अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के लिए बनाये न्यास द्वारा खरीदी एक जमीन को लेकर जो विवाद उठा उससे प्रथम दृष्टया संदेह हुआ कि बहुत महंगी कीमत चुकाई गई | इसका कारण संदर्भित जमीन के दो बिक्री पत्रों का पंजीयन होना है | पहला सौदा जहाँ 2 करोड़ का हुआ वहीं दूसरा कुछ देर बाद ही तकरीबन 18 करोड़ में | आम आदमी पार्टी , सपा और कांग्रेस ने बिन देर किये चंदे की राशि में हेराफेरी का आरोप लगा डाला | बात प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री से जवाब मांगने तक जा पहुँची | ममता बैनर्जी ने केन्द्रीय जांच टीम भेजने की गुजारिश की तो किसी ने सीबीआई जांच की सलाह दे डाली | राम के नाम को बदनाम किये जाने जैसी बातें भी उठने लगीं | विश्व हिन्दू परिषद , रास्वसंघ और भाजपा को घेरने का जोरदार प्रयास चल पड़ा | दूसरी तरफ न्यास की तरफ से आरोपों को झुठलाते हुए ये साबित करने की कोशिश की गई कि जमीन की खरीदी अयोध्या में प्रचलित दरों से कम पर की गई है तथा कीमतों का अंतर पुराने अनुबंध के कारण है | वास्तविकता क्या है ये तो जांच से ही पता चलेगा क्योंकि सार्वजानिक ट्रस्ट होने से उसका हिसाब - किताब गोपनीय नहीं रह सकता | न्यास ने जो सफाई दी वह इस तरह के सौदों में आम है किन्तु मंदिर निर्माण में पारदर्शिता इसलिए अनिवार्य है क्योंकि उस योगदान के पीछे धार्मिक के साथ ही राष्ट्र के प्रति आस्था जुड़ी हुई थी | राम पूरे विश्व में भारत के प्रतीक पुरुष माने जाते हैं | मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में उनका जीवन आदर्श था | उनके पूर्व और बाद में भी देश और दुनिया में एक से बढ़कर एक ताकतवर और लोकप्रिय शासक हुए लेकिन शासन की गुणवत्ता के लिए आज भी राम राज्य को ही मापदंड माना जाता है | और इसका कारण भगवान राम का निष्कलंक और समावेशी व्यक्तित्व ही था | इसीलिये उनका मंदिर बनाने हेतु धनसंग्रह शुरू हुआ तो देखते - देखते ही उसने लक्ष्य को छू लिया | जहाँ तक सवाल मंदिर निर्माण हेतु गठित न्यास का है तो उसके बारे में गैर भाजपाई पार्टियों की मुख्य शिकायत ये है कि उसमें उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला | कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने गत दिवस एक बार फिर दोहराया कि मंदिर निर्माण का दायित्व पहले बनाए जा चुके रामालय ट्रस्ट को सौंपा जाना चाहिए था जिसका सृजन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी द्वारा किया गया था | उल्लेखनीय है स्वामी जी विश्व हिन्दू परिषद के घोर विरोधी रहे हैं | ये सब देखते हुए कहा जा सकता है कि इस विवाद के पीछे उप्र और उत्तराखंड विधानसभा के आगामी चुनाव हैं | जैसी कि खबर है चुनाव के पहले तक मंदिर का ढांचा काफी कुछ खड़ा हो जाएगा | चूँकि पत्थरों की गढ़ाई बीते लगभग ढाई दशक से निर्बाध चली आ रही है इसलिए नींव से ऊपर आते ही मंदिर को आकार देने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | ज़ाहिर है भाजपा इसका राजनीतिक लाभ लेने का भरसक प्रयास करेगी | इसीलिये विवाद पर समूचा विपक्ष एकस्वर में बोलने लगा | हालांकि न्यास ने जिस आत्मविश्वास से घोटाले को राजनीतिक साजिश बताते हुए मानहानि का दावा करने के संकेत दिए उससे लगता है कि उसका पक्ष कमजोर नहीं हैं | लेकिन इस तरह के मामलों में आरोप तेजी से प्रचारित होता है | ऐसे में न्यास का फर्ज है कि वह आरोपों का उत्तर विस्तार के साथ दे क्योंकि राम मंदिर निर्माण जैसे पवित्र कार्य में एक पैसे का घालमेल भी स्वीकार्य नहीं हो सकता | जिन लोगों ने भूमि खरीदी में घपलेबाजी का आरोप लगाया उनको भी चाहिए कि वे अपनी मुहिम को अंजाम तक पहुंचाएं अन्यथा जनता की निगाह में उनकी साख मिट्टी में मिले बिना नहीं रहेगी | मंदिर निर्माण में किसी भी प्रकार की अनियमितता या भ्रष्टाचार न सिर्फ दानदाताओं और राम भक्तों की आस्था अपितु भगवान राम का ही अपमान होगा | इसलिए आरोप लगाने वालों से अपेक्षा है कि वे पत्थर फेंककर भाग जाने के बजाय अपनी बात को साबित करें , वहीं न्यास पर भी ये नैतिक दबाव है कि वह अपनी ईमानदारी प्रमाणित करने के साथ ही आरोप गलत पाए जाने पर दुष्प्रचार करने वालों को कड़ी सजा दिलवाने के लिए विधि सम्मत तरीकों का सहारा ले |
- रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment