Friday 18 June 2021

जांगिड़ के आरोप : बात निकली है तो फिर ....



हरियाणा के एक आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को ईमानदारी के चलते अनगिनत स्थानान्तरण झेलने पड़े। विपक्ष में रहते हुए उनसे सहानुभूति रखने वाले भी सत्ता में आने के बाद उनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि श्री खेमका जिद्दी और अड़ियल स्वभाव के होने के कारण न सिर्फ उच्च अधिकारियों वरन अपने सहकर्मियों से भी सामंजस्य नहीं बना पाते । देश के अन्य राज्यों से भी इस तरह के समाचार आया करते हैं जिनमें प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों  की सत्ता से टकराहट होने पर उनका आनन -  फानन में  तबादला कर दिया जाता है । जनप्रतिनिधियों से  नौकरशाहों की कहा -  सुनी का भी परिणाम स्थानांतरण की शक्ल में सामने आता है। लेकिन मप्र में एक नये तरह का मामला सामने  आया है। जिसमें एक आईएएस लोकेश कुमार जांगिड़ ने बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा पर  ये आरोप लगा दिया कि उन्होंने  ऑक्सीजन कंसंट्रेटर  खरीदने में घूसखोरी की। उसके बाद उनका बड़वानी से तबादला कर दिया गया। 2014 बैच के इस अधिकारी का ये आठवां स्थानांतरण है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उनको एक स्थान पर औसतन छह माह ही रखा गया । उनके तबादलों की वजह उनका झगड़ालू स्वभाव है या फिर वे प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करने की सजा पाते हैं ये तो जांच से ही सामने आएगा । लेकिन इस युवा अधिकारी ने जिस दबंगी से अपने वरिष्ठ अधिकारी पर खुला आरोप लगाया  तो सरकार से ज्यादा आईएएस बिरादरी में हड़कम्प मच गया। दूसरा कोई कलेक्टर पर पैसा खाने की तोहमत लगाता तब शायद काले अंग्रेज कहे जाने साहब बहादुर उसे हवा में उड़ाकर रख देते किंतु यहां तो उनका अपना अधीनस्थ अधिकारी ही सार्वजनिक रूप से सीना ठोंककर जिले के सर्वोच्च अधिकारी को घूसखोर कहने का दुस्साहस कर बैठा। जिसकी सजा उसे एक और तबादले की शक्ल में मिली। इससे रुष्ट होकर श्री जांगिड़ ने महाराष्ट्र तबादला मांग लिया । साथ ही ये ऐलान भी कर दिया कि सेवा निवृत्ति उपरांत वे एक पुस्तक लिखकर प्रशासनिक सेवा के अनुभव लिखेंगे क्योंकि सड़ी हुई सेवा शर्तें फिलहाल इसकी अनुमति नहीं देतीं। जैसी जानकारी है , आईएएस अधिकारियों के संगठन में घर के भीतर हुई इस बगावत को दबाने की कोशिश के अलावा सरकार की ओर से  नोटिसबाजी भी हुई और श्री जांगिड़ को व्हॉट्स एप ग्रुप से अपनी पोस्ट हटाने कहा गया । लेकिन वे नहीं मान रहे। सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव से हुई बात की रिकॉर्डिंग भी उन्होंने अन्य अधिकारियों को भेज दी। अपनी सफाई देने मुख्य सचिव से समय मांगने की उनकी कोशिश भी निष्फल रही। बहरहाल श्री जांगिड़ को बड़वानी से हटाकर भोपाल ले आया गया। हो सकता है महाराष्ट्र भेजे जाने की उनकी अर्जी मंजूर कर उनसे पिंड भी छुड़ा लिया जावे किन्तु उन्होंने कलेक्टर पर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ज्यादा दाम पर खरीदने और पैसा खाने का जो आरोप लगाया उसका क्या होगा ये बड़ा सवाल है। रोचक बात ये है कि अपने को हरिश्चंद्र साबित करने के फेर में बड़वानी कलेक्टर ने पड़ोसी जिलों के कलेक्टरों द्वारा उनसे भी ज्यादा कीमत पर उक्त उपकरण ख़रीदने का खुलासा कर दिया । हॉलांकि इस तरह उन्होंने अपने को पाक  - साफ दर्शाने का प्रयास किया लेकिन उनका ये दांव अप्रत्यक्ष तौर पर बाकी कलेक्टरों को लपेटने का औजार बन सकता है। इससे एक बात साबित है कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की कीमतों में एकरूपता का अभाव रहा और हर कलेक्टर द्वारा अलग दामों पर खरीदी की गई। इस विवाद में नेताओं की बिरादरी दूर से मजे ले रही है । ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब प्रशासन में बैठे साहब बहादुर एक दूसरे की इज्जत तार-तार करने पर आमादा हों । आम तौर पर ये देखने में आया है कि जब कोई आईएएस अफसर फंसता है तो उनकी पूरी जमात बचाव में खड़ी हो जाती है किंतु यहां तो एक अफसर ही दूसरे को भ्रष्ट बता रहा है। श्री जांगिड़ का तबादला करना सरकार का अधिकार है लेकिन उनके द्वारा अपने से वरिष्ठ जिला अधिकारी पर  सीधे - सीधे पैसे खाने का आरोप लगाए जाने के बाद मात्र तबादला करने से मामले का पटाक्षेप नहीं होने वाला। कलेक्टर श्री वर्मा ने अपने समकक्ष अन्य अधिकारियों पर ज्यादा दाम देकर ख़रीदी की जो बात कही वह भी जांच के दायरे में आनी चाहिए।  राज्य सरकार को इस मामले का गम्भीरता से संज्ञान लेते हुए श्री जांगिड़ के आरोप को अफसर बिरादरी के आंतरिक मामले से अलग कर देखना होगा क्योंकि राज्य में ऑक्सीजन कंसंट्रेटरों की खरीदी में  भ्रष्टाचार की आशंका इससे प्रबल हुई है। यदि सरकार ने इस प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ा तो भ्रष्टाचार रूपी तक्षक उसके सिंहासन को भी डगमगाए बिना नहीं रहेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी


No comments:

Post a Comment