाते रहे तब पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर न तो विकल्प के तौर पर मतदाताओं के सामने दावा कर सकेगी और न ही ममता बैनर्जी जैसी जनाधार वाली नेता उसे भाव देंगी | जितिन के भाजपा में जाने पर प्रियंका की प्रतिक्रिया कांग्रेस की हताशा को ही दर्शाती है | ऐसा ही श्री सिंधिया के पार्टी छोड़ते समय सुनाई दिया था | राजस्थान में श्री पायलट की नाराजगी को दूर करने में गांधी परिवार जिस तरह से असमर्थ नजर आ रहा है उससे ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत को हिलाने की हिम्मत राहुल नहीं कर पा रहे | मुम्बई में भी मिलिंद देवड़ा कांग्रेस के युवा चेहरे हैं लेकिन वे भी बुजुर्ग नेताओं के कारण दुखी हैं | भाजपा को लगता है कि यदि राहुल के नजदीकी युवा नेताओं को अपने साथ ले आया जाए तो कांग्रेस की ताकत में कमी आयेगी और जी - 23 में शामिल नेता अपने हमले त्तेज कर देंगे | हालाँकि भाजपा के भीतर भी नए मेहमानों को दिए जा रहे महत्व् पर नाक सिकोड़ने वाले कम नहीं हैं लेकिन येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने के मामले में चूँकि वह भी कांग्रेस और बाकी दलों की तरह ही हो गयी है इसलिए दलबदलुओं को न चाहते हुए भी बर्दाश्त कर लिया जा रहा है | बंगाल में भी यदि सत्ता बन जाती तब शायद पार्टी के भीतर उठापटक नजर नहीं आती | लेकिन ये स्थिति कांग्रेस के लिए वाकई चिन्ताजनक है | पंजाब से आ रही खबरें भी अच्छी नहीं कही जा सकतीं | जितिन प्रसाद के आने से उप्र में भाजपा को कितना फायदा होगा ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन कांग्रेस का नुकसान तो होगा ही | और भाजपा भी यही चाह रही है क्योंकि मोदी और शाह की निगाह अगले लोकसभा चुनाव पर लग गई है जिसमें कांग्रेस के कमजोर होने से भाजपा को विकल्पहीनता का लाभ मिल सकता है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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