Wednesday 16 June 2021

परिवारवाद पर टिकी पार्टियों का यही हश्र होगा



लोजपा ( लोक जनशक्ति पार्टी ) में  टूटन से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ | स्व. रामविलास पासवान द्वारा बनाई लोजपा का उद्देश्य निजी स्वार्थ था  । इसीलिए  कांशीराम की तरह दलित राजनीति का चेहरा बनने की उनकी महत्वाकांक्षा धूल  - धूसरित हो गई और वे बिहार के एक छोटे से इलाके तक ही सिमटकर रह गए | वर्तमान लोकसभा में पार्टी के छह सदस्यों में से तीन पासवान परिवार के हैं  | स्व. पासवान 1974 में  जेपी की अगुआई में हुए  छात्र आंदोलन से निकली युवा नेताओं की  टोली के सदस्य थे  | 1977 की  जनता लहर में उन्होंने हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र  में  पांच लाख मतों से भी ज्यादा  से जीत का रिकॉर्ड बनाकर राष्ट्रव्यापी पहिचान हासिल की | उसके बाद से वे लगातार संसद मे रहे | एक - दो सांसदों के बल पर भी केंद्र में मंत्री बन जाना उनकी राजनीतिक चतुराई का परिणाम था |   इसी कारण लालू यादव उनको मजाक में मौसम वैज्ञानिक कहने लगे थे | उनके राजनीतिक अवसरवाद का सबसे बड़ा  उदाहरण नरेंद्र मोदी के साथ  गठबंधन था |  2002 के गुजरात दंगों के बाद श्री मोदी को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाये जाने से नाराज रामविलास ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से स्तीफा दे दिया था | लेकिन 2014 में वे फिर भाजपा के साथ आ गये और जीवित रहते तक मोदी सरकार में मंत्री रहे | लोजपा में  उन्होंने पहले तो अपने भाई पशुपति पारस को आगे बढ़ाया लेकिन बाद में बेटे चिराग को पार्टी अध्यक्ष बनाकर उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जो फिल्म अभिनेता के तौर पर  फ्लॉप होने के बाद  पिता की उंगली पकड़कर लोकसभा में आ बैठे |  रामविलास के रहते  तो पशुपति शांत रहे लेकिन उनके बाद भतीजे की ताजपोशी उनको नागावर गुजरने लगी | बिहार  के पिछले चुनाव में चिराग ने नीतीश  के विरुद्ध जिस तरह खुलकर मोर्चा खोला उससे जद ( यू ) को अनेक सीटें खोनी पड़ीं |  हालांकि भाजपा ने उनको अपने से दूर रखा लेकिन  वे एनडीए में बने रहे  | हाल ही में  खबर आई कि मोदी मंत्रीमंडल का विस्तार होने जा रहा है और यही लोजपा में टूटन का कारण बन गया | पशुपति को लगा कि चिराग पिता की  जगह मंत्री बन जायेंगे  | इसीलिये उन्होंने भतीजे को नेता पद से हटा दिया | छह में से पाँच सांसद  उनके साथ हो लिए और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी बिना देर लगाये पशुपति को लोजपा संसदीय दल का नेता स्वीकार कर इस बात का संकेत दे दिया कि भाजपा भी चिराग से छुटकारा पाना चाहती थी | यद्यपि पशुपति भी अपने स्वर्गीय बड़े भाई की कृपा से ही सांसद हैं वरना उनका फोटो  इसके पहले समाचार माध्यमों में शायद ही किसी ने देखा होगा | बहरहाल परिवारवाद की बुनियाद पर खड़ी एक और पार्टी में टूट - फूट हो गयी | इसके पहले उप्र  में समाजवादी पार्टी चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश में वर्चस्व की लड़ाई से  बिखरी  | महाराष्ट्र में शिवसेना संस्थापक स्व. बाल ठाकरे ने अपने  उत्तराधिकारी माने जा चुके भतीजे राज ठाकरे की बजाय जब पुत्र उद्धव को युवराज घोषित किया तो राज ने अलग होकर मनसे नामक पार्टी बना ली | तेलुगु देशम में दामाद और सौतेली सास के बीच जंग हुई | लालू के साले भी भांजे - भांजियों को आगे बढ़ाये जाने से नाराज होकर जीजा से दूर जा बैठे | झगड़ा तो लालू के बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच भी है | बंगाल में तृणमूल की बागडोर ममता बैनर्जी ने भी अपने भतीजे को सौंपने की तैयारी कर दी है | हरियाणा में स्व. देवीलाल के बेटे और पोते इनेलदो के टुकड़े कर बैठे | कुल मिलाकर व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए बनी पार्टियाँ परिवारवाद  का शिकार होकर या तो पथभ्रष्ट हो जाती हैं या विभाजित हो जाती हैं | इस बारे में नीतिश कुमार एक अपवाद हैं जिनका परिवार राजनीति  से दूर  है |  लोजपा भी चूँकि  एक पारिवारिक पार्टी है इसलिए उसका यही हश्र होना था  | वैसे  मुद्दों पर बनी क्षेत्रीय पार्टियों का राष्ट्रीय राजनीति में काफी महत्व है लेकिन जब वे परिवार तक सिमटकर रह जाती हैं तब उनका अस्तित्व खतरे में आ जाता है |  परिवारवाद की  जनक  कांग्रेस की  आज  जो दुर्दशा है उसके पीछे भी एक परिवार का वर्चस्व ही है | चूँकि  क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद बतौर  संस्कृति कायम है इसीलिये लोजपा की टूटन से कोई सीख लेगा इसकी सम्भावना बेहद कम है | 


- रवीन्द्र वाजपेयी



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