Friday 4 June 2021

दस लाख तक की आय करमुक्त करने से बाजार में मांग बढ़ेगी



लगातार दूसरा  वित्तीय वर्ष कोरोना की  बलि चढ़ने जा रहा है | पहले से मंदी की शिकार अर्थव्यवस्था के लिए वह  दूबरे में दो आसाढ़ की कहावत को चरितार्थ करने वाला साबित हुआ | सकल घरेलू उत्पादन ( जीडीपी ) और विकास दर के आंकड़ों में भी आये दिन बदलाव होने से उद्योग - व्यापार की दिशा ही तय नहीं हो पा रही | संतोष की बात है कि कृषि क्षेत्र ने विषम परिस्थितियों में भी आशातीत प्रदर्शन करते हुए रिकॉर्ड पैदावार की जिससे  खाद्यान्न संकट का सामना करने से देश बचा रहा | लेकिन शहरों में बीते सवा साल में अनेक।माह बाजार बंद होने से व्यापारी और उद्योगपति दोनों हलाकान होते रहे | लॉक  डाउन के कारण उपभोक्ता बाजार से दूर हो गया जिसका असर अंततः औद्योगिक उत्पादन पर पड़ा |  कारोबार घटने से सरकार की कर वसूली पर भी बुरा असर हुआ  | सबसे ज्यादा मुसीबत में आये बैंक जिनके कर्ज बड़ी संख्या में वसूली के अभाव में फंस जाने से उनके सामने पूंजी का संकट पैदा हो गया | जो लोग साधन संपन्न या यूँ कहें कि धनवान थे वे तो इस संकट का सामना जैसे - तैसे कर भी गये और जो गरीब हैं उनके पेट भरने का इंतजाम सरकार ने जितना बन सका किया |  हालाँकि रोजगार छिन जाने से उनको भी जीवन यापन में अकल्पनीय दिक्कतें उठानी पड़ीं किन्तु जो मध्यमवर्गीय नौकरपेशा , व्यवसायी अथवा सेवा क्षेत्र से जुड़ा स्व रोजगारी है उसके लिए बीता एक वर्ष भारी संकट लेकर आया | सरकारी कर्मचारी को तो गनीमत है , वेतन मिलता रहा लेकिन निजी क्षेत्र में कार्यरत लोगों को नौकरी जाने अथवा वेतन कटौती का दंश झेलना पड़ा | यही स्थिति स्वरोजगार एवं अन्य पेशेवरों की है जिनका कारोबार लॉक डाउन में बड़े पैमाने पर कम हो गया | अब जैसी कि उम्मीद है आगामी कुछ दिनों में देश कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से करीब - करीब मुक्त हो जाएगा | तमाम विसंगतियों के बावजूद प्रतिदिन लाखों लोगों को कोरोना  संक्रमण से बचने के लिए रक्षा कवच के रूप में टीका भी लगाया जा रहा है | इसी के साथ ये खबर भी आ रही है कि रबी फसल की सरकारी ख्ररीद ने बीते साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया और किसानों के  बैंक खाते में सीधे उसकी राशि जमा  भी की जा रही है | आर्थिक  मामलों के जानकारों का मानना है कि किसानों की जेब में आया पैसा जल्द ही बाजारों में आयेगा जिससे मांग बढ़ेगी और  उद्योगों को उत्पादन बढाने हेतु प्रोत्साहन मिलेगा | सरकार भी जीएसटी के तौर पर आय का प्रवाह  तेज होने से परेशानी से उबर सकेगी | लेकिन  केवल किसान के बाजार में आने मात्र से अर्थव्यवस्था को प्राणवायु मिलने की बात सोचना अतिशयोक्ति होगी क्योंकि जब तक शहरों में रहने वाला मध्यमवर्ग बाजार में अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करवाता तब तक अर्थव्यवस्था घुटनों के बल भले ही चलने लायक हो जाए लेकिन  पैर्रों पर खड़े होने लायक नहीं हो सकेगी | गत वर्ष के बजट और उसके बाद के  पैकेजों में सरकार ने इस वर्ग को राहत देने के अनेक जतन किये किन्तु वे  कारगर नहीं हुए तो उसकी वजह उनका अव्यवहारिक होना था | ये सब देखते हुए यदि केंद्र सरकार चाहती है कि व्यापार और उद्योग पुरानी रंगत में लौटें तब उसे  चाहिए कि वह मध्यमवर्गीय करदाता की   दस लाख तक की आय को करमुक्त कर दे | ऐसा करने मात्र से बहुत बड़े तबके के मन में अनिश्चित भविष्य को  लेकर समाया भय कम होगा और वह बाजार को गुलजार करने निकलेगा | आज के हालात में मध्यमवर्गीय व्यक्ति चाहे वह किसी भी पेशे में हो , बहुत परेशान है | न तो उसके पास संचित धन है और न ही गरीबों की तरह उसे सरकार से सीधी सहायता मिल रही है |  ऐसे में उसके हाथ बंध जाने से वह बहुत जरूरी खरीदी ही कर पा रहा है और वह भी तकलीफ उठाकर | यदि सरकार इस वर्ग को सीधे राहत देते हुए आयकर छूट की सीमा बढाकर दस लाख रु. कर  दे , लेकिन उसके साथ किसी तरह की चालबाजी न हो तो अर्थव्यवस्था को किसानों के साथ ही शहरी समर्थन भी भरपूर मिलने लगेगा | बाजारों में रौनक आने से कर वसूली के आंकड़े तो सुधरेंगे ही , बेरोजगारी भी दूर होगी | मौजूदा हालातों में अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा किये गये तमाम प्रयास इसलिए आधा- अधूरा नतीजा दे पाए क्योंकि उनमें पेचीदगियों की भरमार थी | बैंकों को दरियादली दिखाने को तो कहा जाता रहा किन्तु उनके हाथ भी  बांधकर रखे गये | ये देखते हुए बेहतर होगा कि किसान के बाद भारतीय अर्थव्यस्था की  रीढ़  कहलाने वाले मध्यमवर्ग को आयकर छूट के  तौर पर सीधी राहत दी  जाए जिससे वह आर्थिक  के अलावा मानसिक तौर पर भी मजबूत बने जो वर्तमान हालातों में  सबसे बड़ी जरूरत है | काश , हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड में पढ़े सरकार के आर्थिक सलाहकार इस आसान  तरीके को समझ पाते |

- रवीन्द्र वाजपेयी



No comments:

Post a Comment