दो दिन पहले प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर जम्मू - कश्मीर की विभिन्न पार्टियों के नेताओं की जो बैठक दिल्ली में हुई उसमें केंद्र सरकार ने न तो धारा 370 हटाने संबंधी आश्वासन दिया और न लद्दाख को दोबारा जम्मू - कश्मीर में मिलाने का | फारुख और उमर अब्दुल्ला दोनों ने बाद में ये कहा भी कि 370 पर सर्वोच्च न्यायालय का जो भी फैसला होगा वे उसे मान्य करेंगे | महबूबा मुफ्ती ने जरूर तीखे तेवर दिखलाये लेकिन किसी का समर्थन नहीं मिलने से वे अलग - थलग पड़ गईं | विशेष तौर से पाकिस्तान से बात करने संबंधी उनके बयान का किसी ने भी संज्ञान नहीं लिया | बिना किसी पूर्व निर्धारित विषय सूची के हुई उक्त बैठक में केंद्र ने विधानसभा चुनाव के पूर्व सीटों के परिसीमन की जरूरत बताते हुए पूर्ण राज्य का दर्जा उसके बाद देने की बात कही | जबकि फारुख , उमर और महबूबा का कहना था कि दोबारा जब पूरे देश में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू हो तब जम्मू - कश्मीर को भी उसमें शरीक किया जावे | जवाब में केंद्र का कहना था कि अतीत में भी विशेष स्थिति का फायदा उठाकर परिसीमन टाला जाता रहा जिससे कि घाटी में जम्मू अंचल से ज्यादा सीटें होने से राजनीतिक असंतुलन बना रहा | इसे धार्मिक चश्मे से भी देखा जाता है क्योंकि घाटी में मुस्लिम जनसँख्या 95 फीसदी से ज्यादा है जबकि जम्मू में हिन्दू और सिख बहुमत में हैं | प्रस्तावित परिसीमन में जम्मू क्षेत्र में सात सीटें बढ़नी हैं जिसे लेकर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी परेशान हैं | गृह मंत्री अमित शाह ने सरकार की तरफ से कहा कि स्थितियां पूर्णतः सामान्य होने पर जम्मू - कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने सरकार प्रतिबद्ध है किन्तु परिसीमन प्रक्रिया रोकने पर उन्होंने कोई आश्वासन नहीं दिया | इसी तरह से लद्दाख और धारा 370 की वापिसी पर किसी भी तरह के आश्वासन से भी सरकार बचती रही | उस दृष्टि से देखें तो घाटी के नेता खाली हाथ आये थे और वैसे ही लौटे भी | चुनाव करवाने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने के पहले नई सीटों के लिए परिसीमन का पेंच फंसाकर केंद्र ने बैठक में उन छोटे दलों को सम्मोहित कर लिया जो घाटी में अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के एकाधिकार के बीच अपनी जगह बनाने प्रयासरत हैं | उनको ये समझ आ चुका है कि न 370 बहाल होगी और न ही लद्दाख वापिस मिलेगा | नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की तरह अपना मुख्यमंत्री बनाने की चाहत भी छोटी पार्टियों में नहीं है | इसलिए वे इस बात से ही खुश हैं कि चुनाव होने से उनकी भी हैसियत में कुछ वृद्धि तो हो ही जायेगी | बैठक में कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद जरूर मौजूद रहे लेकिन घाटी की सियासत में उनका विशेष महत्व नहीं बचा है | हालाँकि उन्होंने 370 और पूर्ण राज्य का दर्जा जैसे मुद्दों पर तो अब्दुल्ला और मुफ्ती का समर्थन किया किन्तु उनकी बातों में प्रधानमंत्री के प्रति जो प्रशंसा भाव दिखा वह काबिले गौर था | उस वजह से भी केंद्र सरकार को काफी बल मिला | बहरहाल बैठक का अंत जिस खुशनुमा माहौल में हुआ वह भी बेहद महत्वपूर्ण है | बैठक के बाद उमर ने 370 पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मानने की बात कहकर ये संकेत दे दिया कि अलगाववादी ताकतों का जनाधार ढलान पर है | महबूबा ने जरूर ये रोना रोया कि घाटी के लोग बदहाली से गुजर रहे हैं लेकिन बाकी नेता विधानसभा चुनाव कराए जाने के साथ ही पूर्ण राज्य का दर्जा लौटने की उम्मीद से ही संतुष्ट दिखे | बैठक के बाद दिल और दिल्ली की दूरी घटाने जैसे प्रधानमंत्री के ट्वीट पर कश्मीरी नेताओं का ये कहना कि एक बैठक से ये नहीं होगा , इस बात के प्रति आश्वस्त करने वाला रहा कि वे बातचीत के लिए लालायित हैं जबकि कुछ समय पहले तक घाटी से एक ही आवाज सुनाई देती थी कि 370 और लद्दाख की वापिसी के बिना केंद्र से कोई बातचीत नहीं होगी | जाहिर है परिसीमन के काम में समय लगेगा और तब तक केंद्र का शासन वहां बना रहेगा | इस बैठक के माध्यम से केंद्र सरकार ने घाटी के नेताओं की ताकत और एकता दोनों का आकलन कर लिया जिससे आगे की रणनीति तय करने में उसे सहायता मिलेगी |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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