Thursday 17 June 2021

उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को मिले राहत तब सुधरेगी हालत



गत वर्ष  प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने जान है तो  जहान है का नारा देते हुए लॉक डाउन लगाये जाने  का औचित्य साबित करने का प्रयास किया था | बाद में लॉक डाउन खोलते समय उन्हीं प्रधानमन्त्री ने जान भी और जहान भी  का नारा दिया | इस वर्ष  लॉक डाउन में  आम तौर पर तो उद्योग - व्यापार ठप्प रहे लेकिन गत वर्ष जैसी सख्ती नहीं रही | निर्माण के साथ ही अनेक व्यवसायिक गतिविधियाँ चलते रहने से अर्थव्यवस्था में ठहराव   के बावजूद हालात उतने नहीं बिगड़े जितनी आशंका थी  | और इसीलिये  लॉक डाउन खुलते ही आर्थिक  गतिविधियाँ जोर पकड़ने लगीं | गत माह का जीएसटी संग्रह  आशातीत रहा और निर्यात भी गत वर्ष की तुलना में काफी बेहतर है | हालांकि बीते दो महीनों में अर्थव्यवस्था को  बड़ी चपत  लगने का अनुमान है लेकिन  ये उम्मीद भी लगाई जा रही है कि आने वाला समय अच्छी  खबरें लेकर आयेगा | विकास दर और सकल घरेलू उत्पादन के अनुमान भले ही पूर्ववर्ती आकलनों की  अपेक्षा कम हों किन्तु उतने निराशाजनक भी नहीं जितना कोरोना काल प्रारम्भ होने पर माना  जा रहा था | इसी बीच विशषज्ञों के सुझाव आने शुरू हो गये हैं | कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो पिछले साल से ही कहते आ रहे हैं कि लोगों के जेब में सरकार पैसा डाले जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़े | लेकिन बजाय ऐसा करने के श्री मोदी ने 80 करोड़ गरीबों को कोरोना की पहली लहर के  दौरान तकरीबन छह महीने तक मुफ्त अनाज के साथ 500 रु. बैंक  खाते में जमा करवाने का विकल्प चुना | दूसरी लहर में भी उसी व्यवस्था को लागू किया गया है | इससे बहुत बड़े तबके को भुखमरी और बदहाली से बचाया जा सका | अन्यथा अराजक हालात बन सकते थे | दूसरी लहर ने हॉलांकि बहुत कम समय में अकल्पनीय कहर बरपाया जिसके कारण बड़ी संख्या में मौतें भी हुईं | अचानक  ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की कमी से हाहाकार मच गया | इसके कारण  अप्रैल  और मई  के दो महीने बेहद परेशानी में गुजरे लेकिन फिर भी दूसरी लहर जितनी तेजी से आई उतनी ही तेजी से उसकी वापिसी भी हुई | इसी के साथ ही सरकार की ओर से तीसरी लहर के संभावित आगमन से निपटने के लिए जो तैयारियां की गईं उनकी वजह से भी आर्थिक जगत में आशा बनी हुई है | लेकिन इस सबसे बड़ी बात है महंगाई का आसमान छूना और आम लोगों की घटती आय | केंद्र और राज्य दोनों के पास राजस्व का जबर्दस्त अभाव है | भुगतान नहीं होने से काम बंद पड़े हैं | अनेक विभागों में  तो वेतन के लाले हैं | छोटी  बचत की स्थिति भी खराब है | बैंकों से बड़ी मात्रा में जमा राशि निकलना इसका प्रमाण है | ऋणों की वसूली में भी बैंकों को पसीना आ रहा है | गत वर्ष प्रधानमन्त्री और वित्तमंत्री ने जो आर्थिक पैकेज दिए उन पर ठीक से अमल  न होने के कारण अपेक्षित लाभ नहीं हुआ | ऐसे में अब ये मांग हो रही है कि सरकार नए नोट छापकर बाजार में मुद्रा संकुचन की  स्थिति खत्म करे | हालांकि महंगाई से चिंतित रिजर्व बैंक इसके लिए  तैयार नहीं लगता | मई में खुदरा  महंगाई काफी बढ़ना भी चिंता का कारण है | राज्यों के मुख्यमन्त्री केंद्र से ज्यादा कर्ज लेने की अनुमति मांग रहे हैं | हालाँकि लॉक डाउन हटते ही बेरोजगारी घटने के संकेत मिल रहे हैं लेकिन अभी भी उद्योग - व्यापार पर कोरोना का प्रभाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता है | इस स्थिति से उबरने के लिए जरूरी है कि उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिले | जिस तरह गरीबों को मुफ्त राशन वितरण और किसान के उत्पादन को न्यूनतम मूल्य पर खरीदकर कृषि क्षेत्र को सहारा दिया गया उसी तरह सरकारी नौकरी के अलावा  जो मध्यम वर्गीय नौकरपेशा और व्यापारी है उसे भी राहत देने के इंतजाम होना चाहिए | इस तरह की आपदा में शासक का कर्तव्य है वह जनता को मानसिक  सुरक्षा के साथ ही आर्थिक  सुविधा प्रदान करे | पेट्रोल और डीजल की  कीमतों में जिस बेरहमी से वृद्धि की जा रही है उसकी वजह से सरकार द्वारा दी जा रही राहत पर पानी फिर रहा है |  खबर है आज दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक में इस बारे में  राहत देने पर विचार होगा किन्तु जब तक पेट्रोल और डीजल जीएसटी के अंतर्गत नहीं लाये जाते तब तक ये लूटखसोट नहीं रुकने वाली | ऐसे में  लॉक डाउन खोलने के बाद अर्थव्यवस्था भले ही गति पकड़ रही हो लेकिन वह अपनी स्वाभाविक स्थिति में तब तक नहीं आ सकेगी जब तक केंद्र और राज्य सरकारें अपने अनुत्पादक   खर्चे नहीं घटातीं | वर्तमान स्थिति में तो ऐसा लग रहा है कि कोरोना का मुफ्त टीका लगाने के एवज में सरकारें जनता से उसकी कीमत से कहीं ज्यादा वसूल रही हैं |  

- रवीन्द्र वाजपेयी



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