Wednesday 2 June 2021

परीक्षाएं रद्द हो सकती हैं तो चुनाव क्यों नहीं टल सकते



केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ( सीबीएसई ) ने 10 वीं के बाद 12 वीं की परीक्षा भी रद्द कर दी | खुद  प्रधानमंत्री ने इस आशय की घोषणा की | राज्यों को भी अपने शिक्षा मंडलों में ऐसे ही फैसले करने की छूट दे दे गयी है | इस  निर्णय का कारण कोरोना संक्रमण की स्थिति में छात्रों के स्वास्थ्य और  सुरक्षा की चिंता करना बताया गया जो पूरी तरह उचित भी है | मूल्यांकन से असंतुष्ट छात्रों को परीक्षा का विकल्प भी दिया गया है | लेकिन इसी के साथ  मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा का ये  बयान भी पढ़ने मिला कि आगामी वर्ष होने वाले पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव निर्धारित समय पर ही कराए जायेंगे | ये राज्य हैं मणिपुर , गोवा , पंजाब , उत्तराखंड और उप्र | हमारे देश में चुनाव करवाना बहुत ही पेचीदा काम है | इसलिये चुनाव आयोग काफी पहले से तैयारियां शुरू कर देता है | मतदाता सूचियाँ नए सिरे से बनाने के साथ ही सुरक्षा और प्रशासनिक प्रबन्ध भी करने होते हैं | उस दृष्टि से मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐसी कोई बात नहीं कही जो अस्वाभाविक हो | लेकिन कोरोना के कारण देश में जो परिस्थितियां उत्पन्न हुईं उनमें चुनाव करवाए जाने से जनता का बड़ा वर्ग बहुत नाराज है | अभी हाल ही में असम , बंगाल , तमिलनाडु , केरल और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमन्त्री सहित अन्य नेताओं की रैलियों में उमड़ी भीड़ में कोरोना अनुशासन की धज्जियां उड़ने पर पूरे देश में गुस्सा देखा गया | बंगाल , तमिलनाडु और केरल में चुनाव उपरांत कोरोना का संक्रमण जिस तेजी से बढ़ा उसके लिए देश का जनमत चुनाव प्रचार करने वाले नेताओं को ही जिम्मेदार मानता है | अनेक विपक्षी नेताओं ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर खूब हमले किये लेकिन उन सबने भी रैलियां करने में कोई कसर नहीं छोड़ी | भले  ही बीते कुछ दिनों से कोरोना की  दूसरी लहर का प्रकोप काफी कम हो गया  लेकिन इसी के साथ ही तीसरी लहर के आने की आशंकाएं भी लगातार व्यक्त की जा रही हैं जिसका समय आगामी नवम्बर से अगले साल की जनवरी  तक बताया जा रहा है | ये आश्वासन भी दिया जा रहा है कि तीसरी लहर यदि आती भी है तो वह लम्बी नहीं खिंचेगी | सरकारी जानकारी के अनुसार दिसम्बर तक पूरे देश को कोरोना का टीका लगा दिया जावेगा | लेकिन  टीके को लेकर जो अनिश्चितता बनी हुई है उसे देखते हुए सरकारी आश्वासन पर विश्वास नहीं  होता | और फिर तीसरी लहर कोई पूछ बताकर तो आयेगी नहीं | इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था भी डांवाडोल है | वर्तमान वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन ( जीडीपी ) और विकास दर के अनुमान आये दिन संशोधित हो रहे हैं | वित्तीय घाटा स्वाभाविक तौर पर बढ़ गया है | केंद्र और राज्यों की सरकारें कोरोना काल में चिकित्सा के साथ ही राहत के कार्यों में उलझी रहीं जिससे विकास  के बाकी काम पिछड़ गए | ऐसे में चुनाव का आयोजन न केवल  कोरोना संक्रमण की वापिसी  में सहायक बन सकता है अपितु उसमें सरकारी खजाने से जो धन खर्च होगा उसका उपयोग किसी और जरूरी काम में हो तो वह ज्यादा सार्थक होगा | इसके अलावा  राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में जिस बेरहमी से   पानी की तरह पैसा बहाया जाता है उसका बोझ भी घूम फिरकर जनता पर ही पड़ता है क्योंकि चुनावी चंदा भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों में से है | जिन पांच राज्यों में आगामी साल चुनाव होने हैं उनमें से पंजाब , उप्र और गोवा में कोरोना का जबर्दस्त  कहर  देखने मिला | मौतें भी खूब हुईं | उप्र में कोरोना के चरमोत्कर्ष के दौरान हुए पंचायत चुनाव का संचालन जिन सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के जिम्मे था उनमें से बड़ी संख्या में कोरोना ग्रसित हुए | ये सब देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग से मिलकर कोई ऐसा सर्वसम्मत रास्ता निकालना चाहिए जिससे न तो संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हो और न ही जन के साथ धन हानि की आशंका  बढ़े | कुछ समय पहले इसी स्तंभ में साल - दो साल चुनाव स्थगित करने संबंधी सुझाव दिये जाने पर अनेक पाठकों ने उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खत्म करने का प्रयास बताकर  विरोध किया था लेकिन बंगाल चुनाव के दौरान रैलियों को लेकर जो विपरीत प्रतिक्रिया देश भर से आई उसे देखने के बाद ये कहना गलत न होगा कि चुनाव संवैधानिक आवश्यकता होते हुए भी देश और जनहित से बड़ा नहीं हो सकता | आगामी कम से कम दो साल देश को कोरोना से हुए नुकसान से उबरने में लगेंगे | ऐसे में चुनाव आ जाने से केंद्र और  सम्बन्धित राज्य की सरकार सब काम भूलकर उसमें जुट जाती हैं | विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा 5 राज्यों के चुनाव हेतु तैयारियां शुरु करने के भी संकेत मिलने लगे हैं | हालातों के मद्देनजर यदि 10वीं और 12वीं जैसी परीक्षाएं जिनका विद्यार्थी के जीवन में बेहद  महत्वपूर्ण  स्थान होता है , यदि इस कारण से  रद्द की जा सकती हैं कि नई पीढ़ी का स्वास्थ्य और सुरक्षा ज्यादा जरूरी है तो चुनावों में भी तो लाखों लोगों का स्वास्थ्य दांव पर लग सकता है | और अब तो युवा मतदाता भी काफी हैं | चुनाव आयोग चाहे जितनी  सख्ती कर ले  लेकिन  वह नेताओं की रैलियों की भीड़ से  मास्क और शरीरिक दूरी जैसे अनुशासन का पालन नहीं करवा सकता | ऐसे में समय रहते  इस बारे में विचार होना चाहिए | राष्ट्रपति शासन के अलावा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाये जाने जैसे विकल्प भी हो सकते हैं | आने वाले कम से कम एक साल कोरोना से हुई क्षति की पूर्ति पर पूरा ध्यान देना देश हित में होगा | देखें राजनीतिक दल इस दिशा में  क्या सोचते हैं  ?

- रवीन्द्र वाजपेयी


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