इस बार भी रबी फसल ने पिछला कीर्तिमान तोड़ दिया और सरकार ने भी में बढ़ - चढ़कर खरीदी की | चूँकि कोरोना काल में खाद्यान्न उत्पादन और बढ़ा इसीलिये केंद्र सरकार 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज वितरित करने का साहस जुटा सकी | हाल ही में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को आगामी नवम्बर तक बढ़ा दिया | इस वर्ष गेंहू का न्यूनतम खरीदी मूल्य काफी अच्छा होने से किसानों को लाभ हुआ और खाते में सीधा पैसा जमा होने से भुगतान के लिए चक्कर नहीं काटने पड़े | बीते दिनों केंद्र सरकार ने खरीफ फसल के लिए सरकारी खरीद के जो नए मूल्य घोषित किये वे भी काफी आकर्षक हैं | 2014 के बाद से न्यूनतम खरीदी मूल्य में तकरीबन हर साल वृद्धि होने की जाती रही | हालाँकि किसानों की आमदनी दोगुनी किये जाने का लक्ष्य अभी भी दूर है परन्तु केंद्र और राज्य सरकारें गामीण विकास और किसान कल्याण पर पहले से अधिक राशि खर्च कर रही हैं जिसके अच्छे परिणाम भी आ रहे हैं | देश के अधिकांश गांवों तक पक्की सड़कें और बिजली पहुंचने से क्रांतिकारी बदलाव आया है | लेकिन दूसरी तरफ ये भी उतना ही सच है कि ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन अभी भी जारी है | जिसके कारण खेतिहर श्रमिकों का अभाव होने से कृषि कार्य में परेशानी आने लगी है | हालाँकि खेती के काम में मशीनों का उपयोग होने से मानव श्रम का उपयोग पूर्वापेक्षा कम हुआ है लेकिन लघु और मध्यम दर्जे के किसान अभी भी मशीनों का खर्च वहन नहीं कर पाते | श्रमिकों की कमी और युवा पीढ़ी का खेत से दूर होता जाना भी एक समस्या है | इस वजह से मजदूरी के दाम बढ़ते जा रहे हैं जो छोटे और मझोले दर्जे के किसानों की पहुँच से बाहर हैं | दिल्ली के मुहाने पर चल रहे किसान आन्दोलन की जो प्रमुख मांग है उसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रूप देना है | इसके साथ ये भी कहा जा रहा है कि सरकार ने कहने को तो तकरीबन दो दर्जन कृषि उत्पादों के लिए खरीदी मूल्य घोषित कर रखे हैं लेकिन वह मुख्य रूप से गेंहू , चना , धान और दलहन ही खरीदती है | इस बारे में मक्के का उदाहराण दिया जा रहा है जिसका सरकारी मूल्य 1800 रु. है लेकिन बाजार में वह उसके आधे पर बिका | हालाँकि कुछ चीजों के दाम सरकारी खरीद से ज्यादा भी मिले जिनमें कपास , दलहन और तिलहन प्रमुख हैं | इसीलिये बीते एक दो साल से सरकार किसानों को इस बात के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित कर रही है कि वे दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाएं ताकि दालों और खाद्य तेलों का आयात करने से बचा जा सके | उल्लेखनीय है इन दोनों के आयात पर लगभग 70 हजार करोड़ का खर्च आता है | चूँकि सरकार बड़े पैमाने पर गेंहू , चना और धान ही खरीदती है इसलिए किसान इनकी खेती में ज्यादा रूचि लेते हैं | समय आ गया है जब वे बदलते समय और जरूरतों के अनुरूप खुद को ढालें | 2022 तक पेट्रोल में 10 फीसदी ईथेनॉल मिलाये जाने की स्वीकृति ने गन्ना किसानों के लिए समृद्धि का नया द्वार खोल दिया है | 2030 तक इसे 20 प्रतिशत तक बढ़ाया जायेगा | अभी गन्ना ईथेनॉल का प्रमुख स्रोत है लेकिन अब मक्का ,धान और पराली से भी इसे प्राप्त करने की तैयारी है | ऐसे में किसान को ढर्रे से निकलकर आय के समानान्तर रास्ते खोजने होंगे | उसे ये भी समझना पड़ेगा कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में वह केवल सरकार के भरोसे रहकर खुशहाली अर्जित नहीं कर सकेगा | कृषि और पशुपालन का चोली - दामन का साथ रहा है | अनेक ग्रामीण उद्यमियों ने गोबर से जैविक खाद का व्यवसायिक उत्पादन करते हुए खुद के लिए भी कमाई का साधन पैदा किया और साथ ही किसानों को सस्ती खाद उपलब्ध कराकर लागत भी घटाई | इससे भी बड़ी बात ये है कि इस काम के लिए गांवों से गोबर खरीदी किये जाने से पशुपालकों को अतिरिक्त आय हुई | ऐसे में किसानों को दिल्ली की सीमा पर बेकार बिठाये रखने वाले कथित नेता यदि उनको नये तौर - तरीके अपनाने हेतु प्रेरित करते तथा अनाज के साथ ही दुग्ध उत्पादन की परम्परा को पुनर्जीवित करने का सन्देश किसान पंचायतों के माध्यम से देते तब शायद उनका आन्दोलन ज्यादा सफल और सार्थक हुआ होता | किसान इस देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं सामाजिक व्यवस्था की भी धुरी है | हमारी लोक संस्कृति , परम्पराएँ , प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में ग्रामीण समाज का योगदान अमूल्य है | इसलिए गाँव और किसान को आर्थिक की बजाय उसके समूचे परिवेश में देखा जाना चाहिए | मौजूदा आन्दोलन यदि केवल कुछ व्यक्तियों एवं राज्यों तक सिमटकर रह गया तो उसका कारण उसका एकपक्षीय होना है | महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आन्दोलन के साथ ही आजाद हिंदुस्तान के लिए ग्राम स्वराज जैसी संरचना का खाका खींचा था | दुर्भाग्य से अन्य आंदोलनों की तरह से ही किसान आन्दोलन तात्कालिक सोच से आगे नहीं बढ़ पा रहा और इसीलिए उसकी धार निरंतर कम होती जा रही है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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